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भाग - 12

नवीन और उसके माता पिता उस वीडियो को बिना पलकें झपकाये देखते रहे। उन्हें ऐसे चुपचाप आँखें गड़ाये देखते हुए नंदिनी का भी मन था देखने का। वो सोचने लगी कि कुछ तो बात ज़रूर होगी इस आदमी में जो सब पगलाये फिरते हैं। और नवीन भी तो किसी को इतनी आसानी से अहमियत कहाँ देता था। वो इतनी जल्दी किसी से प्रभावित होने वालों में से था ही नहीं।

वीडियो से अवार्ड प्रेजेंटर की आवाज़ भी आ रही थी और तालियों की गड़गड़ाहट भी साफ सुनाई दे रही थी।

अब उत्सुकता एक ऐसा कीड़ा होता है कि अगर किसी को अच्छे से काट जाए तो इंसान कहाँ फिर बच पाता है? और वैसा ही नंदिनी के साथ भी हुआ।

थोड़ा बचती बचाती टहलती हुई वो बरामदे की तरफ आयी जहाँ वो तीनों बैठे वीडियो देख रहे थे और शायद रानी देवी के कहने पर नवीन ने एक बार वीडियो फिर से प्ले की थी।

जिस सोफे पर तीनों बैठे वीडियो देख रहे थे उसके पीछे से अपने कमरे में जाने के बहाने नंदिनी धीमे कदमो से गुज़र रही थी कि वीडियो बंद हो गया और नवीन ने जैसे ही पीछे मुड़ कर देखा तो नंदिनी सकपका गयी क्यूंकि साफ पता चल रहा था कि वो भी बेचारी पीछे से देखने की कोशिश कर रही थी।

"आप तो बोल रहीं थीं नहीं देखेंगी तो अब आप ऐसे पीछे चोरों की तरह क्यूँ खड़ी हैं? आपको भी देखना है?" वो मुस्कुराते हुए भौन्हे उठाये उसे देखकर बोला।

"अ... ब.... नहीं नहीं मैं तो बस कमरे में जा रही थी तो ऐसे ही नज़र पड़ गयी। नहीं किये मैंने तुम्हारे प्रभु के दर्शन और मुझे करने भी नहीं है" बोलकर वो मुंह बनाकर जाने लगी कि नवीन ने उसका हाथ पकड़ उसे रोक लिया।

"अरे अरे! जब आप बात करती हुई अटकती हैं ना तो साफ साफ पता चल जाता है कि आप झूठ बोल रहीं हैं। अरे कर लो प्रभु के दर्शन। आपको भी तो पता चले किस शेर का चेला है आपकी भाई और ये भी कि किस आदमी को धमकियाँ देती फिरती हैं आप!"

"नहीं मुझे माफ़ करो। नहीं देखना"

"अरे कल को अगर कभी सामने आए तो पहचानोगी कैसे?"

"लेकिन मेरे सामने क्यूँ आएंगे भला?" नंदिनी के बोलते बोलते नवीन ने उसे अपने साथ सोफे पर बैठा लिया और वीडियो फिर से शुरू कर दिया।

नंदिनी का ना देखने का नाटक अभी भी जारी था लेकिन अब थोड़ा मुंह बनाये उसने वीडियो पर हल्की सी नज़र डाली। देखना तो चाहती थी वो कि बचपन से सिर्फ उसी के भजन गाने वाले उसके बेटे समान भाई का दिल और दिमाग इतनी जल्दी किसने हड़प लिया?

आख़िरकार उसकी नज़र मार्च करते हुए संग्राम पर पड़ी। सेना की यूनिफार्म में वो कहर ढा रहा था। चेहरा सख्त और बगैर किसी भाव के लेकिन तेज से परिपूर्ण। एक बेखौफ़ सी हवा बहती थी उस आदमी के आसपास जो दुश्मनो के दिलों में खौफ भरने के लिए काफी थी। रौब ही इतना था!

कार्यक्रम की वक्ता की आवाज़ गूंजने लगी ....

"मेजर संग्राम सिंह सांगेर, नवीं बटालियन, द पैराशूट रेजिमेंट, स्पेशल फोर्सस"

संग्राम स्टेज के सामने आकर सावधान मुद्रा में खड़ा हो गया।

फिर कार्यक्रम की वक्ता ने उस बहादुरी का वर्णन किया जिसके लिए संग्राम को वो सेना मैडल दिया जा रहा था।

"दस मई दो हज़ार अठरह, जम्मू एवं कश्मीर के कुलगाम जिले में इन्हें आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिली। सूचना मिलते ही एक कॉर्डन और सर्च अभियान शुरू किया गया। मेजर संग्राम सिंह सांगेर ने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए अद्भुत युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया। भारी गोलीबारी के बीच इन्होने भागते हुए दो आतंकवादियों को अत्यंत चुनौतीपूर्ण स्थितियों में मार गिराया। इस अदम्य साहस व अनुकरणीय वीरता के लिए आपको सेना मैडल वीरता से सम्मानित किया जाता है। मेजर संग्राम सिंह सांगेर!"

