अचानक ही उन्हें थोड़ी दूरी पर पेड़ो के पास कुछ हलचल होती हुई दिखाई दी।
नवीन और रोहित दोनों अपनी जगह पर ही रुक गए और नवीन ने हाथ उठाकर साइलेंट साइन लैंग्वेज में पीछे संग्राम को ईशारा किया - "तीन सौ मीटर आगे...कोई दिख रहा है। बैठा हुआ है पेड़ के नीचे"
संग्राम ने अपने पीछे चल रही टीम को भी वैसे ही ईशारा किया। उसका ईशारा पाकर दूसरी टीम भी रुक गयी। दोनों टीमें जहाँ खड़ी थीं वहीँ जम गयीं।
संग्राम ने हाथ से साइन लैंग्वेज में ईशारा करके मैसेज भेजा - "कन्फर्म करो। वही हैं?"
थोड़ी देर बाद नवीन ने जवाब दिया - "हाँ। वही हैं। दो से ज़्यादा लोग हैं।"
संग्राम ने फिर सवाल किया - "क्या यहाँ से एंगेज हो सकते हैं? फायर कर सकते हैं?"
इस बार रोहित का जवाब था - "नहीं, फासला ज़्यादा है।"
संग्राम ने चंद पलो में ही अपनी टीम को उनके करीब जाने का आर्डर दिया। तय हुआ कि थोड़ा करीब जाकर फायर किया जाएगा वरना इतनी दूरी पर अगर फायरिंग शुरू कर दी जाती तो निशाना ना लगने पर उनके भागने के चान्सेस बढ़ जाते।
दूसरी टीम को सिग्नल करके थोड़ी ऊँचाई ढूंढ़ने के लिए कहा ताकि ऊँचाई का उन्हें फायदा मिल सके और वो उनकी टीम को बेहतर कवर दे सकें। खुद उसने अपनी टीम को रेंगकर आगे बढ़ने का आर्डर दिया।
अब संग्राम और उसकी टीम एक दूसरे से थोड़ी थोड़ी दूरी पर उस बर्फ के बीच रेंगते हुए आगे बढ़ रहे थे। बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे सब ताकि उनके वहां होने की आहट उन्हें ना हो।
लगभग सौ मीटर की दूरी रह जाने के बाद संग्राम ने साइन लैंग्वेज में ही उन्हें रुकने का आदेश दिया। सब वहीँ रुक गए और धीरे धीरे एक दूसरे से दूरी पर जाकर उन्होंने अपनी अपनी पोजीशन ले ली।
सभी ने अपने हथियार तैयार कर लिए। फिर संग्राम का ईशारा मिलते ही सबने एक साथ ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।
पूरे सात मिनट तक बिना रुके गोलियों की वर्षा होती रही जिससे वहां की बर्फ तहस नहस होकर उड़ती हुई जा रहीं थीं जिससे कुछ भी साफ साफ नहीं दिखाई दे रहा था।
संग्राम ने सबको फायरिंग रोकने का ईशारा किया। उसके ईशारा करते ही गोलियों की गरजना शांत हों गयीं। कुछ देर रेंगने के बाद थोड़ा करीब जाकर जब चेक किया गया तो पता चला वहां कोई नहीं था। कुछ इस्तेमाल किये हुए इंजेक्शन्स थे और कुछ केमिकल्स से भरे हुए। शायद वो लोग खाने की जगह इन्हें इस्तेमाल कर रहे थे ताकत बनाये रखने के लिए।
कुछ खून भी था जो रास्ते में बिखरा हुआ था जिसका मतलब था कि इस गोलीबारी में ज़रूर कुछ आतंकवादी ज़ख़्मी हुये थे और इसका मतलब ये भी था कि अब वो लोग अपने एक या दो ज़ख़्मी साथियों को लेकर ज़्यादा दूर तक नहीं जा पाएंगे।
संग्राम ने अपनी टीम के साथ सफ़ेद बर्फ पर पड़े ख़ूनी धब्बो का पीछा करना शुरू कर दिया जो पहाड़ी से नीचे की ओर जा रहे थे।
