अगले दिन की सुबह रोशनी तो लाई थी लेकिन वो रोशनी जल्द ही बहुत से घरों को अँधेरे में डूबाने वाली थी।
जम्मू एवं कश्मीर के बारामूला जिले के साथ सटे बॉर्डर के पास भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट के एक टुकड़ी का सुबह के तीन बजे पेट्रोलिंग के वक़्त कुछ हथियारबंद आतंकवादियों से कुछ दूरी पर आमना सामना हुआ था।
दोनों तरफ से गोलीबारी हुई जिसके बाद वो सभी आठ से दस आतंकवादी घने जंगलों का सहारा ले वहां से भाग निकले।
इस घुसपैठ की सूचना जल्द ही श्रीनगर स्थित आर्मी हेडक्वार्टर्स तक पहुँच गयी थी। जिन्होंने तुरंत सेना की राष्ट्रीय राइफल्स तक इसकी सूचना दी। उनकी दो टुकड़ियाँ तुरंत घटनास्थल पर रवाना कर दी गयीं थीं।
वही दूसरी ओर दिल्ली में संग्राम और नवीन ने घर से निकलने की पूरी तैयारी कर ली थी। नवीन बैग लेकर बाहर हॉल में आया तो संग्राम का सामान वहीँ था लेकिन वो वहां नहीं था।
कावेरी जी और यशवंत जी सामने बैठे उसे देखकर हल्का सा मुस्कुराने लगे।
"सर कहाँ है?" उसने सवाल किया लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
"विक्रम के कमरे में" आख़िरकार यशवंत जी बोले। कावेरी जी ज़रा हल्के से मुस्कुरा दी। उन्हें ऐसा करने में कितनी मुश्किल हो रही होगी नवीन अच्छे से समझ रहा था।
वो ये भी समझ रहा था कि विक्रम के जाने के बाद संग्राम अपने ही परिवार से भावनात्मक तौर से थोड़ा दूर सा हो गया है।
उसने खुद भी नोटिस किया था कि वो रात को अकेले विक्रम के कमरे में बहुत समय तक रहता था। कावेरी जी और यशवंत जी को शायद अब इस सबकी आदत हो चुकी थी। वो कुछ ना कहते।
एक भी सदस्य चला जाए तो परिवार पहले जैसे कहाँ रह पाते हैं? और वो भी तब जब घर का जवान बेटा गया हो। कुछ भी पहले जैसा नहीं रहता।
वो अपने ख्यालों में ही खोया था कि तभी उसे कावेरी जी की आवाज़ सुनाई दी - "नवीन बेटा, मैं आपके लिए खाना लगवा रहीं हूं। आकर खा लीजिये"
"संग्राम सर नहीं खाएंगे?"
"नहीं। वो सफर से पहले नहीं खाते। बचपन की आदत है उनकी खाने के मामले में बहुत लापरवाह हैं। लेकिन आप चिंता मत करिये, फ्लाइट में खा लेंगे कुछ। अब तो हमने भी उन्हें छोटी छोटी बात पर कहना छोड़ दिया है। कोई सुने तो हम बोलें" बोलते हुए वो खाने के टेबल पर नवीन के लिए खाना लगवाने लगीं।
नवीन बिना कुछ बोले खाना खाने बैठ गया।
दोनों को खाने के टेबल पर बैठे बतियाते देख यशवंत जी मुस्कुराने लगे। उनकी पत्नी काफी अरसे बाद ऐसे हँस बोल रहीं थीं। उन्हें देखकर बहुत अच्छा लग रहा था।
कुछ देर बाद संग्राम कमरे से बाहर आ गया। नवीन तब तक खा चुका था।
"चलें?" उसने आते ही नवीन से पूछा तो उसने भी चलने के लिए सर हिला दिया।
संग्राम ने यशवंत जी के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया।
"सदैव यशस्वी भव: ......! विजयी बनो, पूर्वजों का नाम रोशन करो, देश का नाम रोशन करो" यशवंत जी ने बड़े ही गर्व से संग्राम को कंधों से पकड़कर बोला।
नवीन दोनों को मुस्कुराते हुए खड़ा देख ही रहा था कि संग्राम ने उसे भी इशारा किया तो उसने भी हिचकिचाते हुए उसके पिता के पाँव छू लिए।
"यशस्वी भव: ....! अपने समाज और देश का नाम रोशन करो" उन्होंने उसे भी आशीर्वाद दिया।
"अपना ध्यान रखियेगा।" संग्राम ने कावेरी जी के गले लगते हुए कहा।
"आप भी रखियेगा और हाँ हो सके तो कोई ढूंढ लीजिये अपने लिए।" कावेरी जी ने मुस्कुराते हुए संग्राम को देखकर बोला।
