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भाग - 5

दूसरे दिन रावी सुबह-सुबह ही तैयार हो गई थी। घर से निकलने से पहले तो खाना उसे वैसे भी बना बनाया नहीं मिलता था तो जल्दी-जल्दी किचन में खुद ही हाथ चला कर उसने अपना खाना बनाया और तैयार होकर कमरे से बाहर निकली ही थी कि नैना उसके सामने आ गयीं।

"जा रही हो क्या कहीं?" नैना ने उसके बैग को देखते हुए पूछा।

लीला भी सामने चारपाई पर बैठी खाना खाती हुई उनकी तरफ देखने लगी।

"हां, नई नौकरी का आज पहला दिन है" रावी बोलती हुई उसके साइड से निकलने वाली थी कि सौतेली माँ की ऊँची आवाज़ उसके कानों में पड़ी -

"क्या?! तुम्हें नौकरी मिल गई और तुमने बताया नहीं"

"हां, वो...."

"अच्छा उसको छोड़ो, पहले यह बताओ तनख्वाह कितनी मिलेगी?"

रावी की बात बीच में ही काटते हुए लीला बोल पड़ी। रावी को समझ नहीं आता था कि हमेशा उसकी बात कभी पूरी क्यूँ नहीं होने देती ये औरत। हर बार बीच में ही काट देती थी।

"20-25 तक बोला है उन्होंने" रावी को पता था उसकी माँ को बस इसी चीज़ से मतलब था।

"20-25 हज़ार?" उसकी मां की आंखें हैरानी से बड़ी हो गयीं।

"इतने पैसे कैसे मिल रहे हैं तुम्हें?" नैना ने हैरानी से पूछा।

"ऐ तू चुप कर।अच्छा....काम क्या है फिर?" लीला ने रावी से पूछा।

"साफ सफाई का काम है रेस्टोरेंट में" रावी के जवाब पर नैना की हंसी छूट गयी थी। लीला ने उसे एक नज़र घूरा तो वो चुप हो गयी।

लीला ने बहुत प्यार से रावी की ओर देखकर कहा,

"ओह! फिर कोई बड़ी जगह होगी। चलो अच्छा है बिटिया, काम छोटा या बड़ा थोड़े ही होता है। बस खूब मेहनत करके काम करना, वैसा हाल मत करना जैसा ढाबे से पहले वाली जगह किया था, ठीक है ना? खाने के लाले पड़ जाते हैं"

रावी उसके चेहरे की तरफ देखती रही। फिर चेहरा तानकर बोली,

"आप जानती हैं वहां मेरी इज़्ज़त पर हाथ डाला गया था! यहाँ भी हुआ तो दूसरी नौकरी ढूंढ लूंगी" सख़्ती से बोलकर वो घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ गयी।

"कमर पर हाथ लगने पर कौन सी इज़्ज़त लुट गयी तुम्हारी? ख़बरदार ये नौकरी छोड़ी तो! घर के अंदर नहीं घुसने दूंगी" लीला चिल्लाती हुई उसके पीछे से बोल रही थी।

नैना फिर हंसने लगी थी।

"तू क्या दाँत निकाल रही है" लीला उसे हँसते हुए देखकर उस पर चिल्लाई।

"मुझ पर क्यूँ चिल्ला रही हो?" नैना ने भी चिल्लाते हुए ही जवाब दिया और बड़बड़ाती हुई घर से बाहर निकल गयी।

"क्या मनहूस घड़ी थी ये नकारी औलादें पैदा हों गयी" लीला बस माथा पीटे जा रही थी।

********

तकरीबन दो घंटे का सफऱ तय करके रावी सनराइजर्स रेस्टोरेंट पहुँच गयी थी। नियत समय के 10.मिनट पहले ही पहुँच गयी थी क्यूंकि अपने काम के पहले दिन ही वो किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देना चाहती थी। क्या पता किस बात पर गुस्सा आ जाए और निकाल बाहर करें।

अंदर जाते ही उसे सामने ही निहाल दिख गया जो कुछ कुर्सियां सेट करवा रहा था। सामने रावी को खड़ा हुआ देखकर उसने उसे इशारे से अपने पास बुलाया।

"गुड मॉर्निंग सर" रावी मुस्कुराते हुए बोली।

निहाल सीधा खड़ा पीछे हाथ बाँधता हुआ बोला,

"गुड मॉर्निंग, गुड मॉर्निंग। पहले ही दिन टाइम पर आयी हैं आप। आई लाइक इट व्हेन पीपल रेस्पेक्ट द टाइम"