उसने तुरंत कवर टीम को भी उस पहाड़ी के ऊपर वाली चोटी की ओर बढ़ने का रेडियो सन्देश दिया ताकि वो वहां पहुंचकर उनकी असाल्ट टीम को बेहतर कवर फायर दे सकें। कवर टीम के पहुँचते ही संग्राम की टीम ने भी धीरे धीरे पहाड़ी से नीचे उतरना शुरू किया। एक दूसरे से फासला बरकरार था।
चलने की गति ऐसी थी कि आसपास की हवा को भी उनके वहां होने का एहसास ना हो।आतंकवादी अपने ज़ख्मी साथी को लेकर नीचे उतरकर उस पहाड़ से नीचे बहती नदी की तरफ बढ़ रहे थे ऐसा उनका अंदाज़ा था लेकिन संग्राम ने उनके हर कदम का काउंटर प्लान बना रखा था। पूरी तैयारी के साथ आया था वो।
नदी के पास एक दम पहाड़ से सटकर आरआर भी प्लान के मुताबिक तैनात थी ताकि वो अगर भागकर पहाड़ भी उतरे तो उनका सामना वहां भी आर्मी से ही हो। बचने का कोई चांस नहीं देने वाला था वो। उसका प्लान एकदम सटीक था.... हमेशा की तरह!
संग्राम और उसकी टीम उनका शिकार करने के लिए पहाड़ के ऊपर से नीचे उतर रही थी और उन्हें कवर फायर देने के लिए एक टीम ठीक ऊँचाई पर तैनात की गयी थी। पहाड़ के नीचे आरआर की दो टीमें तैनात थी तो पहाड़ उतरकर नदी के रास्ते भाग पाना नामुमकिन! ऊपर कुआँ और नीचे खाई। ऐसे में उन आतंकवादियों के पास बीच रास्ते में ही कहीं जंगल में छिपने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था।
आतंकवादी हर तरह से फंस चुके थे।
सूर्यास्त हो चुका था और उसके साथ ही अंधेरा छाने लगा था। सर्द हवाओं के साथ ठंड भी बढ़ने लगी थी। संग्राम ने टीम से तकरीबन चालीस मीटर आगे रेंग रहे नवीन और रोहित को साइन लैंग्वेज में ईशारा किया - "ध्यान से। उन्हें पता है हम यहाँ हैं। कोई जल्दबाज़ी नहीं। हर कदम ध्यान से"
उसका ईशारा समझ नवीन ने हाँ में सर हिलाया और उस संकरी सी बर्फ से ढकी जगह पर धीरे से ही आगे बढ़ा। तकरीबन तीस फ़ीट नीचे एक झरना था जो बर्फ में जमा हुआ था।
वो पहाड़ के उस हिस्से की तरफ बढ़ रहा था जहाँ बर्फ के नीचे ज़मीन नहीं थी जिसकी वजह से वो भी अच्छे से जमी नहीं थी। उसे जब तक समझ आया तब तक देर हो चुकी थी!
और फिर वो हुआ जो होना ही था।
जिसे कोई बदल नहीं सकता था..... ना उसकी ट्रेनिंग, ना संग्राम की परफेक्ट प्लानिंग और ना ही कुछ देर पहले संग्राम की उसको दी हुई चेतावनी।
बर्फ के टूटने की हल्की आवाज़ के साथ नवीन उस पहाड़ी से नीचे गिर गया! पीछे रेंग रहे उसके साथियों को थड थड थड.... उसके नीचे गिरने की आवाज़ें सुनाई दीं। वो पहाड़ी के तकरीबन तीस फ़ीट नीचे उस जमे हुए झरने के ऊपर गिरा था।
उससे कुछ फ़ीट दूर, संग्राम अचानक हुए इस हादसे की वजह से सकते में आ गया। उसने तेज़ी से आगे बढ़कर पहाड़ी के नीचे देखा जहाँ सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं था। वो उसे आवाज़ देना चाहता था लेकिन ऑपरेशन के बीच में ये करना बहुत ख़तरनाक साबित हो सकता था।
नीचे से कोई आवाज़ नहीं आ रहीं थी। संग्राम ने टीम को वहीँ पोजीशन पर छोड़कर खुद नीचे जाने का फैसला लिया। उसकी टीम का कोई और फौजी भी होता तो वो ये ज़ोखिम ज़रूर उठाता लेकिन यहाँ तो नवीन था! उसे कैसे छोड़ देता?
