14

भाग - 13

रमन काफी देर तक उस लड़की को देखता रहा। गोरा रंग, उसके गाल पर आते उसके उड़ते हुए बाल जो वो बार बार अपने हाथ से पीछे हटाने की कोशिश कर रही थी। हंसी भी तो कितनी खूबसूरत थी उसकी मानो चाँद ज़मीन पर उतरकर खिलखिला रहा हो। सामने नवीन क्या बात कर रहा था उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।

वो उस लड़की की खूबसूरती के मोहपाश में बँधा ही जा रहा था और उसे अंदाज़ा भी नहीं था। उसके दिमाग में तो ये चल रहा था कि असल में तो ये लड़की तस्वीर से भी कितनी ज़्यादा खूबसूरत थी। अम्मा ने तो सच ही कहा था कि इस लड़की जैसी खूबसूरत तो पूरे गाँव में कोई नहीं! अगर इस लड़की से उसकी शादी हो गयी तो उसके दोस्त भी जलेंगे उसकी किस्मत पर। क्या ठाठ से निकलेगा वो। लेकिन.....

फिर उसकी नज़र सामने बैठी नंदिनी पर गयी। सुंदर तो वो भी थी लेकिन....फिर उसकी नजर दोबारा उसी लड़की पर गयी और एहसास हुआ कि नंदिनी तो उस लड़की के आसपास भी नहीं टिकती। उसकी तो बात ही अलग थी।

उसकी खूबसूरती के आगे उसका कम पढ़ा लिखा होना या उसके बुरे चरित्र का होना। रमन ये सब भूल चुका था। उसे याद था तो बस उन लोगों की नज़रे जो उस लड़की को उसकी पत्नी के रूप में देखकर जलेंगी।

वहीँ नवीन की नजरों से उसका ये अंदाज़ बच नहीं पाया था। आखिर आर्मी का कमांडो था वो जिनकी तेज़ नज़रे हर वक़्त गिद्ध की तरह अपने आसपास रहती थीं।

उसे पता था कि उसे घर जाकर क्या करना था और उसने वही किया था।

"ये क्या बोल रहे हो तुम नवी?!" सुनते ही मोहन जी कुर्सी से उठ खड़े हुए थे।

"हाँ मैं सही बोल रहा हूं। मुझे उनका चाल चलन ठीक नहीं लग रहा। उस लड़की पर ही नज़रे टिकी थीं उनकी। हो सकता है पहले से जानते हो लेकिन जो भी है मुझे नहीं लगता दीदी के लिए सही इंसान है वो"

नवीन ने बिल्कुल सीधे और सपाट लहजे में अपनी बात बोल दी और सारी बात बता दी। मोहन जी सकते में आ गए क्यूंकि उन्होंने तो सारी जांच पड़ताल की थी और यही नतीजा निकला था कि लड़का नेक और शरीफ था।

"लेकिन तुमने भी जांच पड़ताल करवाई थी अपने दोस्तों से? मैंने भी पूरी जांच पड़ताल करवाने के बाद ही उन्हें घर आने का न्योता दिया था...."

" बाबा मैं भी जानता हूं। लेकिन आज मैं जब उनसे मिला तो मुझे ऐसा लगा और जो मुझे लगा वह मैंने आपको बता दिया। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा"

रानी देवी वहां बिस्तर पर बैठी कभी अपने पति को देखती और कभी बेटे को। नंदिनी से छुपकर ये तीनों एक कमरे में बैठे बात कर रहे थे। उसे कुछ अंदाज़ा नहीं था कि क्या चल रहा था।

"रिश्ता तय हो गया है। सारे गाँव को पता है। सारे रिश्तेदारो को मिठाई चली गयी। अब रिश्ता टूटा तो बहुत बदनामी होगी। लोग बोलेंगे हमारी बेटी में कोई खोट है" नवीन की मां ने अपना सर पकड़ लिया। उनके चेहरे से लग रहा था कि वो रों पड़ेगी।