उसके शरीर पर शायद एक बहुत बड़ा टैटू गुदा हुआ था जिसका एक हिस्सा उसके गले से झाँक रहा था। उसकी पर्सनालिटी किसी खतरनाक गुंडे वाली लगती थी हालांकि उसका लहजा फॉर्मल और नरम ही रहता था।

रावी जवाब में बस मुस्कुरा दी।

"चलिए आपको काम समझा देता हूँ" निहाल के बोलने पर रावी हामी भरकर उसके पीछे चल पड़ी।

उसे वो सारा काम समझाने लगा। रावी का अभी बस ट्रायल पीरियड था। निहाल ने उसे समझाया कि अगर उनको उसका काम अच्छा लगेगा तभी उसे जॉब के लिए कंसीडर किया जाएगा। और ऐसा होते ही उसकी फॉर्मल ट्रेनिंग शुरू हो जायेगी। रावी उसकी हर बात बहुत ध्यान से सुन रही थी। सारा काम समझाकर आखिर में उसने उसे उसके लॉकर की चाबी देते हुए कहा,

"ऑल द बेस्ट! कोई प्रॉब्लम हो तो मुझे बताना। नाओ गो एंड चेंज" बोलकर निहाल दूसरी तरफ चला गया। रावी गर्दन हिलाकर मुस्कुराई और लम्बी सांस छोड़कर चेंजिंग रूम की तरफ बढ़ गयी। काले रंग की पैंट और शर्ट में जब उसने खुद को आईने में देखा तो खुद से यही वादा किया कि वो जी जान लगाकर मेहनत करेगी और जल्दी प्रमोशन भी लेगी। उसकी ज़्यादा कमाई मतलब उसके पापा जी का बेहतर इलाज। हो सकता है एक दिन ठीक होकर पहले की तरह ही उससे बोलें - "मेरी सयानी ती रानी, इक दिन तेरी उड़ारियाँ अंबरा च होउ" (मेरी समझदार बेटी, तू एक दिन आकाश में उड़ेगी)

सोचकर ही उसकी आँखे बह गयीं जिसे उसने दर्द भरी मुस्कुराहट लिए साफ कर दिया।

रावी ने इतनी बड़ी जगह पर आजतक कभी काम नहीं किया था लेकिन पहले ही दिन उसे काफी कुछ समझ आ गया था। यहाँ का माहौल अच्छा था। सब अपने काम से काम रखते थे। उसकी तो कुछ लोगों से जान पहचान भी हो गयी थी।

जैसे क्लीनिंग हेड अनिल दुबे सर, 50 वर्षीय हँसमुखी स्वभाव के थे। ऐसा लगता था उन्हें तो साफ सफाई वाले कीड़े ने काटा हुआ था । कोई उनके इंस्ट्रक्शन समझ नहीं पाता या फ़ॉलो करने में आनाकानी करता तो खुद ही उसका काम करने लग जाते।

दूसरी थी प्रिया कुमारी, 25 वर्षीय उसके जैसी एक और सफाई कर्मचारी। काफी तेज़ थी और हर तरफ नज़र रखने वाली कि कोई क्या कर रहा है, किधर जा रहा है। उसका खबरी एंटीना हर वक़्त काम में ही लगा रहता। पहले ही दिन रावी के साथ उसका बर्ताव काफी अच्छा रहा। खुद ही पहचान बनाने आ गयी थी उससे।

दोपहर आते आते काम करते हुए कुछ और लोगों से भी जान पहचान हो गयी थी उसकी।

"तुम सिटी ब्रांच में काम करने वाली गरिमा को जानती हो क्या?" कॉरिडोर साफ करते वक़्त प्रिया ने रावी से पूछा था।

"हाँ"

"निहाल सर की गर्लफ्रेंड है वो! तुम्हें पता है?"

"नहीं" रावी को थोड़ी हैरानी हुईं लेकिन वो ज़्यादा कुछ नहीं बोली।

उसका इतना ठंडा रिस्पांस देखकर प्रिया को मायूसी हुई लेकिन उसने बात जारी रखी,

"तुम्हें पता है जब से ये रेस्टोरेंट यहाँ खुला है, सिटी ब्रांच वाले एम्प्लोयीस भी यहाँ ट्रांसफर मांग रहे हैं" प्रिया कहाँ हार मानने वाली थी।

"अच्छा" रावी का ध्यान सफाई पर ही था।

"पूछोगी नहीं क्यूँ?"

