आर्मी बेस अस्पताल
श्रीनगर, जम्मू एवं कश्मीर
कावेरी जी और यशवंत जी आईसीयू के बाहर बैठे थे। यशवंत जी सामने दीवार पर टकटकी बांधे हुए थे और कावेरी जी बड़ी मुश्किल से खुद को संभाले हुई थीं। आँखों से खामोश आंसू रह रहकर टपक रहे थे।
अंदर संग्राम का ऑपरेशन चल रहा था। जिसमें बड़े बड़े और काबिल आर्मी के डॉक्टर्स की टीम जुटी हुई थीं।
कुछ देर बाद दो लोग बाहर आए और उनके कदमों की आहट सुनते ही कावेरी जी और यशवंत जी, दोनों अपनी जगह से उठ खड़े हुए।
अपने बेटे के बारे में कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे दोनों। ना जाने सामने से क्या जवाब मिले!
आख़िरकार कर्नल रैंक के उस आर्मी डॉक्टर ने खुद ही बताना सही समझा। माँ बाप की मनोस्थिति वो समझ रहे थे।
"ऑपरेशन से गोलियां निकाल दी हैं। लेकिन इससे ज़्यादा मैं कुछ कह नहीं पाउँगा आपसे सर, मैम" दोनों को देखते हुए उन्होंने कहा।
"आप साफ साफ कहिये, हम इतने कमज़ोर दिल नहीं हैँ कि सच ना सुन पाएं। खुलकर कहिये, कर्नल" यशवंत जी ने दिल पर पत्थर रख कर कहा।
"मेजर अभी भी स्टेबल नहीं है। बहत्तर घंटे अंडर ऑब्जरवेशन रखना होगा। उसके बाद ही कुछ साफ होगा" सुनकर दोनों के चेहरे पर चिंता के भाव थे। कावेरी जी ने महसूस किया यशवंत जी ने उनका हाथ कसकर पकड़ रखा था। उन्होंने उनके हाथ पर हल्का सा थपथपाया।
यशवंत जी को लग रहा था कि कर्नल की बात अभी खत्म नहीं हुई। वो कुछ और भी कहना चाहते हैं जो उन्होंने कहा भी....
"सर....मेजर सांगेर पर आठ गोलियां दागी गयीं थीं! लेकिन उन दस में से बस तीन गोलियां उन्हें लगीं बाकी पांच गोलियां उनके बडी कमांडो ने उन्हें बचाते हुए खुद पर ले लीं। कवच बनकर रक्षा की मेजर की साँसों की। बहुत बड़ा बलिदान दिया है उस सच्चे सिपाही ने"
दोनों अवाक से अपने सामने खड़े कर्नल को बोलते हुए देख रहे थे।
"आप... किसकी बात कर रहे हैं?! कौन...?" यशवंत जी की ज़ुबान उस बलिदानी का नाम पूछते हुए भी लड़खड़ा रही थी।
"लांस नायक नवीन कुमार पांडे!" कर्नल के मुंह से नवीन का नाम सुनते ही कावेरी जी एकदम से लड़खड़ा गयीं। यशवंत जी ने और कर्नल साहब ने उन्हें कुर्सी पर बैठाया।
"ये आप क्या कह रहे हैं?!! नवीन?!! नहीं रहा?!!" कावेरी जी को यकीन नहीं आ रहा था। वो तो बस कुछ दिन पहले ही उससे पहली बार मिली थीं। संग्राम कितनी बातें करता था उसकी!
"जी मैम....आठ गोलियां लगीं थीं उन्हें। बचना मुमकिन ही था। पूरी कोशिश की हमने। खून भी काफी बह चुका था। लेकिन वो कोई शेर ही था, ज़ख़्मी होने के बाद भी दुश्मनों से लड़ता रहा। आपके बेटे के लिए तो कवच साबित हुआ लांस नायक नवीन कुमार पांडे"
सुनकर यशवंत जी की आंखें भर आई और कावेरी जी रोते हुए बिलख पड़ी।
उसकी बातें, उसकी मुस्कुराहट, उसकी बात बात पर मजाक करने की आदत, उन्हें सब याद आ रहा था और जितना याद आ रहा था दिल में दर्द बढ़ता जा रहा था। नवीन को तो उन्होंने बस कुछ ही दिनों में अपना बेटा ही मान लिया था। बिल्कुल विक्रम जैसा था वो भी।
और आज विक्रम की तरह वो भी चला गया। ऐसे ही, अचानक!
