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भाग - 16

नवीन जैसे ही सुबह उठा तो सांगेर हॉउस में काफी चहल पहल थी। चहल पहल तो नहीं कह सकते थे उसे लेकिन कल के सन्नाटे के बाद आज उसके कानों में कुछ आवाज़ों ने तो दस्तक दी ही थी। उसे लगा रिश्तेदार होंगे, आखिर रात को डिनर पार्टी थी। बाहर आकर देखा तो वह चहल पहल लोगों की नहीं थी वहां के स्टाफ की थी जो रात की डिनर पार्टी की तैयारी कर रहा था।अचानक उसकी नजर वहां काम करती कावेरी जी पर गयी जो सब काम बहुत ही तल्लीनता से करवा रहीं थीं और कहीं पर काम से संतुष्टि ना मिलने पर खुद ही काम भी कर रहीं थीं।

नवीन जल्दी अपने कमरे में जाकर फ्रेश होने के लिए चला गया और फिर वापस आकर देखा तो कावेरी जी किचन में लगी हुई थी।

"क्या मैं आपकी कुछ मदद करूं?" कावेरी जी ने पीछे मुड़कर देखा तो वहां नवीन मुस्कुराते हुए खड़ा था। एक पल के लिए तो उनकी धड़कने थम जाती है। उसकी मुस्कुराहट हूबहू विक्रम जैसी थी!

वो कितनी ही देर तक उसे निहारती रहीं।

"मैम... आपकी कुछ मदद कर दूँ?" नवीन ने उन्हें यूँ खोये हुए देखकर फिर सवाल पूछा।

"अरे... न.... नहीं। हो जाएगा सब" झेँपते हुए उन्होंने उससे नज़रेँ हटा लीं। फिर अचानक उन्हें कुछ याद आया। "कल रात को क्या बोला था? कोई मैम वैम नही! आंटी बोल सकते हो मुझे आप,बेटा..." उन्होंने मुस्कुराते हुए बोला। नवीन भी सुनकर मुस्कुरा दिया। ये तो बस कावेरी जी ही जानती थीं कि उस वक़्त उन्हें उसे मुस्कुराते हुए देखकर कितना सुकून महसूस हो रहा था।

"जी आंटी। लेकिन आप ऐसा मत सोचिये कि मैं बस अपने सीनियर अफसर की माताजी के सामने अपने नंबर बनाने के लिए मदद का कह रहा हूं। दरअसल जब भी मौका मिलता है तो मैं घर पर भी माँ और दीदी की मदद करता हूं इसीलिए रसोई का भी पक्का खिलाड़ी समझ सकती हैं आप मुझे"

उसकी बात सुनकर कावेरी जी हँस पड़ी।

"अच्छा? ये तो बहुत अच्छी बात है। अपने सर को भी कुछ सीखा देते। उन्हें तो पानी उबालना भी नहीं आता" कावेरी जी हँसते हुए बोलीं तो नवीन भी हंसने लगा।

"विक्रम मदद करता था हमारी। बहुत अच्छा बच्चा था...बिल्कुल आपकी तरह" बुझी हुई मुस्कुराहट लिए वो बोलीं तो नवीन बिना कुछ बोले उनके साथ काम में हाथ बंटाने लगा। उन्होंने उसे कमर पर हाथ रखकर एक बार घूर कर देखा लेकिन नवीन बस हँसा लेकिन पीछे नहीं हटा।

"आपके परिवार में और कौन कौन हैँ ?" आख़िरकार उन्होंने भी उसकी ज़िद के आगे हार मान ली थी। उसे तो मना कर भी देतीं लेकिन उस प्यारी सी मुस्कुराहट का क्या जो विक्रम से मिलती थी? उसको मना करती? कभी नहीं।

"माँ है, बाबा हैं और बड़ी बहन है"

"पिता भी आर्मी में हैं?"

"नहीं वो तो किसान हैँ। हमारे पूरे खानदान में आर्मी में जाने वाला इकलौता मैं ही हूं। बाकी सब किसानी करते हैं या दुकानदारी"

"अच्छा! और आपकी बड़ी बहन? शादी हो गयी उनकी?"