"तो ऐसे आदमी के साथ अपनी नंदा ब्याह दें जिसके चरित्र पर यकीन ही नहीं?!" मोहन जी झुंझला गए। "अब तुम रोना बंद करो। हम अभी समधी जी से बात करते हैं। अगर ऐसा वैसा कुछ है तो अभी बता दें। हमारी बेटी कोई हम पर बोझ नहीं है और ना ही कोई खूंटी से बंधी गाय है जो बिना भरोसे के कहीं भी भेज देंगे"

रानी देवी ने अब रोना शुरू कर दिया था।

"अरे बस करो! कुछ नहीं हुआ है। सब सम्भल जाएगा। रिश्ता टूटता है तो टूटने दो। हमारी गुणी बेटी के लिए कोई रिश्तो की कमी नहीं है"

"आपके लिए यह कहना आसान है लेकिन नंदिनी के मन और आत्मविश्वास को जो ठेस पहुंचेगी। उसका क्या?" रानी देवी रोते हुए बोली।

"यार माँ। आज का कुछ पल का दुख, कल के सारी उम्र झेलने वाले पछतावे से बेहतर है। और अगर आप ही ऐसा करेंगी तो दीदी को कौन संभालेगा" नवीन अपनी माँ के पास बैठ कर उन्हें संभालने लगा।

मोहन जी ने सीधा रमन के पिता, जगजीवन शर्मा को फ़ोन मिलाया और उनसे सारी बात कह दी।

"देखिये अगर रमन के मन में कोई और है। अगर ये रिश्ता उसकी मर्ज़ी से नहीं हुआ है तो आप साफ लफ्ज़ो में हमें बता सकते हैं। अभी के अभी बात सम्भल जायेगी। हमारी बेटी के भविष्य का सवाल है" मोहन जी ने विनम्र लहजे में अपनी बात रखी।

"अरे नहीं नहीं, पांडे जी। ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल जिस लड़की की बात नवीन कर रहा है वो लड़की हमारे रिश्तेदार की बेटी है। ऐसे अकेले घर से बाहर मिल गयी होगी इसीलिए देख रहा होगा। अ.... वो .... उसकी बहन ही लगती है। अब आप जानते ही हैँ बड़े भाई, बहनों के मामले में कितने ज़िम्मेदार होते हैं। उसका कोई भाई नहीं है और रमन का तो जानते ही हैं आप कि इकलौता है वो। ऐसे में इसे ही राखी बाँधती है वो। आप बेफिक्र रहिये। ऐसी कोई बात नहीं"

रमन के पिता की बात सुनकर मोहन जी को थोड़ी शान्ति मिली।मोहन जी ठहरे बेचारे भोले प्राणी। उन्होंने उनकी दी हुई सफाई ना ना करते भी स्वीकार कर ही ली थी।

रमन के पिता ने जैसे ही फ़ोन रखा, सामने रमन और उसकी माँ उन्हें बुरी तरीके से घूर रहे थे। रमन ने तो आते ही ज़िद पकड़ ली थी नंदिनी से रिश्ता तोड़ने की। उसकी माँ का भी पूरा समर्थन मिला। इतने में ही मोहन जी का फ़ोन आ गया। अब उसे उस लड़की का भाई कहकर सम्बोधित किया गया था जिसकी वजह से उसका अंतर्मन जल उठा था।

जगजीवन जी तो बस नंदिनी को ही अपने घर की बहू बनाने पर अड़े हुए थे। उनके इस फैसले के खिलाफ उनका बेटा और पत्नी दोनों खड़े थे। लेकिन घर में चलती जगजीवन शर्मा जी की ही थी इसलिए दोनों बेटा और माँ कुछ कर नहीं पा रहे थे। रमन गुस्सा से अपने कमरे में चला गया था।

"देखिए ना लल्ला परेशान हो गया। आप मान जाइए ना उसकी इच्छा। इकलौता बेटा है आपका" रमन की माँ थोड़ा प्यार से अपने पति को मनाने की कोशिश करती हुईं बोलीं।

