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भाग - 19

आर्मी को शक था कि उस पहाड़ी पर हथियार हो सकते हैं जो वहां दो ही कारणों की वजह से पहुंचे होंगे। पहला - कहीं किसी पुरानी घुसपैठ में वहां हथियार छुपा दिए होंगे ताकि किसी इमरजेंसी में उनके आने वाले साथी इनका इस्तेमाल कर सके या दूसरा - किसी लोकल की मदद से वहां हथियार पहुंचाये गए होंगे। आखिर उन ऊँचे पहाड़ों वाले इलाके के बारे में उनसे ज़्यादा कौन जानता होगा।

ड्रोन से आयी वीडियो साफ बता रही थी कि वो वहीँ हैं। अब वो भी वहां पर दो ही कारणों से हो सकते थे - या तो हथियारो के लिए जिससे वो देश के अंदर कुछ बड़ा नुक्सान कर सके या सीमा पार वापिस भागने के लिए। दोनों ही सूरतों में आर्मी के लिए वो छह आतंकवादी खतरे की घंटी थे।

संग्राम उन्हें वापिस भागने नहीं देना चाहता था और मिशन पर जाने के लिए अड़ा हुआ था। लेकिन जब तक हाई कमांड से आर्डर नहीं आता तब तक वो कुछ नहीं कर सकता था क्यूंकि सेना में सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है अनुशासन। वहां अपनी मर्ज़ी चलाने की इजाज़त किसी को भी नहीं।

वहीँ जब कमांडोज़ को सूबेदार उपाध्याय के तरफ से बुलावा आया तो वो जानते थे कि संग्राम सर मिशन पर जाने के लिए अपनी टीम सेलेक्ट कर रहे हैं। उसे यकीन था स्पेशल फोर्स को मिशन में दाखिल होना ही पड़ेगा। आदेश कभी भी आ सकता था और वहां सब जानते थे कि संग्राम का सोचा हुआ कभी गलत नहीं होता।

आधी रात को संग्राम के सामने सभी कमांडोज़ कतारों में सावधान मुद्रा में खड़े थे। सभी के चेहरे ऐसे थे मानो मौत बरस रही हो। सख्त और रौबदार। एक सैनिक के लिए ये सबसे ख़ास पल होता है जहाँ वो अपनी भारत माता के लिए अपना सब कुछ न्योशावर करने की लालसा लिए धधक रहा होता है।

संग्राम ने दर्जन भर सैनिकों की एक टीम चुनी थी। छह - छह सैनिकों की दो टुकड़ियाँ थीं। एक को संग्राम खुद लीड करने वाला था और दूसरी को लीड करने वाला था उसका जूनियर - कैप्टन आशुतोष चक्रवर्ती।

मिशन के प्लान के मुताबिक संग्राम की टीम सामने से आतंकवादियों से भिड़ने वाली थे। उस टीम में थे - नवीन कुमार पांडे , रोहित बरनवाल, आकाश चौधरी, अजमल खान, हरविंदर सिंह। वहीँ दूसरी ओर कैप्टेन आशुतोष की टीम सपोर्ट टीम थी। उस टीम में थे - बी.जोसफ, अतुल कुमार, निरंजन शर्मा, ईशान मिश्रा, अशोक सिंह।

वहीँ एक और टीम चुनी गयी थी जो कैप्टेन रवि कुमार वर्मा के नेतृत्व में स्टैंडबाय मोड पर रखी गयी थी।

जवाबी कारवाई की सारी प्लानिंग हो चुकी थी। उस रात के कुछ घंटो में मिशन की हर डिटेल उन तीनों टीमों ने घोल कर पी ली थी मानो।

सभी के चेहरे पर जूनून था!

और ऑर्डर्स का इंतज़ार!

रात खत्म हुई और दिन के उजाले के साथ पैराशूट रेजिमेंट की उस नवीं बटालियन के कमांडोज़ के लिए मिशन में दाखिल होने के ऑर्डर्स भी पहुँच गए - सर्च एंड डिस्ट्रॉय!