संग्राम ने उनकी बात सुनकर अपनी भंवे सिकोड़ ली। वो अपनी नाखुशी बस ऐसे ही ज़ाहिर करता था। बस बोलता कुछ नहीं था।
"कावेरी, वो वहां देश के दुश्मनो को मौत के घाट उतारने जाता है.... लड़कियां ढूंढ़ने नहीं।" यशवंत जी ने हँसते हुए कहा। कावेरी जी ने उन्हें चिढ़ते हुए घूरा लेकिन वो हँसते रहे। नवीन भी उनकी हंसी में शामिल हो गया।
"आप इधर आइए" कावेरी जी ने नवीन को भी गले लगाया और प्यार से उसके सर को सहलाते हुए बोला - "आपसे एक वादा चाहिए, अब से छुट्टी मिलने पर आप हमसे मिलने ज़रूर आएंगे और हाँ...." बोलते हुए वो उसके कान के पास जाकर फुसफुसाने लगीं।
संग्राम सीने पर हाथ बांधे दोनों को देखकर सर हिला रहा था।
"संग्राम सर पर नज़र रखियेगा। कोई भी लड़की आसपास दिखे तो सीधा हमें फ़ोन करना है आपको। हमने आपको नंबर दिया है ना अपना? उसके बाद हम आपको बताएंगे कि आगे क्या करना है" कावेरी जी नवीन के कान में बोलीं।
"वादा रहा" नवीन ने हँसते हुए हाँ में सर हिला दिया। कितनी इच्छा थी उनकी कि संग्राम की जिंदगी में कोई लड़की होती तो शायद वो थोड़ा खुलकर जी पाता। नवीन समझ रहा था।
"अगर आप दोनों का हो गया हो तो चलें?" संग्राम ने बोला तो नवीन ने भी अपना बैग उठा लिया।
दोनों विदा लेकर घर से एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए।
वहीँ दूसरी ओर कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स को कुछ सफलता हाथ लगी थी। आरआर (राष्ट्रीय राइफल्स) ने जंगलों में दो आतंकवादी मार गिराए थे लेकिन छह फिर भारी गोलाबारी का सहारा लिए वहां से भाग निकले थे। हालांकि उनका बहुत सारा गोला बारूद का सामान पीछे छूट गया था। लेकिन अभी भी अपने हाई टेक हथियारो से लेस होकर गायब हुए थे वो।
अब आरआर भेड़ियों की तरह उनके पीछे पड़ी हुई थी। उनमें फ़्रस्ट्रेशन भी था और गुस्सा भी।
संग्राम और नवीन, कश्मीर में अपने आर्मी बेस पहुँच चुके थे।
आते ही संग्राम को भारी घुसपैठ की खबर मिल चुकी थी। उसने अपने सीनियर से अपनी टीम के साथ आरआर को ज्वाइन करने की परमिशन मांगी लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
"अभी पैरा कमांडोज़ के वहां जाने का वक़्त नहीं आया है। वेट फॉर द ऑर्डर्स। लेकिन तैयार रहो" कमांडिंग ऑफिसर ने जवाब दिया।
जितनी भी जानकारी अब तक आर्मी को मिली थी उसी के मुताबिक संग्राम ने मिशन की प्लानिंग शुरू कर दी थी। उसे पता था स्पेशल फोर्सस को मिशन में जाने के ऑर्डर्स कभी भी आ सकते थे। उसने सारे नक़्शे और ऑन ग्राउंड जो भी इनफार्मेशन उनके पास मौजूद थी, सबको खंगालना शुरू कर दिया था।
मेजर संग्राम सिंह सांगेर, पैराशूट रेजिमेंट की नवीं बटालियन का जांबाज़ ऑफिसर अपनी इसी खासियत की वजह से जाना जाता था। उसका प्लानिंग मोड तुरंत ही ऑन हो जाता था। वो आर्डर मिलने से पहले ही तैयार रहता था।
सीनियर्स में पक रही खिचड़ी की भनक जूनियर्स तक भी पहुँच गयी थी। संग्राम सर किसी मिशन की प्लानिंग कर रहे हैं, ये बात पैराट्रूपर्स में फ़ैल गयी थी। हर कोई मिशन का हिस्सा बनना चाहता था।
सब इसी बारे में बात कर रहे थे लेकिन नवीन चुपचाप शांत सा बैठा था।
"इसे क्या हुआ?" रोहित ने आते ही अजमल से पूछा।
"अपने हथियार तैयार करके आराम से बैठें हैं ज़नाब क्यूंकि इन्हें पूरा यकीन है कि सांगेर साहब तो इन्हें साथ लेकर ही जाएंगे"
"लेकिन मैं तो पक्का जा रहा हूं!"