नारियापुर
गाँव में मीडिया का हुजूम इकट्ठा हो चुका था। घर में भी लोकल और नेशनल दोनों न्यूज़ चैनल वाले अपनी अपनी टीमें लेकर तैनात हो गए थे।
"आपके बेटे को इतनी बडी शहादत नसीब हुई है। देश के लिए कुर्बान हुआ है आपकी कोख से निकला सपूत। आप कुछ कहना चाहेंगी?" एक पत्रकार ने नवीन की रोती बिलखती हुई माँ के मुंह के आगे अपना माइक घुसते हुए सवाल किया।
रोने के सिवा उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। उसने सवाल दोहराया लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं आया। हारकर उसने अब अपना माइक साथ में बैठी नंदिनी के आगे कर दिया जो अपने घुटनों को मोड़कर... इर्दगिर्द अपनी दोनों बाहें लपेटे हुए उस पर अपना सिर रखकर बैठी हुई थी...चुपचाप....बिना किसी आवाज के.....वो रो भी नहीं रही थी। उसकी आंखें बस जमीन पर टिकी हुई थी।
पत्रकार ने फिर वही सवाल किया लेकिन इस बार उसने बेटे की जगह भाई शब्द का इस्तेमाल किया बाकी सवाल वही था।
और उसकी तरफ से भी कोई जवाब नहीं आया। ऐसा लग रहा था मानो उसे पता ही नहीं था कि आसपास क्या हो रहा है। वह कहीं और ही गुम थी।
अचानक ही आंसुओं से लाल आँखें लिए हुए नवीन के बचपन के दोस्त महेश की नजर उस पत्रकार पर पड़ी तो वह चिल्ला उठा "आपको तमीज नहीं है क्या?! ये वक़्त है सवाल करने का?! शर्म करो शर्म...!! उसकी मां और बहन को शान्ति से रो तो लेने दो भाई...! मातम तो मनाने दो घरवालों को...!"
महेश की बात सुनकर दो-चार लोगों ने और बोला तो पत्रकार को थोड़ी शर्म आई। जल्द ही वहां से बाहर चला गया। जाते हुए उसने कैमरामैन को इशारा किया तो वह भी उसके पीछे-पीछे चला गया।
अब मीडिया वाले पहुंचे थे तो नेतागण भी तो पहुंचने थे तो वह भी आ गए थे अपने दलबल के साथ। सब मौजूद थे....लोकल लीडर भी और राज्य सत्ताधारी भी। हर कोई अपनी राजनीति चमकाने वहां पहुंचा था ताकि कैमरे में कैद हो पाए और फिर आगामी चुनावी सीजन में उसे तस्वीर को लेकर अपना एजेंडा भुनाये।
उनमें से एक प्रभावशाली नेता ने बार-बार नवीन के पिता को एक चेक देने की कोशिश की और अपने आदमियों को अखियों से ईशारा नहीं कर दिया कि चेक देते हुए फोटो अच्छे से ले। सोशल मीडिया पर वायरल भी तो करना था। लेकिन नवीन के पिता बार-बार रोते हुए अपना सर ना ना में हिलाते रहे। उन्होंने हाथ जोड़ लिए तो नेताजी को भी गलती का एहसास हुआ।
"अंदाज़ा है अभी इसका वक्त नहीं है। थोड़ा बाद में आते हैं।" बोलकर वो उठकर खड़े हो गए।
कुछ देर में "नवीन कुमार अमर रहे!" के उद्घोषों के साथ नवीन का पार्थिव शरीर नरियापुर में दाखिल हुआ।
आज नवीन वापिस घर आया था....ताबूत में बंद....तिरंगे में लिपटा हुआ....उसी आँगन में....जिसे संवारने के ना जाने कितने सपने देखे थे उसने।
उसके पार्थिव शरीर को घर के अंदर जैसे ही लाया गया तो वहां चीत पुकार मच गई। आर्मी के पैराशूट रेजीमेंट के नवी बटालियन के ही उसके साथी कमांडोज उसका पार्थिव शरीर अपने कंधों पर उठाकर वहां लेकर आए थे।
वहां की हवा बहुत भारी हो चुकी थी। बलिदान से, आंसुओं से, गर्व से!
ना जाने किसने नंदिनी को उठाया और उस ताबूत के पास लेकर गया जो बरामदे के बीच में रखा हुआ था। उसके सामने वो ताबूत खोल दिया गया। घरवालों को आखिरी बार नवीन का चेहरा जो दिखाना था।
ताबूत खुला और फिर वही चीतपुकार!