आर्डर का मतलब साफ था - हालात बुरे हैं और इनपुट के मुताबिक घुसपैठिये कोई आम आतंकवादी नहीं थे और बहुत गहनता से बनाई हुईं योजना के तहत दाखिल हुए थे। कुछ बड़ा होने वाला था।

किसी भी हालत में रोकना था उन्हें।

कुछ ही मिनटों में दोनों टीमें आर्मी बेस से बाहर निकलने के लिए तैयार थीं।

********

वही नंदिनी अभी स्कूल पहुंचकर स्टॉफरूम में बाकी टीचर्स से मिल ही रही थी कि कंधे पर उठाए उसके बैग में उसका फ़ोन बजने लगा जो वो साइलेंट मोड पर डालना भूल गयी थी।

उसने फ़ोन देखा तो नवीन की वीडियो कॉल थी जो वो अक्सर मिशन में जाने से पहले नंदिनी को करता था। तो उस दिन भी कुछ नया नहीं था।

नंदिनी को भी आदत थी। समझ गयी थी वो कि वीडियो कॉल पर वो क्या कहने वाला है - फ़ोन बंद रहेगा कुछ दिन। ज़रूरी काम है।

और उसका "ज़रूरी काम" होता था एक मिलिट्री ऑपरेशन जो कितने दिन चलेगा किसी को कोई अंदाज़ा नहीं।

उसने एक गहरी सांस ली और चेहरे पर दृढ़ मुस्कुराहट लिए वीडियो कॉल पिक की।

स्क्रीन बहुत हिल डुल रही थी। बहुत ही मुश्किल से नवीन का आधा अधूरा चेहरा दिखाई दे रहा था। कुछ भी साफ नहीं था। शायद सिग्नल कमज़ोर थे।

"फ़ोन बंद.... रहेगा..... दीदी..... काम.... है" बहुत मुश्किल से नवीन की टूटी फूटी आवाज़ आई। नंदिनी ने बात को समझते हुए हाँ में सर हिलाया।

नवीन को भी नंदिनी का चेहरा साफ नहीं दिख रहा था।

"ध्यान.... रखना.... नवी" उसकी आवाज़ भी नवीन तक टूटी फूटी ही पहुंची।

"वापिस.....आकर.... फ़ोन.... करूंगा"

बहुत मुश्किल से दोनों के शब्द जुड़कर एक दूसरे को अपना मतलब समझा पा रहे थे।

यूँ तो दोनों भाई बहन को आदत थी ऐसे अचानक की जाने वाली वीडियो कॉल्स की जिसमें बिना कुछ साफ साफ कहे भी एक सैनिक अपने परिवार को ये बता देता है कि वो देश के प्रति अपना फ़र्ज़ निभाने जा रहा है।

लेकिन उस दिन दोनों के मन में ही अजीब सी बेचैनी थी जिसे एक दूसरे के सामने मुस्कुराहट के पीछे छुपाया जा रहा था। डर था कि पता नहीं सामने वाले का चेहरा दोबारा देखने को मिलेगा भी कि नहीं! ये ख्याल आते ही नंदिनी ने तेज़ी से अपना सर झटक दिया और नवीन के मुस्कुराते चेहरे को देखने लगी जो अभी भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था।

नंदिनी को अगले ही पल उसके हाथ हिलाने का ईशारा दिखा और कॉल कट गयी। कुछ पल के लिए ना जाने क्यूँ वो अपने फ़ोन के स्क्रीन को एकटक देखती रही।

नज़र कुछ धुंधली हुई तो एहसास हुआ उसकी आँखें भर आयी थीं। दम घुटने लगा था उसका। मन भारी हो रहा था। अचानक ही नंदिनी कुर्सी पर बैठ गयी।

"नंदिनी मैम! आप ठीक हैं?" एक साथी अध्यापिका ने उसके चेहरे के उड़ते हुए रंग को देखकर कहा।

नंदिनी ने हाँ में सर हिलाया। उसे खुद समझ नहीं आया कि अचानक हुआ क्या!

उस अध्यापिका ने जल्दी से पानी मंगवाया और पानी पीने के बाद नंदिनी को कुछ आराम मिला।

"हुआ क्या था?" साथी अध्यापिका ने चिंता जताते हुए पूछा।

"पता नहीं! गर्मी की वजह से शायद..."