"क्यूँ?" रावी के सवाल पर आख़िरकार प्रिया खुश हुई। उसे बातें करने और बातें निकलवाने से ज़्यादा मज़ा कभी कहीं नहीं आता था।

"ये रेस्टोरेंट शहर से काफी बाहर है। यहाँ बहुत अमीर लोग आते हैं, सेलिब्रिटीज भी! क्यूंकि यहाँ मीडिया नहीं होता ना। जब तक उन लोगों को पता चलता है, तब तक यहाँ सब समेट दिया गया होता है" वो हँसते हुए बोली।

रावी का कोई जवाब नहीं आया।

"अच्छा ठीक है, मैं काम कर लेती हूँ" हारकर प्रिया उसे छोड़कर काम में लग गयी।

शाम के तकरीबन 4 बजे थे। रेस्टोरेंट में कुछ अफरा तफरी का माहौल लग रहा था। रावी ने अपने चाय के कप से अभी एक घूंट पिया ही था कि उसे किचन एरिया के बाहर पहुँचने का बुलावा आ गया।

जल्दी जल्दी में जब वो वहां पहुँची तो उसने देखा कि वहां सब इकट्ठे हुए थे और सामने एक स्टाइलिश घुटने तक आती ड्रेस में एक लड़की खड़ी थी और उसके साथ एक आदमी भी था। दोनों के पहनावे और बॉडी लैंग्वेज से ही लग रहा था कि बहुत अमीर लोग हैँ। उन दोनों के पीछे निहाल हाथ बांधे खड़ा था।

उनमें से जो आदमी था वो लगभग अठाइस का लग रहा था। उसने सवाल किया,

"आप लोगों में से जो नये रिक्रूट्स हैं, अपना हाथ उठाये" जवाब में रावी के साथ दो और लोगों ने हाथ उठाये। वो दोनों अलग डिपार्टमेंट से थे।

उन्हें देखकर, उस आदमी और औरत , दोनों ने हामी भरी।

"मेक श्योर दे स्टे इनसाइड। बाहर नहीं दिखने चाहिए।" वो स्टाइलिश सी औरत जो मुश्किल से पच्चिस की लग रही थी, निहाल से बोली।

"यस मैम" निहाल जवाब में बोला।

इसके बाद उस औरत के साथ आए आदमी ने बोलना शुरू किया,

"आज हमारे रेस्टोरेंट में हमारे बहुत ख़ास और बहुत बड़े मेहमान आ रहे हैं। ध्यान रखियेगा सब चीज़ेँ बेस्ट तरीके से हों क्यूंकि उन्हें नाराज़ करना बहुत भारी पड़ सकता है। यहाँ का ट्रेनड हेड स्टाफ ही सारा काम देख लेगा। बाकी स्टाफ और ख़ासकर नये रिक्रूट्स, आप लोगों को ध्यान रखना है। बाहर कोई नहीं दिखना चाहिए। आपकी छोटी सी गलती और बहुत गलत इम्प्रैशन पड़ेगा"

सब हाँ में गर्दन हिला रहे थे।

सब कुछ सही चल रहा था। सारा काम निर्देशों के मुताबिक हेड स्टॉफ देख रहा था। बाकी स्टाफ अंदर की तरफ बने एक हॉल में थे। उनके बीच तो ऐसी शान्ति पसरी थी मानो किसी बम फूटने का इंतज़ार कर रहे हों। बाहर क्या हो रहा था किसी को कुछ पता नहीं था।

प्रिया, रावी के पास जाकर धीमी आवाज़ में बोली,

"मान्या मैडम और अंकुश सर खुद यहाँ आएं हैं सब देखने मतलब कोई बहुत बड़ा आदमी होगा" बोलते हुए वो नाखून मुंह में चबा रही थी। जूनियर स्टाफ लॉकर रूम में था।

"अंकुश सर और मान्या मैडम कौन?" रावी ने उससे पूछा।

"अरे! जिनके रेस्टोरेंट में आप काम करती हैं! अंकुश कपूर और उनकी बहन मान्या कपूर, सनराइजर्स के मालिक! अभी बाहर वो दोनों ही तो थे जो सभी को इंस्ट्रक्शन्स दे रहे थे। वैसे वो दोनों खुद कभी नहीं आते रेस्टोरेंट में चाहे जितना भी बड़ा गेस्ट हो। निहाल सर ही सब संभालते हैं। आज वो दोनों अचानक ही आ गए मतलब कोई बहुत बड़ा आदमी होगा"