नंदिनी ने आगे बढ़कर नवीन के निर्जीव चेहरे पर हाथ लगाया जो बहुत ठंडा था! फिर वो वहीँ बैठ गयी......उसके पास। उसके बाल सहलाती, उसके गाल। कोई पास आकर उसका हाथ पकड़कर मना करता तो गुस्से से झटक देती।
काफी देर वहीँ बैठी रही और अपनी मरी हुई आँखों से उस ताबूत को देखती रही जो तिरंगे से लिपटा हुआ था। आसपास रोते और चिल्लाते हुए लोग थे लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। वो तो जैसे बहुत.... दूर कहीं बैठी थी।
"ठक" नंदिनी ने उस ताबूत पर हल्के से अपना हाथ मारा।
"ठक" इस बार थोड़ा ज़ोर से।
"ठक.... ठक.... ठक" वो उस ताबूत पर अपने बेजान हो चुके हाथ मारे जा रही थी। शायद इस उम्मीद से कि उसका भाई तिरंगे से लिपटे हुए उस ताबूत के अंदर से जिंदा बाहर निकल आएगा।
"नवी उठ जा! उठ जा! तेरी दीदी बोल रही है उठ जा! नवी....!!!!!" वो अचानक ही चिल्लाने लगी।
आसपास के सब लोग उसकी हालत देखकर फ़फ़क पड़े। पूरा गाँव जानता था कि नंदिनी के लिए नवी उसके बेटे जैसा था। नवी के जन्म के बाद रानी देवी बहुत साल बीमार रही थी तो ऐसे में छोटी सी नंदिनी पर ही अपने छोटे भाई की जिम्मेदारी आ गई थी और उसने वह बहुत ही बखूबी से, बहुत प्यार से निभाई थी और फिर तो उसे आदत ही हो गई थी।
आज उसके लिए भी अपने भाई को खोना बेटे को खोने जैसा ही था।
फिर नवीन के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए शमशान घाट ले जाया जाने लगा तो मोहल्ले की औरतों में से एक बोली - "पांडे जी का तो सारा परिवार ही उजड़ गया। कुछ ही महीनों में बेटी की डोली जाने वाली थी और आज देखो जवान बेटे की अर्थी उठ रही है किसने सोचा था ऐसा होगा?" वो औरत रोते हुए बोल रही थी।
" सुबह से टीवी पर आ रहा है सारी टीम जो मिशन में गई थी सब सदस्य मारे गए। बहुत आतंकवादी भी मरे हैं। बहुत बड़ा मिशन था। कितने परिवार उजड़ गए एक पल में!" दूसरी ने आंसू पोंछते हुए कहा। "बस एक अफसर बचा है। बता रहे थे अभी भी अस्पताल में मौत और जिंदगी के बीच जंग लड़ रहा है। पता नहीं जिंदा बचेगा भी या नहीं....."
नवीन की अंतिम यात्रा में सिर्फ नारियापुर नहीं, आसपास के सारे गाँव से लोग आए थे और उसकी अमरता और भारत माता की जय जयकार के नारे लगा रहे थे।
बच्चे बच्चे को उसकी वीरता और बलिदान पर गर्व था! पूरी शान के साथ वो धरती अपने सपूत को अंतिम विदाई दे रही थी।
सेना ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ अपने वीर सैनिक को श्रद्धांजलि अर्पित की और आख़िरकार एक पिता ने आंसुओं और गर्व के साथ अपने जवान बेटे को अपने हाथों से अग्नि में समर्पित कर दिया लेकिन अग्नि की लपटे जैसे-जैसे बढ़ती गई,
अचानक ही नंदिनी दौड़ती हुई चिता की तरफ भाग पड़ी.... नंगे पाँव.....बाल बिखरे हुए थे। आसपास के लोग उसके पीछे भाग पड़े उसे रोकने के लिए।
वो चिल्लाती हुई भाग रही थी....
"उसको नीचे उतरो, वो जल जाएगा। उसको नीचे उतरो, मेरा भाई जल जाएगा"
लेकिन तब तक वो लपटे आसमान को छू रही थी। भारत की धरती भी अपने पुत्र को गले लगाना चाहती थी जिसने उसके लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था! जिसने उसके लिए और उसके बच्चों के लिए अपना सब त्याग दिया था!
फिर भागती हुई नंदिनी को अचानक एक ठोकर लगी और वो मुंह के बल जमीन पर गिर गई!
आंसुओं से भीगे उसके चेहरे पर मिट्टी चिपक गई। लेकिन वो बस नवीन का नाम दोहराती रही। उस नाम के सिवा उसे कुछ भी याद नहीं था।
फिर धीरे धीरे उसकी आवाज़ के साथ उसकी आँखें भी बंद हो गयीं।

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