अभी कुछ ही देर हुई थी संग्राम और नवीन को पार्टी छोड़कर बाहर लॉन में बैठे हुए कि नवीन को कावेरी जी गुस्से में उनकी तरफ आती हुईं दिखाई दी।
"आंटी इधर आ रहीं हैं" उसने चुपचाप होंठों से पानी का गिलास लगाए संग्राम को चौक्कना किया।
"इट्स ओके" संग्राम ने लापरवाही से जवाब दिया।
"संग्राम! ये क्या किया आपने? प्रेरणा को कमरे में बंद क्यूँ किया? वो कब से कमरे में बंद हुई चिल्ला रहीं थीं। कितनी डर गयीं थीं वो! ये क्या बदतमीज़ी है!" कावेरी जी ने आते ही संग्राम की क्लास लेनी शुरू कर दी।
"उसने हरकत ही ऐसी की थी"
"कोई भी हरकत की थी। इसका मतलब आप कमरे में बंद कर देंगे?! मेहमान हैं वो हमारी!"
"मॉम...." वो अभी बोल ही रहा था कि अंदर से प्रेरणा और उसकी माँ भी दनदनाते हुए वहां पहुँच गए। प्रेरणा ने बहुत ज़ोर से रोना धोना लगा रखा था। उसकी माँ गुस्से में थी।
"मिसेज़ सांगेर, दिस इज़ नॉट एट ऑल एक्सेप्टेबल! आपके बेटे ने आज बहुत बड़ी बदतमीज़ी की है मेरी बेटी के साथ। मुझे नहीं पता था कि आपके इतने बड़े नाम के पीछे आप लोगों की ये हरकतें हैं! वरना मैं अपनी बेटी को आपके बेटे के आसपास भी ना फटकने देती! ही ट्राइड टू मोलेस्ट माय डॉटर! जब उसने मना किया तो उसे कमरे में बंद कर दिया ताकि वो बाहर आकर किसी को इसकी करतूत ना बता पाए। वो तो स्टाफ ने इस बेचारी बच्ची की आवाज़ें सुन ली तो ये बाहर आ पायी है वरना पता नहीं आपका बेटा क्या करने वाला था इसका मुंह बंद करने के लिए!"
"आंटी, आप भूल रहीं हैं कि मैं स्पेशल फोर्सस से हूं! अगर मुझे टारगेट का मुंह बंद करवाना हो तो मिनटों में कर सकता हूं, उसके लिए मुझे किसी हथियार की ज़रूरत नहीं....कमरे में बंद करना तो बहुत दूर की बात है"
"ये देखिये, मिसेज़ सांगेर!! आपका बेटा आपके सामने कैसी बातें कर रहा है। टारगेट बोल रहा है मेरी बेटी को?!!"
"संग्राम!" कावेरी जी ने गुस्से से बोला।
"लेकिन आपने जो भी कहा.... देखिये मैं समझ सकती हूं आपके दिल पर क्या बीत रही होगी लेकिन प्रेरणा को ज़रूर कोई गलतफहमी हुईं है। संग्राम ऐसे नहीं है। सब जानते हैं" कावेरी जी ने सफाई देने की कोशिश की। मोलेस्टेशन का आरोप कोई छोटा तो नहीं था।
संग्राम ने एक गहरी सांस छोड़ी और उठकर खड़ा हो गया। नवीन भी साथ में खड़ा हो गया। वो अब तक बैठे हुए ही सब तमाशा देख रहे थे।
"आपकी बहुत सालों की जान पहचान है मॉम के साथ इसीलिए मैं चुप था लेकिन अब आपका ये लहजा मेरे आपे से बाहर हो रहा है और मुझे पसंद नहीं आ रहा। तो सीधा मुद्दे पर आते हैं। आपकी बेटी को सोने के लिए मेरा बेड चाहिए था तो आप खुद बताइये बिना कमरे में जाए मैं उसे अपना बेड कैसे दिखाता? शी नीड्स टू बी इन माय रूम फॉर देट। बस उसी के लिए मैं उसे कमरे में ले गया था। अब अगर वो मेरे कमरे में सोना चाहती है तो मैं वहां रुक कर क्या करता? मैंने उसे रेस्ट करने के लिए वहां छोड़ दिया और खुद दरवाजा बंद करके मैं बाहर आ गया। आई एम नॉट गेटिंग इट कि आपका यह मॉलेस्टेशन वाला एंगल कहां से आ गया? हाँ अगर मैं उस कमरे से बाहर नहीं निकलता तो आपकी बेटी पक्का मुझे मोलेस्ट करने वाली थी" संग्राम का लहज़ा सीरियस नहीं था।