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच संग्राम मार्च करता हुआ स्टेज पर सेना के उत्तरी कमान के अध्यक्ष के सामने आकर सेल्यूट करके सावधान मुद्रा में खड़ा हो गया। फिर उसके कंधे पर मैडल लगाकर उसे सम्मानित किया गया।

"देखा!! ये हैं संग्राम सर! मेजर संग्राम सिंह सांगेर!" नंदिनी को चुपचाप बिना पलकें झपकाये फ़ोन की स्क्रीन पर नज़रे गाड़े देख नवीन उछल पड़ा।

"हाँ ठीक है ठीक है। एक्स्ट्रा इफ़ेक्ट देने की ज़रूरत नहीं है" नंदिनी जल्दी से उठकर वहां से चली गयी।

"बहुत अच्छे भई। नवीन बेटा अपने इन साहब के साथ ही रहना और इनसे मार्गदर्शन लेते रहना। बड़े अनुभवी लगे मुझे तो" मोहन जी चश्मा निकालते हुए बोले। वो संग्राम से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए थे।

"अरे काउंटर टेररिज्म स्पेशलिस्ट हैं। बहुत अनुभव है इन्हें" शेखी बखारने में नवीन भी कहाँ पीछे था।

"बहुत बढ़िया! कभी मिलने का मौका मिला तो ज़रूर मिलेंगे"

"उसके लिए आपको ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। दीदी की शादी के लिए मैंने पहले ही न्योता दे दिया है उन्हें"

"अच्छा?" मोहन जी हँसते हुए बोले।

"क्या?!! नहीं! वो यहाँ आकर क्या करेंगे?" नंदिनी कमरे से बाहर आकर आँखें दिखाती हुई बोली।

"शादी देखेंगे और क्या करेंगे। वो छोटे बड़े का भेद नहीं करते। चिंता मत करो। बहुत मज़ा आएगा देखना शादी पर। मेरे सारे आर्मी के दोस्त आयेंगे। सबको बता रखा है मैंने। एक बार बस तारीख निकल जाए फिर देखना जलवे" स्टाइल से बालों पर हाथ फिराते हुए नवीन बोला।

"फिर तो बहुत अच्छी और बढ़िया जगह इंतज़ाम करना पड़ेगा। तुम्हारे साहब भी आएंगे" मोहन जी को अलग ही परेशानी ने घेर लिया था। इंतज़ाम तो वो वैसे भी बहुत अच्छा ही कर रहे थे लेकिन संग्राम के आने का सुनकर उन्हें वो भी कम लग रहा था।

"आप चिंता मत करिये बाबा। ज़्यादा तामझाम करने की ज़रूरत नहीं है। जो है ठीक है। वो नहीं आएंगे शादी पर" नंदिनी दो टूक शब्दों में बोली।

"अच्छा? लगी शर्त?" नवीन को उसकी बात चुभ गयी थी।

"हाँ लगी"

"मैं जीता तो आपकी एक छह महीने की सैलरी मेरी और अगर आप जीती तो मेरी एक महीने की सैलरी आपकी"

"अरे? तुम्हारी भी तो छह महीने की सैलरी मेरी होनी चाहिए ना?! ये क्या बात हुई?"

मोहन जी ने दोनों को लड़ते हुए देखकर एक नज़र उनपर लापरवाही भरी डाली और अपने हिसाब किताब में व्यस्त हो गए।

दूसरे दिन रमन के साथ नवीन और नंदिनी शहर घूमने निकल गए। गाड़ी में नंदिनी पीछे ही बैठी थी। नवीन ने ज़िद की कि वो आगे रमन के साथ बैठे। रमन ने कुछ बोला तो नहीं लेकिन उसकी मुस्कुराती हुई चुप्पी साफ बता रही थी कि वो भी ऐसा ही चाहता था लेकिन नंदिनी की झिझक ने दोनों की उम्मीद पर पानी फेर दिया था।

रास्ते में नंदिनी चुप ही रही और दोनों नवीन - रमन फ़ौज की बातों में ही व्यस्त रहे। उसे भी लगे हाथ नवीन ने अपनी पसंदीदा संग्राम गाथा खूब भक्तिभाव से सुनाई। पीछे से नंदिनी ने उसका मुंह बंद करने के लिए बहुत इशारे किये लेकिन नवीन साहब को कहाँ कोई होश। वो बिना खतरों की परवाह किये डटे रहे। आख़िरकार पीछे बैठे दुश्मन को हार मानकर अपना माथा पीटने से ही काम चलाना पड़ा और नवीन कुमार पांडे विजयी घोषित हुए।

शहर के एक बड़े रेस्टोरेंट के बाहर गाड़ी रोकते हुए रमन ने खाना वहीँ खाने की इच्छा जतायी तो तीनों वहीँ चल दिए।

कोने का एक खाली टेबल मिल गया और तीनों वहीँ बैठ गए। खाना क्या मंगवाया जाए उसके लिए रमन ने मुस्कुराते हुए मेनू सामने बैठी नंदिनी के आगे कर दिया। नवीन ने इशारो में नंदिनी को छेड़ना शुरू कर दिया जिसे रमन ने भाँप लिया था। वो भी हंसने लगा।

फिर अचानक लड़कियों का एक ग्रुप रेस्टोरेंट के अंदर दाखिल हुआ। खूब हंसी ठिठोली हो रही थी उन लड़कियों के बीच। उस पूरे ग्रुप ने सामने के एक बड़े से टेबल पर कब्जा जमा लिया और उनका हंसी मज़ाक़ जारी रहा।

रमन की नज़र सहसा ही उस ग्रुप में से एक लड़की पर चली गयी। वो दूर से ही काफी आकर्षक लग रही थी तो नज़र तो फिसलनी ही थी।

लेकिन वजह कुछ और भी थी। उसने उस लड़की को पहले भी कहीं देखा था। वो बस वही याद करने की कोशिश कर रहा था कि कहाँ देखा था।

फिट अचानक उसे याद आया।

ये तो वही तस्वीर वाली लड़की थी जो उसकी माँ ने दिखाई थी।

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Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.