"इकलौता है इसीलिए उसकी और उसके जीवन की परवाह है मुझे। आज एक पसंद आ गयी। कल को कहेगा कोई और पसंद है। नंदिनी की तस्वीरे देखकर इसने खुद ही पसंद किया था उसे। मैंने कोई ज़बरदस्ती नहीं की थी। पांडे जी के घर भी अपनी मर्ज़ी से गया था। अगर मन में इस रिश्ते के प्रति ज़रा भी संकोच था या मन नहीं था तो मना कर देता मुझे। ऐसे किसी और की बच्ची के घर जाकर रिश्ते के लिए हाँ बोलना और फिर मन बदल जाये तो ना बोलना ये कहाँ की समझदारी है? उस बेचारी बच्ची का क्या कसूर? उसे क्यूँ इस तमाशे में शामिल किया? लेकिन अब अगर किया है तो निभाना पड़ेगा!"

"आप मुझसे ज़बरदस्ती नहीं कर सकते। मैं नहीं करूंगा नंदिनी से शादी" रमन अंदर से ही चिल्लाया।

"मत करो! फिर सारी उम्र ये सोच कर जी लेना कि तुम बिना बाप के हो!"

"ये आप क्या कह रहे हैं रम्मू के पापा?!!!" रमन की माँ चीखती हुई बोली। जगजीवन जी तब तक घर से बाहर जा चुके थे।

वही अगली सुबह इस सब उथल पुथल से अनजान नंदिनी छत पर कपड़े डालने गयी तो वहां नवीन उसे पुश अप्स करता दिखाई दिया। मुस्कुराते हुए वो सभी कपड़े सूखने के लिए डालकर जैसे ही नीचे आने को हुई वैसे ही छत के कोने में पड़ी एक चारपाई पर नवीन का फ़ोन बजने लगा।

"तुम्हारा फ़ोन बज रहा है नवी" रुककर नंदिनी मुड़ते हुए एक नज़र नवीन पर डालकर बोली जो अभी भी अपनी कसरत में ही व्यस्त था।

"उठा लो ना दीदी। संतोष का होगा। आजकल शहर में है और अंग्रेज़ी सीख रहा है महेश बता रहा था। और आप जानती हैं सारी सीखी हुई अंग्रेज़ी मुझ पर ही झाड़ता है प्रैक्टिस करने के लिए। अब आप भी प्रैक्टिस करवाओ उसकी थोड़ी" नवीन बोलकर हंसने लगा। संतोष, नवीन और महेश- तीनों बचपन के पक्के दोस्त थे जो साथ ही बड़े हुए थे इसीलिए नंदिनी से संतोष और महेश की भी अच्छी पटती थी।

"ओह्ह्ह्हह्ह! अच्छा रुको" खिलखिलाती हुई नंदिनी मज़ाक के मूड में बिना फ़ोन की स्क्रीन पर कॉलर आईडी देखे फ़ोन उठा लिया।

"हेलो" नंदिनी फ़ोन उठाते ही बोली।

"हेलो" संग्राम ने फ़ोन कान से हटाकर एक बार स्क्रीन की तरफ देखा क्यूंकि सामने से किसी लड़की की आवाज़ आएगी ये उसके लिए नया था। उसने भंवे सिकोड़े हुए सवाल किया- "कैन आई टॉक टू नवीन?"

"अरे वाह संतोष! अंग्रेज़ी अच्छी सीख गए हो तुम" नंदिनी चहकती हुई बोली।

"एक्सक्यूज़ मी?"

"अरे मुझसे भी अंग्रेज़ी में ही बात करोगे क्या अब?" बोलते बोलते नंदिनी ने फ़ोन की स्क्रीन चेक की तो वहां "संग्राम सर" लिखा नज़र आया।

देखते ही उसके हाथ से फ़ोन छूट गया और अपने दोनों हाथ उसने यूँ हैरानी से मुंह पर रख लिए मानो अब ज़ुबान कभी ना खुलेगी।

Write a comment ...

Suryaja

Show your support

Let's go for more!

Recent Supporters

Write a comment ...

Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.