"अच्छा" रावी ने धीरे से बोला।

वहीँ मान्या जल्दी में किचन एरिया की तरफ गयी जो किसी जंग के मैदान से कम नहीं लग रहा था।

"वाशरूम एरिया सब चेक किये थे ना? एवरीथिंग शुड बी फ्लॉलेस" वो हड़बड़ी में बाहर जाते हुए अंकुश से टकरा गयी।

अंकुश ने उसे दोनों कंधो से पकड़ा और उसे शांत करवाता हुआ बोला,

"रिलैक्स, मान्या! जस्ट रिलैक्स! मैम जा चुकी हैं और सर जाने ही वाले हैं।"

"लेकिन वो तो अभी वाशरूम एरिया की तरफ गए हैं। आई होप वहां सब ठीक हो"

"हाँ हाँ सब ठीक है"

बोलकर वो दोनों वहां से चले गए।

उनके जाते ही किचन एरिया में कानाफूसी शुरू हो गयी,

"एक कॉफ़ी आर्डर की उन्होंने बस! और इन लोगों ने तो ऐसे तैयारिया की थी मानो विश्वयुद्ध लड़ने वाले हैं हम" एक शेफ हँसते हुआ बोला था।

"मुझे लगता है मैंने वाशरूम अच्छे से चेक नहीं करवाया है" क्लीनिंग डिपार्टमेंट का कुछ सीनियर एम्प्लॉय दूसरे के कान में बोला।

"दुबे सर को बोलें?"

"नहीं! बहुत डांट पड़ेगी। और निहाल को पता लगा तो कच्चा खा जाएगा"

"तो अब? अब क्या करें?"

कुछ देर बाद लॉकर रूम का दरवाजा खुला।

"मिस रावी, आपको बाहर बुला रहे हैं" एक आदमी वहां आकर रावी को बाहर बुलाने के लिए आया था।

रावी उठकर इधर उधर देखने लगी। सब उसे देख रहे थे। वो जल्दी से उठकर बाहर चली गयी। उसे वहां वाशरूम चेक करने के लिए भेज दिया गया था।

अपनी गलती छुपाने के लिए क्लीनिंग डिपार्टमेंट के पुराने स्टॉफ ने, नई दाखिल हुई रावी को बलि का बकरा बना दिया था जिसका उसे अंदाज़ा नहीं था।

वो हर वाशरूम बहुत ध्यान से चेक करती हुई जा रही थी। सब कुछ बहुत साफ था। वाशरूम एरिया से बाहर निकलकर वो वापिस जा ही रही थी कि उसे स्टोरेज रूम से कुछ आवाज़ आयी। रेस्टोरेंट दिखाते वक़्त निहाल ने उसे बताया था कि यहाँ कुछ पुराना सामान पड़ा रहता है और यहाँ कोई नहीं आता। वो उस रूम को खुला ही रखते थे।

रावी पहले तो थोड़ा डरी, ये सोचते हुए कि पता नहीं अंदर क्या हो लेकिन वो डरते हुए भी वो कमरे के अंदर चली गयी।

वहां पर सच में कोई था! लेकिन वहां रोशनी कम होने की वजह से उसे कुछ साफ नहीं दिख रहा था।

रावी ने पास जाकर देखा तो वहां एक नीले रंग का थ्री पीस सूट पहने एक आदमी दीवार के सहारे लगा नीचे बैठा हुआ था। वो अपना चेहरा नीचे किये हुए था। उससे कुछ दूरी पर था इसलिए उसे कुछ साफ साफ नहीं दिखाई दे रहा था लेकिन देखने पर इतना तो तय था कि वो परेशान था।

उसकी बॉडी लैंग्वेज ही अलग थी। मुट्ठीयाँ भींची हुई मानो किसी चीज़ से लड़ रहा हो। बदहवास सी हालत थी उसकी, साँसे उखड़ी हुई। ऐसा लग रहा था उसे सांस लेने में बहुत मुश्किल हो रही हो।

शायद वो अपना चेहरा नीचे किये हुए खुद को कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा था लेकिन नाकाम लग रहा था। उसके हाथ बुरी तरह से काँप रहे थे।

"अ...आप ठीक है?" रावी उसके सामने ही ज़मीन पर बैठ गयी।वो आदमी अभी भी अपना चेहरा नीचे किये अपने आप को खुद संभालने की कोशिश करता हुआ उसे इग्नोर कर रहा था। शायद उसे उसकी आवाज़ ही सुनाई नहीं दे रही थी।

उसकी हालत देखकर रावी को एहसास हुआ कि शायद उस आदमी को पैनिक अटैक आया था!