और वो धीरे से और बहुत ध्यान से उस पहाड़ से नीचे झरने के पास उतरा....वही जगह जहाँ नवीन कुछ समय पहले गिरा था।
नवीन को कोई नुक्सान हुआ होगा, ये बात संग्राम मानने को तैयार नहीं था। अजीब सी ख़ामोशी थी चारो ओर। वो धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। अचानक रात के अँधेरे में ढके उन बर्फीले पहाड़ों की शान्ति गोलियों की तेज़ आवाज़ से भंग हुई।
संग्राम से कुछ ही दूर फायरिंग शुरू हुई थी। गोलियों की आवाज़ से साफ ज़ाहिर था कि फायरिंग एक तरफा नहीं थी बल्कि दो तरफा थी। एक तरफ से आतंकवादियों की बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की आवाज़ थी और दूसरी तरफ से एक अकेली बन्दूक से गोलियां चलने की आवाज़ थी। संग्राम को समझने में देर नहीं लगी कि आतंकवादियों का सामना करने वाली वो अकेली बन्दूक स्पेशल फोर्स में इस्तेमाल की जाने वाली बंदूक है।
मतलब साफ था वो और कोई नहीं, नवीन था! वो ज़िंदा था! ठीक था!
संग्राम को मानो एक अजीब सा जोश आ गया था। उसने ऊपर पोजीशन पर रखी दोनों टीम्स को रेडियो के ज़रिये सन्देश दिया कि उसके इशारे पर कवर फायर देने के लिए तैयार रहें लेकिन उसके आदेश के बिना कोई फायर नहीं करेगा वरना नवीन को भी वो गोलियां लग सकती थीं। उसने सन्देश दिया कि वो नवीन को फायर ज़ोन से बाहर लाकर उसे ऊपर ले आएगा। लेकिन फिर अचानक गोलिया चलना बंद हों गयीं। संग्राम ने नवीन को रेडियो सन्देश भेजा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
गोलियों के बारूद की बदबू के सहारे वो ज़मीन पर रेंगते हुए नवीन के नज़दीक पहुँचा और उसे घसीट कर फायर ज़ोन से एक तरफ पत्थरों की बनी छोटी सी गुफा में ले गया। वो बुरी तरह से ज़ख़्मी था - पहले ऊँचाई से गिरने की वजह से और बाद में ज़ख्मी होने के बावजूद गोलीबारी में अकेले खड़े रहकर आतंकवादियों की गोलियों का सामना करते हुए।
अभी कुछ पल बीते ही थे कि फायरिंग दोबारा शुरू हो गयी। संग्राम की मौजूदगी को आतंकवादियों ने भाँप लिया था और वो उस गुफा की तरफ बढ़ रहे थे।
"हथियार.... नहीं है यहाँ। वो हथियारों के लिए.... नहीं आएं हैं" नवीन ने ज़ोर लगाकर अपनी बात पूरी की। संग्राम को समझ आ गया था जो वो कहना चाहता था।
वो छह आतंकवादी बर्फीले पहाड़ हथियारों के लिए नहीं चढ़ रहे थे। वो अपने साथी आतंकवादियों के लिए यहाँ आए थे जो यहाँ की गुफाओं के अंदर छुपे हुए थे! वो लोग अब छह नहीं रह गए थे। संग्राम ने गनफायर से अंदाज़ा लगाया कि जो दो लोग शुरूआती फायरिंग के दौरान ज़ख़्मी हुए थे वो मर चुके हैं। नवीन की तरफ से की गयी फायरिंग में भी दो ढेर हो चुके थे। अब बाहर तकरीबन सात लोग थे और उनका सामना करने वाले बस दो!
