संग्राम चिल्लाता रहा और नवीन को खुद से अलग करने की कोशिश करता रहा लेकिन नवीन ने उसे नहीं छोड़ा। संग्राम और उस पर बरसाई जाने वाली गोलियों की बौशार के आगे वो खड़ा रहा। उसके शरीर पर गोलियां धंसती गयी। उसका पूरा शरीर लहूलुहान हो रहा था।
गोलियां लगने से उसकी पकड़ ढीली हुई तो संग्राम ने उसे पकड़कर एक तरफ घूमाने के बाद अपने से ज़बरदस्ती अलग किया और सामने खड़े आतंकवादी पर टूट पड़ा जो लगातार गोलियां चला रहा था।
संग्राम के शरीर पर भी जहाँ तहाँ गोलियां धंसी। पहली कंधे पर लगी, दूसरी पेट पर, तीसरी जांघ पर और चौथी बाज़ू पर लेकिन वो दहाड़ता हुआ तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। उसकी दहाड़ सुनकर उस आतंकवादी से ट्रिगर नहीं दब रहा था। उसके हाथ काँपने लगे थे। उससे ट्रिगर दबता इससे पहले संग्राम ने उसे गले से पकड़ा और उसका सर पीछे चट्टान पर दे मारा। उसके सर से खून की धार बहने लगी और वो लड़खड़ा गया। उसकी गन उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर गयी। उसने उसके गले को अपनी पूरी ताकत से जकड़ा और फिर दोबारा दीवार पर उसका सर दे मारा।
संग्राम चिल्लाते हुए उसका सर तब तक दीवार पर मारता रहा जब तक उसके प्राण पखेरू ना उड़ गए। संग्राम उस वक़्त बहुत भयानक लग रहा था। खून से लथपथ उसका शरीर, माथे पर आयी कुछ चोटें जिसमें से खून बह रहा था और उस पर गुर्राती हुई उसकी दहाड़!
बहुत भयानक!
उसकी नज़र नवीन पर गई और उसके चेहरे पर नरमी ले आयी। वो उसके पास हिम्मत कर लड़खड़ाता हुआ गया और उसका हाथ अपने गले के आसपास लपेट कर उसे ज़मीन से उठाने की कोशिश करने लगा। नवीन में कुछ कुछ सांस अब भी बाकी थी।
"चल... पांडे....उठ.... बाहर निकलते हैं" खुद भी मुश्किल से बोल पा रहा था वो। ज़ख़्मी था। जहाँ तहाँ गोलियां लगीं थीं।
नवीन हिल डुल रहा था लेकिन उसके पास इतनी ताकत नहीं थी कि उठ कर खड़ा हो पाए। संग्राम ने फिर भी उसे नहीं छोड़ा और ज़बरदस्ती अपने शरीर का सहारा देकर उसे खड़ा कर लिया लेकिन वो फिर लड़खड़ा गया।
"लांस नायक.... नवीन कुमार.... पांडे.... उठो!!" संग्राम ने आवाज़ ऊँची कर उसे आदेश देते हुए कहा। उसकी खुद की आँखें बंद हो रहीं थीं।
लेकिन नवीन बिना सहारे के खड़ा तक नहीं हो पा रहा था। वो झूलता हुआ नीचे गिरने को हुआ लेकिन संग्राम ने खींचकर अपने गले से लगा उसे संभाल लिया। उसकी साँसे उखड़ रही थीं। उसने उसके कान के पास जाकर टूटे शब्दों में बोला "माई बाप हो...सर...आप। करना.... था। ध्यान... रखना। जय हिन्द... सर" बोलकर वो उसका सर उसके कंधे पर लुढ़क गया।
"पांडे!!!"
सुबह के तीन बजे नंदिनी की अचानक आँख खुली। मन बहुत भारी लग रहा था। मानो ना जाने कितना भार लाद दिया गया हो सीने पर!
उसने कुछ लम्बी लम्बी साँसे ली और फिर भी कुछ बेहतर महसूस नहीं हुआ तो उठकर बाहर रसोई की तरफ पानी पीने के लिए चली गयी। अभी अंदर गयी ही थी कि देखा उसकी माँ रानी देवी भी वहीँ थीं।
"आप इतनी सुबह क्यूँ उठ गयीं?" उसने अंदर आते ही सवाल किया और फ्रिज से अपने लिए पानी निकालने लगी। हाथों पर ध्यान गया जो काँप रहे थे। उसने मुट्ठी में हाथ कसा और बंद करने और खोलने लगी।
"मुझे तो नींद ही ना आयी रात भर। मन बड़ा बेचैन हो रहा है" रानी देवी भी पानी के दो घूंट गले के नीचे उतार रहीं थीं।
"हाँ मुझे भी कुछ अजीब ही लग रहा है। घबराहट सी हो रही है कल से। शायद मौसम ही ऐसा है" नंदिनी ने आराम से कहा।
"हम्म बदल रहा है ना...शायद इसीलिए। नवी का फ़ोन आया?"