"सर, सर" रावी ने बार बार आवाज़ लगाई लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

फिर अचानक वो घुटनों के बल बैठकर उसके करीब जाकर उसके कोट के बटन खोलने लगी।

उसके छूते ही उस आदमी ने अपना चेहरा उठाकर उसकी ओर देखा। रावी अब उसका चेहरा साफ देख पा रही थी। उसका चेहरा कड़ा था। मानो अंदर ही अंदर सब समेटने की कोशिश कर रहा हो। कुछ भी बाहर नहीं आने देना चाहता हो।

"आप, आप लम्बी लम्बी साँसे लीजिये। अंदर मत रखिये" वो बोली लेकिन वो आदमी वैसे का वैसा ही रहा। वो बस उसे एकटक देख रहा था! घूर रहा था शायद!

रावी ने उसके सीने पर अपना हाथ रखा जहाँ उसकी तेज़ रफ़्तार धड़कन उसे साफ महसूस हों रहीं थीं। वो खुद उसके सामने लम्बी लम्बी साँसे लेने और छोड़ने लगी।

"लम्बी लम्बी साँसे लीजिये। देखिये जैसे मैं ले रहीं हूँ"

लेकिन उस आदमी की मुट्ठीयां अभी भी भींची हुई थीं।

रावी घबरा गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये इंसान कर क्या रहा था! दर्द से जूझ भी रहा था ओर दर्द से अलग भी नहीं होना चाह रहा था!

अब उसने उसका हाथ अपने सीने पर रखा जहाँ उसकी शांत धड़कती हुई धड़कन उस आदमी को भी महसूस हुई।

रावी अभी भी लम्बी साँसे लें रहीं थी।

उस आदमी ने धीरे से अब अपनी मुट्ठीयां खोल दी थीं। रावी ने उसे ऐसा करते देखा तो उसे फिर लम्बी साँसे लेने के लिए बोला। बार बार बोला।

इस बार उसने उसकी बात मान ली और धीरे धीरे उसके साथ उसके जैसे ही लम्बी साँसे लेने लगा। दोनों के हाथ एक दूसरे के धड़कते हुए दिलों पर थे और निगाहे एक दूसरे के चेहरे पर।

उस आदमी की आँखों का रंग शहद सा था। अजीब ही थीं उसकी आँखें। या शायद रावी ही कुछ ज़्यादा झाँक रही थी उन आँखों में।

उस आदमी की धड़कन थोड़ी धीमी थी अब। अचानक ही वो उठ खड़ा हुआ। बाहर जाने लगा तो रावी की आवाज़ सुनकर रुक गया।

"आप ठीक हैं, सर?" रावी भी ज़मीन से उठते हुए बोली।

वो आदमी अचानक ही पीछे मुड़ा तो रावी को उसकी शहद का रंग ली आँखों में जलती हुई आग साफ दिखाई दे रही थी जिसे देखकर वो ज़रा सिहर सी गयी।

उस आदमी ने सरसरी सी नज़र उसकी यूनिफार्म पर लगी नेम प्लेट पर डाली, जहाँ लिखा था "रावी गिल"। और बिना उसकी तरफ दोबारा नज़र डाले वो वहां से चला गया।

रावी हैरान सी खड़ी रही।

फिर उसे जाते देखकर बड़बड़ाई, "अजीब आदमी है। एक थैंक यू तक नहीं बोला?"

उस आदमी ने अपने कोट के बटन बंद करते हुए रेस्टोरेंट से बाहर आते हुए किसी को फ़ोन मिलाया। फ़ोन रिसीव होते ही वो बरस पड़ा,

"सनराइजर्स....आई वांट टू बाय दिस रेस्टोरेंट " बोलकर उसने अपनी चमचमाती महंगी गाड़ी के सामने खड़े ड्राइवर को घूरा जिसने अपने माथे पर आये पसीने को पोंछते हुए उसे गाडी की चाबी दी और खुद पीछे हट गया।

वो गाड़ी के अंदर बैठ गया। उसके साथ की सीट पर एक इंटरनेशनल मैगज़ीन पड़ी थी जिस के कवर पेज पर उसी आदमी की तस्वीर थी। बहुत घमंड से एक किंग साइज चेयर पर टांग पर टांग चढ़ाये हुए बैठा था वो उस तस्वीर में।

और....उस तस्वीर के नीचे लिखा था -

द मैन

द मिथ

द लेजेंड

ज़ोरावर सिंह राजशाह!

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Suryaja

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I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.