संग्राम ने रेडियो के ज़रिये कैप्टेन आशुतोष की टीम को ऊपर से मोर्चा सँभालने का आदेश दिया और अपनी टीम को भी फायरिंग शुरू करने का आदेश दिया।
संग्राम से आर्डर मिलते ही कैप्टेन आशुतोष ने नीचे आकर संग्राम की टीम के साथ मिलकर मोर्चा संभाल लिया वहीं संग्राम की टीम ने ऊपर से गोलियों की ज़ोरदार बारिश उन आतंकवादियों पर शुरू कर दी।
उन्होंने भी ऊपर की तरफ जवाबी फायर करना शुरू कर दिया। उस रात शांत सी घाटी एक भीषण मुठभेड़ से दहलकर आग उगल रही थी।
"ध्यान रखना सर....! माँ बाबा अकेले रह जाएंगे..... दीदी की शादी..... शादी के बाद उन्हें भी देखते रहना.....मेरे बिना वो सब अकेले हो जाएंगे.....ख्याल रखना"
नवीन ज़ख़्मी हालत में बड़बड़ा रहा था।
"शट अप पांडे! जस्ट शट अप! हम दोनों यहाँ से बाहर निकलेंगे। इन सालों को मारकर हम दोनों यहाँ से बाहर निकलेंगे और जहाँ भी जाएंगे, दोनों साथ जाएंगे!" वो गुस्से में उसके करीब जाकर बोला।
अब संग्राम ने भी गुफा से फायरिंग शुरू कर दी। वो जैसे तैसे नवीन को बाहर निकालना चाहता था। ताकि ऊपर पहुंचकर सपोर्ट टीम से उसे मेडिकल हेल्प मिल पाए लेकिन इतनी भीषण गोलीबारी में निकलना मुश्किल हो रहा था।
बाहर तीन आतंकवादी ढेर हो चुके थे और बाकी चार गुफा की तरफ बढ़ रहे थे। उनमें से एक गुफा के रास्ते में ही संग्राम की गोली से ढेर हो गया। बाकी बचे तीनों में से पहले ने संभलकर जैसे ही गुफा के अंदर कदम रखा, संग्राम उस पर टूट पड़ा। उस आतंकवादी के गले पर उसने अपनी बाज़ू लपेटकर उसकी सांस रोक दी। वो बुरी तरह से छटपटा रहा था। दूसरे ने अंदर आते ही संग्राम पर गोलियां दाग़ दी।
गोली एक कंधे पर लगी और दूसरी बाज़ू पर लेकिन संग्राम ने अपनी पकड़ ढीली करने की बजाय और कस ली और उसे वहीँ ढेर कर दिया। उस आतंकवादी ने और गोलियां दागी लेकिन संग्राम ने उस मरे हुए आतंकवादी की लाश को कवच की तरह इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ते हुए उसका गला पकड़ लिया और बुरी तरह से उसकी गर्दन मरोड़ दी।
इतने में पीछे से अकेले बचे आतंकवादी ने मोर्चा संभाला और दनादन गोलियां संग्राम की ओर दाग़ दीं।
संग्राम अभी मुड़ा ही था कि नवीन ने सामने आकर संग्राम को कसकर गले लगा लिया और सारी गोलियां खुद पर ले लीं।
संग्राम को जब समझ आया तो उसने उसे धक्का देकर खुद से दूर हटाने की बहुत कोशिश की लेकिन नवीन में ना जाने क्या जूनून था उस वक़्त....वो कस कर उसके गले लगा रहा और टस से मस ना हुआ।
"पांडे! हटो!!!!" संग्राम दहाड़ उठा! ज़ोर से चिल्लाने लगा!
लेकिन नवीन हिला तक नहीं। वो मुस्कुरा रहा था।

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