"नहीं अभी नहीं। अभी तो बस रिश्ता पक्का हुआ है। कुछ महीनों बाद शादी भी हो जायेगी। जीजा जी भी आर्मी में ही हैं, हवलदार"

"ये तो बहुत अच्छी बात है। बहुत शुभकामनायें आपको" वो मुस्कुराते हुए बोलीं लेकिन नवीन अब बस यहाँ कहाँ रुकने वाला था। वो अब किचन में कावेरी जी के साथ रम चुका था।

"मेरी दीदी तो बहुत पढ़ी लिखी हैं। मैं बस बारहवीं पास हूं लेकिन दीदी तो इंग्लिश में मास्टर्स हैं और सरकारी स्कूल में टीचर हैं। पता है आपको हमारे सारे गाँव में सबसे ज़्यादा पढ़ी लिखी हैं वो। गाँव की पहली लड़की थीं जो सबसे पहले शहर गयीं थीं यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए। हमारा गाँव दरअसल बहुत पिछड़ा हुआ है। सड़कें भी नहीं हैं और पानी की किल्ल्त तो आप पूछिए ही मत!...." वो बोलें जा रहा था और कावेरी जी बस सुनते जा रहीं थीं और बीच बीच में बस 'अच्छा.. हम्म' बोलते हुए मुस्कुरा रहीं थीं।

संग्राम जिम के बाद जैसे ही घर आया तो रसोई से हंसने की आवाज़ें सुनकर उसने सामने कुर्सी पर बैठे अपने पिता को अंदर की ओर इशारा करके पूछा।

"आपका जूनियर अब आपका कहाँ रहा, कुंवर सा! आपकी माँ सा का भक्त बन चुका है वो। उन्होंने आते ही उसे अपने सानिध्य में ले लिया है। आप जाइये जिम में पसीना बहाइये। इधर दुश्मन ने आपकी पोजीशन पर बिना हमला किये कब्ज़ा कर लिया है" बोलकर वो हंसने लगे।

"डैड....!!" बोलकर संग्राम भी मुस्कुराते हुए सर हिलाते हुए किचन की तरफ चला गया।

"पांडे" बोलते हुए जैसे ही संग्राम किचन की तरफ आया तो अचानक नवीन हड़बड़ी में सावधान मुद्रा में खड़ा हो गया।

"सर!"

"चिल यार पांडे! तीसरे शौक से नहीं मिलना?" संग्राम ने किचन के दरवाज़े से खुद को सटाते हुए पूछा।

"घोड़े?!! यहाँ?!" उसने हैरानी से कावेरी जी की तरफ देखा जिन्होंने हाँ में सर हिलाया।

"घोड़े नहीं, घोड़ा। चलो दिखाता हूं"

कुछ देर बाद दोनों घर के पीछे बने एक अस्तबल में थे। वहां संग्राम ने दो घोड़े रखे थे।

"दिस इज़ स्नो एंड दिस वन इज़ मिखेल (ये, इसका नाम स्नो है और दूसरे का नाम मिखेल है)" संग्राम अपने दोनों घोड़ो से उसे मिलवाते हुए बोला।

"बहुत ज़्यादा ज़बरदस्त! आपके पास तो और भी होंगे?"

"हाँ सांगानेर में। कभी मौका मिला तो चलेंगे"

"मैं तो हमेशा की तरह तैयार सर!"

"गुड!"

दोनों काफी देर तक वहीँ रहे। संग्राम ने उसे घुड़सवारी के काफी गुर सिखाये और नवीन ने एक अच्छे विद्यार्थी की तरह सब समेट लिया। ये चंद लम्हें जिसमें संग्राम उसे कुछ भी सिखाता, उसके लिए हमेशा ही सबसे सुखदायी होते थे। कितना कुछ सीखने को मिलता था उसे। उसे संग्राम को इतने करीब से जानने का मौका मिल रहा था, अपने आदर्श को इतने करीब से जानने का मौका.... उसके लिए तो ये अतुलनीय था।

शाम की डिनर पार्टी के लिए नवीन तैयार हो रहा था। नंदिनी ने ख़ास तौर पर उसके कपड़े तैयार करके और वही पहनने की हिदायत देकर भेजा था। बाहर मेहमानो ने आना शुरू कर दिया था। ज़्यादा मेहमान थे भी नहीं बस कुछ करीबी लोग। तभी संग्राम उसके कमरे में आता है।

"तैयार पांडे?"

"हमेशा सर!"

"गुड। अच्छा है तुम यहाँ हो। सर दर्द कम होगा"

"क्यूँ सर? क्या हुआ कोई प्रॉब्लम है क्या?"