"म.... मॉम.... ये झूठ बोल रहे हैं" प्रेरणा ने हकलाते हुए कहा।
"यू सेड टेक मी टू योर बेड.... डिडन्ट यू?" संग्राम ने आराम से पूछा।
"नहीं! झूठ बोल रहा है ये मॉम"
"मैंने पूछा बोला था कि नहीं?" उसका लहजा अब थोड़ा सख्त हो रहा था। कावेरी जी और नवीन उस लड़की को हैरानी से खड़े देख रहे थे। वो बोलते हुए लड़खड़ा रही थी।
"संग्राम सर सच बोल रहे हैं। मैंने अपनी आँखों से देखा था। वहां आपके लॉन के कैमराज़ ने ज़रूर कैप्चर किया होगा उस कॉरिडोर को! ये लड़की झूठ बोल रही है" नवीन ने कावेरी जी को समझाने की कोशिश की। उसे नहीं पता था बात इतनी बढ़ जायेगी।
"बोला था कि नहीं?" संग्राम के लहजे की सर्दी अब उस लड़की को डरा रही थी।
"ऍम.... सॉरी" उसने धीरे से कहा तो उसकी माँ उसे हैरानी से देखने लगी।
"ये क्या कह रही हो तुम?!" उन्होंने उसे हिलाते हुए पूछा।
"सॉरी..." बोलकर वो वहाँ से भागते हुए पीछे मुड़ गयी। उसकी माँ ने उसे आवाज़ लगाई लेकिन वो बिना पिछे मुड़े वहां से जा चुकी थी।
अब उस औरत ने कावेरी जी की तरफ अपना ध्यान लगाया तो कावेरी जी ने उसके आगे हाथ जोड़ लिए। वह कुछ बोलना चाहती थी लेकिन कावेरी जी के चेहरे के भाव देखकर लग रहा था कि वो कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थी। आखिरकार वह औरत वहां से चली गयी।
उसके जाने के बाद कावेरी जी ने संग्राम को देखा तो उनके चेहरे पर चिंता देखकर संग्राम ने उन्हें आगे बढ़कर गले से लगा लिया।
"आगे से यहाँ कोई पार्टी नहीं होगी। आई प्रॉमिस" उसके गले लगे हुए कावेरी जी बोलीं।
"इट्स ओके मॉम" उसने उनके माथे को चूम लिया।
पास खड़ा नवीन माँ बेटे की जोड़ी को देखकर मुस्कुरा रहा था।
रात के तकरीबन ग्यारह बजे थे और नंदिनी अपने बेड पर बैठी फोन को घूर रही थी। नवीन जब से दिल्ली गया था उसने एक बार भी उसे फोन नहीं किया था। इस बात पर नंदिनी आगे ही भरी बैठी थी। उसे तो बस इंतजार था कि कब नवीन का फोन आए और भर भर कर ताने कसे।
"इस लड़के ने कहीं सच में उस आदमी का मंदिर तो नहीं बना लिया?" अचानक नंदिनी बड़बड़ाने लगी। फिर खुद ही सर पर चपत लगाई "इसने अपने साथ साथ मेरा भी दिमाग खराब कर दिया है...लेकिन एक फ़ोन तो कर ही सकता था ना....लेकिन करेगा कैसे? अपने प्रभु संग्राम की महिमा के आगे हम तुच्छ प्राणी दिखे तो कोई फ़ोन करेगा ना...." बोलकर वो मुस्कुराने लगी। इतने दिनों में रमन का भी कोई फ़ोन नहीं आया था लेकिन नंदिनी को ज़्यादा चिंता नवीन के फ़ोन की थी।
अचानक उसका फ़ोन बजा और उसने लपककर झट से उठा लिया।
"हेलो दीदी, कैसी हो?" नवीन की आवाज़ उसके कानों में पड़ी और सारा गुस्सा पिघल गया।
"अच्छी हूं। तुम बताओ, नवी? कैसा चल रहा है दिल्ली दर्शन?" अब गुस्से में नहीं थी वो।
"सब इतना अच्छा चल रहा है कि आप तो पूछो ही मत!" नवीन की आवाज़ में खुशी झलक रही थी।
"ठीक है नहीं पूछती" उसने तुनककर बोला।