"नहीं अभी नहीं" नंदिनी भी उसके फ़ोन का इंतज़ार ही करती रही। वो जब भी मिशन से वापिस आता, तो फ़ोन करके अपने सकुशल होने का भी बता देता और ये भी कि अब फ़ोन बंद नहीं रहेगा।
"नंदा, कुछ देर बाद मंदिर चलेंगे, आरती भी देख लेंगे। मन को कुछ शान्ति मिलेगी" रानी देवी ने कहा तो नंदिनी ने पानी पीते हुए हाँ में सर हिला दिया।
फिर कुछ समय बाद सुबह के लगभग चार बजे मां और बेटी दोनों मंदिर की ओर निकल गए।
वही उसी वक्त कश्मीर की पहाड़ियों में सपोर्ट टीम के द्वारा संग्राम और नवीन से संपर्क स्थापित करने की कोशिश की जा रही थी लेकिन वह दोनों रेडियो साइलेंट थे यानी रेडियो मैसेज का कोई जवाब ना तो संग्राम दे रहा था और ना ही नवीन।
फायरिंग बंद हो चुकी थी। आतंकवादी ढेर हो चुके थे।
देश की सरहद एक बार फिर सुरक्षित थी!
लेकिन इस देश को हमेशा अपनी सुरक्षा की कीमत बहुत भारी देनी पड़ती है और उस दिन भी वही हुआ था!
सपोर्ट टीम के टीम लीडर कैप्टन आशुतोष ने संग्राम की तरफ से कोई आदेश ना मिलते देख अपनी टीम के साथ अपनी जगह से नीचे आकर संग्राम की टीम के हालात का जायजा लेने का फैसला लिया क्योंकि ना तो संग्राम और नवीन के साथ कोई संपर्क स्थापित हो पा रहा था और ना ही उनकी टीम के सदस्यों के साथ जो कुछ देर पहले कवर फायर देने में डटी हुई थी।
सब कुछ शांत था और चारों तरफ था मौत सा सन्नाटा!
कैप्टन आशुतोष जैसे ही संग्राम की टीम के सदस्यों के नजदीक पहुंचा तो जो उसने वहां देखा उसे देखकर उसे बड़ा धक्का लगा!
रोहित बरनवाल, आकाश चौधरी, अजमल खान, हरविंदर सिंह..... संग्राम की सारी टीम के सदस्य लहूलुहान होकर पहाड़ी के उस हिस्से में ज़मीन पर पड़े थे! उन सबने अपनी छाती पर गोलियां खाते हुए भी आतंकवादियों पर आक्रमण जारी रखा था। वो तब तक लड़ते रहे जब तक उन सबने दुश्मनो का सफाया ना कर दिया। हालांकि हाथों में हथियार अब भी थे लेकिन शरीर में जान नहीं थी! लेकिन चेहरे पर सुकून था अपने देश की सरहद को सुरक्षित रखने के अपने फ़र्ज़ को जान देकर भी निभाने का!
कैप्टन आशुतोष ने एक गहरी सांस लेते हुए फिर से संग्राम और नवीन के रेडियो पर कांटेक्ट करने की कोशिश की लेकिन सामने से फिर कोई जवाब नहीं आया। उसने मार लिया था कि ना तो नवीन बच पाया है और ना ही संग्राम! पहाड़ी के नीचे उसे गुफा के अंदर क्या हुआ था उसकी तो उन्हें भनक भी नहीं थी।
कैप्टन आशुतोष ने उसके बाद उन्हें वहां से एयरलिफ्ट करने के लिए संदेश भेजा। कुछ वक्त बाद आर्मी के हेलीकॉप्टर आसमान में गर्जना करते हुए घटनास्थल पर पहुंच गए।
संग्राम की टीम के सारे सदस्यों को एयरलिफ्ट करके श्रीनगर के आर्मी बेस हॉस्पिटल में ले जाया गया। वो सब तो मृत थे लेकिन फिर भी आर्मी के प्रोटोकॉल के हिसाब से बोलो किसी को मृत तब तक नहीं मानते जब तक कि उनके डॉक्टर उनको मृत ना मान ले!
बाकी के सारे लोग संग्राम और नवीन की खोज में जुट चुके थे। कुछ देर खोजने के बाद वो लोग गुफा तक पहुंचे। फिर वहां उन्हें जो भी देखा उसे देखकर उनके रोंगटे खड़े हो गए!
संग्राम और नवीन, खून से लथपथ ज़मीन पर एक दूसरे के साथ गिरे हुए थे। ऐसे लग रहे थे मानो निर्जीव हों!
और उनसे कुछ ही दूरी पर आतंकवादियों के शरीर भी ढेर हुए पड़े थे। उनमें से एक की तो इतनी बड़ी हालत थी कि वह पहचान में ही नहीं आ रहा था। उसकी खोपड़ी बहुत बुरी तरह से तोड़ दी गई थी। ऐसा लग रहा था कि बहुत खतरनाक हाथापाई में उसको मौत के घाट उतार दिया गया है।
कमांडोज में से एक ने आगे बढ़कर नवीन को संग्राम के ऊपर से अलग किया। वह अभी भी उसके ऊपर ऐसे गिरा हुआ था मानो अभी भी उसको किसी खतरे से बचा रहा हो।
कमांडो ने नवीन की धड़कनें और नब्ज़ चेक की और दूसरे कमांडो को गर्दन हिलाकर ना में ईशारा किया। उन कमांडोज़ के दिल पर उस वक़्त क्या बीत रही थी ये बस वही जानते थे।
नवीन की आंखें अभी भी खुली हुई थी। लेकिन सांसे थम चुकी थी!
वही जब संग्राम को चेक किया गया तो उस कमांडो की आंखों में चमक आ गई। उसकी साँसे रुक रुक कर ही सही लेकिन चल रहीं थीं।
ज़िंदा था वो!
उसे नवीन के बलिदान ने ज़िंदा रखा था!

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