"प्रॉब्लम्स बोलो पांडे यार प्रॉब्लम्स"

नवीन को उस वक़्त तो समझ नहीं आया लेकिन वो ज़्यादा देर तक अनजान भी नहीं रह पाया संग्राम की "प्रॉब्लम्स" से।

डिनर पार्टी में एक से बढ़कर एक हसीन और खूबसूरत लड़की थी। नवीन ने तो इतनी खूबसूरती एक साथ एक जगह पहली बार देखी थी और कहीं ना कहीं सबकी नज़रेँ बस संग्राम पर थीं। इतना ज़्यादा ओवियस तो नहीं था लेकिन साफ साफ पता चल रहा था कि ज़्यादातर उसी को इम्प्रेस करने के मकसद से वहां आयी हैं और देखने से ही लग रहा था कि सांगेर परिवार के साथ काफी अच्छी जान पहचान है सबकी। मिलिट्री सर्कल के ही परिवार लग रहे थे सब जो भी वहां थे और उन्हें यशवंत जी और कावेरी जी ही अटेंड कर रहे थे। संग्राम एक कोने में खड़ा था... चुपचाप। नवीन भी उसके साथ वहीँ जाकर खड़ा हो गया।

"ड्रिंक?" संग्राम ने उससे पूछा।

"नहीं सर। आप तो जानते हैं मैं नहीं पीता.... दीदी को पता चला तो मुझे मार मार कर गंजा कर देगी" वो हँसते हुए बोला।

"दूध मंगा दूँ, पांडे?"

"नहीं सर" वो धीरे से बोला। उसे लगा कहीं संग्राम नाराज़ तो नहीं हो गया।

"जानता हूं तुम नहीं पीते। ड्रिंक का मतलब सिर्फ अल्कोहल नहीं होता"

"यस सर..." वो सुकून की सांस के साथ बोला।

"तो एक सॉफ्ट ड्रिंक उठाओ और इस सर्कस से दूर रहो"

"कौन सी सर्कस सर?" उसने पूछा।

"ये पार्टीज़ सर्कस से कम नहीं होती। थोड़ी देर रुको पता चल जाएगा" वो मुस्कुराते हुए बोला तो नवीन भी हल्का सा मुस्कुराते हुए उसके पास ही खड़ा रह गया। उसे तो पता ही था कि संग्राम को लोगों से घुलना मिलना पसंद नहीं। वो एकान्त पसंद है।

"ये बहुत अच्छा किया आपने मिसेज़ सांगेर जो हमारे कहने पर आपने कम से कम एक छोटी पार्टी तो रखी वरना आपकी मेहमान नवाज़ी के लिए तो हम तरस ही गए थे" एक बनी ठनी औरत ड्रिंक की चुस्कीया लेते हुए कावेरी जी को बोली।

"जी मिसेज़ चोपड़ा, दरअसल ये शोर शराबा मौके के साथ ही अच्छा लगता है। और आप जानती ही हैं कि हमें तो इन सब पार्टीज़ की आदत होकर भी आदत ना हुई और अब तो मन भी नहीं करता। वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता ना" कावेरी जी बड़ी ही शालीनता से बोलीं। जवाब में उस औरत ने सर हिला दिया।

"जिसकी बहादुरी सेलिब्रेट करने के लिए डिनर रखा है, वो कहाँ हैं, सांगेर साहब? कहाँ है हमारा शेर?!" उस औरत के पति जो कि एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर थे, मूंछो को ताव देते हुए बोले।

"यस! कहीं नज़र ही नहीं आ रहे हमारे मेजर साहब" उस औरत ने मुस्कुराते हुए बोला।

कावेरी जी ने कोनों पर देखना शुरू किया। वो जानती थीं इस शोर शराबे में वही होगा उसका ठिकाना।

संग्राम कोने पर खड़ा दीवार की जितनी बड़ी खिड़की से बाहर गार्डन में देख रहा था। साथ में नवीन भी था और वो दोनों कुछ बातें कर रहे थे। उन्होंने स्टाफ में से एक को संग्राम को बुलाने भेजा। कुछ वक़्त बाद संग्राम अपनी माँ को घूरता उनके पास आकर खड़ा हो गया। नवीन भी साथ ही था।

"स्माइल संग्राम" वो उसकी पीठ सहलाते हुए बोलीं।

जवाब में संग्राम ने मुस्कुराने की कोशिश तो की लेकिन असफल रहा। उससे ये सब नाटक होता ही नहीं था। नवीन उसकी बनावटी मुस्कुराने की कोशिश देख बहुत मुश्किल से अपनी हंसी रोककर खड़ा था। संग्राम ने एक बार उस पर घूरती हुई नज़र डाली और वो चुपचाप अपने गिलास से जूस गटकने लगा।

फिर सम्मान का आदान प्रदान हुआ, उस आर्मी कपल की तरफ से संग्राम की तारीफो का सिलसिला जो शुरू हुआ वो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। फिर आयी वो जिसकी वजह से ये तारीफो के पुल बांधे जा रहे थे - उस कपल की बेटी - चौबीस वर्षीय ईवा चौधरी। खूबसूरत, स्टाइलिश और पढ़ी लिखी।