"तुम तो पिछली बार भी गए थे ना अनंतनाग?!" रोहित की बात सुनकर अजमल भड़क गया।
"तो तुम भी तो गए थे! इस बार सिर्फ मैं जाऊंगा"
"ओये लड़को! शांत बैठो ओये! सबको मौका मिलेगा भई शिकार पर जाने का। बहुत मुर्गे आएं हैं इस बार उस पार से। पैरा वालों का बुलावा पक्का है। तुम सब तैयारी कर लो" लांस नायक चौधरी ने आते ही कहा।
इसी तरह चौबीस घंटे बीत चुके थे लेकिन आतंकवादियों का कोई नामो निशान नहीं था। समझ नहीं आ रहा था कि ज़मीन निगल गयी या आसमान खा गया। आरआर की दो टुकड़िया उन्हें ढूंढ़ने में लगीं थीं लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा था।
अगले दिन आर्मी के श्रीनगर स्थित हेडक्वार्टर्स में रिले हुई एक चौबीस सेकेंड की वीडियो ने सारी घटनाक्रम की दिशा बदल दी थी।
भारतीय वायु सेना के सरहद पर निगरानी रखने वाले ज़मीन से तकरीबन बारह हज़ार फ़ीट ऊपर उड़ते हुए हेरोन ड्रोन ने एक ऊँची बर्फ से ढकी पहाड़ी के शिखर पर नए बने हुए जूतों के निशान कैप्चर किये थे।
उसी की वीडियो थी जो इस वक़्त आर्मी के पास थी। जिस जगह की ये वीडियो थी वो पहाड़ों की श्रृंखला उन जंगलों से तकरीबन पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर थी जहाँ आखिरी बार उन आतंकवादियों को सेना की राष्ट्रीय राइफल्स ने घेरने की कोशिश की थी और उस कोशिश में उनके तीन जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। उन घने जंगलों और उस पहाड़ों की श्रृंखला के बीच एक बड़ी सी नदी आती थी जो आगे जाकर सरहद के दूसरी तरफ बहने लगती थी।
"दे विल फॉल बैक टू द अदर साइड ऑफ़ द बॉर्डर ध्रु दिस रिवर (वो लोग इस नदी के ज़रिये बॉर्डर के उस पार वापिस चलें जाएंगे)" कण्ट्रोल रूम में बैठे संग्राम की आवाज़ गूँज उठी।
वहां प्रोजेक्टर पर वही वीडियो चल रही थी। कण्ट्रोल रूम में इस वक़्त संग्राम और उसके कुछ सीनियर ऑफिसर्स थे।
"उनका सामान उनके पास नहीं है। जो इनफार्मेशन मिली है उसके हिसाब से ज़्यादातर हथियारों का ज़खीरा उनके बैग्स से बरामद हुआ है। ऐसे में वो पूरी कोशिश करेंगे वापिस निकलने की"
"लेकिन इतना बड़ा पहाड़ चढ़ना? नदी का रास्ता आसान था लेकिन फिर भी पहाड़ चढ़ना और वो भी तब जब वहां की चोटी में बर्फ अभी भी जमी है..." एक सीनियर ने सवाल किया।
"वहाँ और हथियार हों सकते हैं!" संग्राम के दिमाग में अचानक ख्याल आया।

Write a comment ...