"अरे! गुस्सा मत करो यार। मैं तो बस ये बोल रहा था कि मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि अमीर लोग इतने अच्छे भी होते होंगे। आपको पता है संग्राम सर खुद लेने आएं थे मुझे एयरपोर्ट पर, उनके पास हार्ले है! मुझे दे रहे थे। मैंने कहा नहीं नहीं ये आप ही रखो। उनकी फैमिली इतनी अच्छी है इतनी अच्छी है कि कोई जवाब ही नहीं ख़ासकर उनकी माँ.... वो बहुत प्यारी हैं! पता है विक्रम सर को आज भी बहुत याद करती हैं वो। उनका कमरा, उनकी चीज़ें, उनके कपड़े, उनके मेडल्स, हर चीज़ वैसी की वैसी ही रखी है उन्होंने" उसके बाद नवीन ने वहां हुई एक एक घटना का सारा ब्यौरा नंदिनी को दिया।
नंदिनी ने सब ध्यान से सुना।
"ऐसी लड़कियां भी होती हैं क्या नवीन?" आख़िरकार उसने पूछा।
"अरे आपको नहीं पता कैसी कैसी होती हैं, यार दीदी। वैसे आपको शक्ल देखनी चाहिए थी उस लड़की की! सर ने क्या इग्नोर मारा है उसे! अब मुझे लग रहा है कि वो लड़की सच में बहुत लकी होगी जिसे संग्राम सर मिलेंगे। एकदम "वन वुमन मैन" हैं वो! वैसे कभी कभी वो मुझे बहुत अकेले भी लगते हैं। मुझे लगते हैं तो...उन्हें भी महसूस होता होगा ना। मेरे बस में होता ना तो मैं बिल्कुल संग्राम सर जैसा दूल्हा ढूंढता आपके लिए! खड़ूस हैं वो लेकिन आप संभाल ही लेते उन्हें। आप सब कुछ संभाल लेते हो, उन्हें भी संभाल लेते" नवीन कहीं खोया हुआ बोला।
"ये क्या बदतमीज़ी है नवी?!" नंदिनी को अच्छा नहीं लगा। उसकी शादी तय हो चुकी थी। मान चुकी थी वो कि रमन उसका होने वाला पति है, उसका भविष्य जिसके साथ वो सारी ज़िन्दगी बिताएगी....ऐसे में नवीन का रमन की जगह संग्राम का नाम लेना उसे अखर गया था।
"अरे उनके जैसा कोई बोला! उनको थोड़ी बोला! इतना क्यूँ सीरियस हो जाते हो यार?" नवीन के मुंह से निकल गया था और अब वो सफाई देने की कोशिश में था।
"तुम्हारी बहन की शादी तय हो चुकी है! और तुम बोल रहे हो कि काश दूल्हा कोई और होता तो अच्छा होता?! दिल्ली की हवा ने तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है। माना तुम्हें अपने संग्राम सर बहुत पसंद हैं, आदर्श हैं तुम्हारे लेकिन ये जो तुमने अभी बोला ना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आया, नवी। अपने जीजा जी से भी अब उनकी तुलना करोगे तुम? वो होंगे बड़े अफसर लेकिन रमन जी भी किसी से कम नहीं। कितने गुण हैं उनमें लेकिन नहीं! तुम्हें तो अपने संग्राम सर के आगे सब बोने दिखते हैं। अपने जीजा जी के साथ ये मत करना बता रहीं हूं मैं वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा"
"अरे अरे आप तो गुस्सा हो गयीं! मैं जीजा जी से तुलना नहीं कर रहा! बस मुझे लगता है आप दुनिया की हर बेस्ट चीज़ डिज़र्व करती हैं। एक ऐसा जीवन साथी जिसे आपके अलावा दुनिया में कोई ना दिखे, एक ऐसा परिवार जो आपको सर आँखों पर बिठा कर रखे, एक ऐसी ज़िन्दगी जहाँ आपको कभी अपना मन ना मारना पड़े..... मैं बस यही चाहता हूं"
"और तुम्हें क्यूँ लगता है ये सब रमन जी के साथ नहीं मिल सकता मुझे?" नंदिनी का लहजा नरम था।
"मैंने कब कहा कि उनके साथ नहीं मिलेगा! मैं बस चाहता था....खैर छोड़ो, माँ बाबा कैसे हैं?" नवीन ने बात बदलते हुए पूछा।
उसे तो अंदाज़ा भी नहीं था कि उसके दिल में अचानक ही जिस इच्छा ने जगह बनाई है वो आगे चलकर किस तरह पूरी होगी!

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