"माय डॉटर ईवा एंड ईवा इनसे मिलो, सांगेर साहब के बड़े बेटे, ही इज़ मेजर संग्राम सिंह सांगेर एंड जस्ट रिसेंटली ही वास अवार्डड अ सेना मैडल फॉर हिज़ ब्रेवरी! मैं तो बस इतना ही कहूंगा, लाइक फादर... लाइक सन!" ब्रिगेडियर साहब ने हँसते हुए गर्व से अपनी बेटी को संग्राम से मिलवाते हुए कहा।

"हेलो मेजर" ईवा ने कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराते हुए संग्राम से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा।

"हेलो" संग्राम का लहजा वैसा ही था जैसा अक्सर होता था। कोई बदलाव नहीं!

कुछ दूरी पर कावेरी जी और नवीन खड़े संग्राम और ईवा को देख रहे थे। संग्राम और ईवा अब धीरे धीरे बातें कर रहे थे। कावेरी को ये देख कर बहुत अच्छा लग रहा था।

"बातें तो कर ही रहें हैं। आगे क्या लगता है? कुछ बात बढ़ेगी? मुझे तो अच्छी लगी ईवा" कावेरी जी बोलीं। उनकी आँखों में चमक थी।

"मुझे भी। एकदम टक्कर के लग रहे हैं दोनों!" नवीन भी खुश होते बोला। संग्राम सर का टांका भिड़ा मतलब बाकियो को भी मौका मिलेगा। उसके मन में लड्डू अभी से फूट रहे थे।

दूर खड़ी एक लड़की जलती आँखों से संग्राम और ईवा को देख रही थी। वो कावेरी जी की किसी किट्टी फ़्रेंड की बेटी थी जो संग्राम की अटेंशन पाने के लिए बहुत सालों से जद्दोजहद कर रही थी। मानो ज़िन्दगी में किसी लड़के को इम्प्रेस करने के अलावा और कोई काम ही ना बचा हो। उसके पीछे उसकी संकीर्ण सोच थी कि आर्मी ऑफिसर से शादी मतलब ज़िन्दगी सफल, अगर नहीं तो ऐसी ज़िन्दगी का क्या करना, खुद की ज़िन्दगी और सपने तो मानो है ही नहीं।

ईवा ज़रा सा हटी, संग्राम अकेला हुआ और उस लड़की को मौका मिल गया। आज तो अपना आखिरी दांव खेलना ही था और किसी भी कीमत पर खेलना था उसे।

"हेलो मेजर" उसने आते ही उसके कंधे पर हाथ रख दिया। संग्राम ने वैसे ही उसका हाथ हटा दिया।

"हेलो" बोलकर वो उससे दूर हटने को हुआ लेकिन उसने अब उसकी बाज़ू पकड़ ली।

"थक नहीं जाते आप इतने ऑपरेशन्स को लीड करते करते?"

"इट्स माय ड्यूटी... मैम" संग्राम ने बिना मुस्कराये कहा।

"कभी आराम से बैठकर बातें करिये हमारे साथ, सारी थकावट मिटा देंगे" उसकी आँखों में नशा उतर आया था।

"कैसे?" संग्राम ने उसके करीब आकर पूछा। उसका लहजा भी कुछ अलग था।

"टेक मी टू योर बेड, मेजर" लड़की ने संग्राम के कानों के पास बोला। उसने हाथ में पकड़ा हुआ ड्रिंक टेबल पर रखा और उसे आगे चलने का इशारा किया। खुद वो उसके पीछे चल पड़ा।

उस लड़की की ख़ुशी साफ तौर पर उसके चेहरे पर झलक रही थी।

नवीन आँखें फाड़ कर सब देख रहा था। उससे रहा नहीं गया तो वो भी पीछे चल पड़ा। संग्राम ने उस लड़की का हाथ पकड़ा और उसे कमरे के अंदर ले गया। उस लड़की का मन उड़ती पतंग हुआ जा रहा था और वहीँ नवीन की आँखें बाहर निकल कर गिरने को तैयार थीं। कुछ ही पलो में संग्राम ने खुद कमरे से बाहर आकर दरवाज़ा बंद कर दिया।

"टेक द बेड। प्लीज़ फील एट होम, मिस...? नेवर माइंड" हाथ हिलाकर वो जैसे ही मुड़ा सामने नवीन भक्तिभाव से हाथ जोड़े बहुत ही नाटकीय अंदाज़ से खड़ा था।

"जय हो प्रभु, जय हो!" वो हाथ जोड़कर सर झुकाते हुए बोला।

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Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.