"ध्यान रखिये मैम अपना"

"मैं ठीक हूं मैम....क्लास के लिए देर हो रही है" नंदिनी सारे बुरे ख्यालों को पीछे धकेलने की कोशिश करती हुई बोली और उठकर क्लासरूम की तरफ बढ़ गयी। फिर वो वहीं बच्चों के साथ व्यस्त हो गयी। हालांकि उसका मन बहुत अशांत था और ये पहली बार हुआ था।

"उसके संग्राम सर संभाल लेंगे उसे.... हमेशा की तरह" अपने सीने पर हाथ रखकर नंदिनी अचानक बुदबूदाई और एक गहरी सांस छोड़कर क्लास में फिर व्यस्त हो गयी। नवीन की सुरक्षा को लेकर संग्राम पर पूरा भरोसा था उसे, ना जाने क्यूँ...पर भरोसा था। दूसरों के लिए नवीन एक खतरनाक कमांडो था लेकिन नंदिनी के लिए तो बस वो उसका छोटा भाई था जिसे उसने अपने बेटे की तरह बड़ा किया था।

वहीँ दूसरी ओर पैरा कमांडोज़ की दोनों टीमें दो हेलीकाप्टर्स में घटनास्थल की तरफ रवाना हो चुकी थीं। दिन के उजाले में वो लोग ऑपरेशन्स करते नहीं थे, लेकिन स्थिति गंभीर थी। हालात कितने नाजुक थे, ये इसी बात से साफ था कि भारतीय जल सेना की स्पेशल फोर्स विंग "मार्कोस" को सीमा के पास उस पहाड़ों की श्रृंखला के साथ सटी नदी पर चौकसी बढ़ाने के आदेश मिल चुके थे ताकि वो लोग नदी के सहारे भाग ना पाए।

सेना के लिए उन्हें ना रोक पाने का मतलब था देश के लिए एक बड़ा नुक्सान जिसमें कई मासूमों की जान खतरे में पड़ सकती थी।

नवीन ने हेलीकाप्टर से एक नज़र नीचे ज़मीन पर डाली। सफ़ेद बर्फ की चादर से ढके वो पहाड़ बहुत खूबसूरत लग रहे थे। ये कश्मीर का वो हिस्सा था जो ज्यादातर बर्फ में ही रहता था।

कुछ ही समय में दोनों हेलीकाप्टर्स उस पहाड़ की श्रृंखला की एक चोटी पर पहुंचकर ज़मीन के कुछ फ़ीट ऊपर आकर रूक गए। हेलीकाप्टर्स की आवाज़ उन वादियों की शान्ति भंग कर चुके थे और इस बात का अंदाज़ा कमांडोज़ को था कि वो इस मिशन का सरप्राइज एलिमेंट खो चुके थे। इन बर्फ से ढके पहाड़ों के जंगलों में छिपे आतंकवादियों को उनके आने की भनक लग चुकी होगी और वो भी शायद तैयार ही मिलें। लेकिन वो हर परिस्थिति में भिड़ने के लिए तैयार थे।

सबसे पहले संग्राम की टीम हेलीकाप्टर से एक - एक करके पहाड़ पर उतरी। थोड़ी दूरी पर कैप्टन आशुतोष की टीम भी उतरी। कुछ ही समय में दोनों हेलीकाप्टर्स हवा में उठकर आँखों से ओझल हो गए।

अब दोनों टीमों के सदस्य उस पहाड़ी पर फ़ैल गए। संग्राम की टीम आगे थे और आशुतोष की टीम एक तय दूरी पर उनके पीछे चल रहीं थीं। दोनों ही टीमें बिल्कुल वैसे ही आगे बढ़ रहीं थीं जैसे एक शिकारी भेड़ियों का दल आगे बढ़ता है यानि की वुल्फ फार्मेशन जिसमें दो कमांडोज़ टीम से आगे चलते हैं और वो दो कमांडोज़ सारी टीमों के लिए आँख और कान का काम करते हैं।

नवीन और रोहित टीम से थोड़ी आगे चारों तरफ अपनी नज़र घुमाते हुए अपनी हाईटेक राइफल्स ताने आगे बढ़ रहे थे।

अचानक ही उन्हें थोड़ी दूरी पर पेड़ो के पास कुछ हलचल होती हुई दिखाई दी।

नवीन और रोहित दोनों अपनी जगह पर ही रुक गए और नवीन ने हाथ उठाकर साइलेंट साइन लैंग्वेज में पीछे संग्राम को ईशारा किया - "तीन सौ मीटर आगे...कोई दिख रहा है। बैठा हुआ है पेड़ के नीचे"

संग्राम ने अपने पीछे चल रही टीम को भी वैसे ही ईशारा किया। उसका ईशारा पाकर दूसरी टीम भी रुक गयी। दोनों टीमें जहाँ खड़ी थीं वहीँ जम गयीं।

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Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.