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भाग - 11

शाम के वक़्त नवीन ने अपने हाथ में फ़ोन लिए किसी का नंबर डायल किया। उसके माता पिता भी साथ ही बैठे थे।

"स्पीकर पे डाल ना नवी" उसकी माँ धीरे से बोली। नवीन ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और फ़ोन स्पीकर पर डाल दिया। रिंग जा रही थी।

थोड़ी देर बाद "हेलो" की आवाज़ के साथ रमन ने फ़ोन उठाया।नंदिनी साथ बैठी ऐसे दिखा रही थी मानो उसे कोई फर्क ना पड़ रहा हो लेकिन अंदर से उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।

"हेलो नमस्ते जीजा जी, मैं नवीन"

" अरे पांडे जी कैसे हैं आप?"

"जी बहुत बढ़िया। आप कैसे हैं?"

"बस बढ़िया। और घर में सब कैसे हैं?"

" सब बढ़िया हैँ"

"अच्छा, ये बताओ छुट्टी कब आ रहे हो?"

" दरअसल मैं छुट्टी पर ही हूं"

"अरे वाह! कितने दिन की?"

"लगभग हफ्ता ही लेकिन शादी पर आऊंगा मैं लम्बी छुट्टी लेकर"

"हाँ ज़रूर" उसकी बात सुनकर रमन हंसने लगा।

"अच्छा जीजा जी मैं सोच रहा था कहीं घूमने का प्लान बनाते हैं ना। मैं, आप और दीदी"

रानी देवी ने ख़ुश होकर नंदिनी को इशारा किया जिसने वहां से खिसकने में ही भलाई समझी। ये देखकर उन्होंने अपने माथे पर हाथ मारते हुए सर हिलाया। क्या करें इस लड़की का।

"हां हां क्यों नहीं लेकिन अपनी दीदी से पूछ लेना क्योंकि मुझे नहीं लगता वह हमारे साथ जाना चाहेगी" रमन के जवाब में खनक थी।

"क्यों नहीं जाना चाहेंगी? वो जरूर जाएगी। आप बस जगह बताइए कि जाना कहां है वहीं चलेंगे"

" ठीक है ऐसा करेंगे कि मैं गाड़ी लेकर लेने ही आ जाऊंगा साथ में ही चलेंगे शहर। कल तो मैं थोड़ा व्यस्त हूं। परसों पक्का!"

"जी। बिल्कुल ठीक है" कहकर नवीन ने फोन रख दिया और भागकर कमरे में नंदिनी के पास पहुँच गया।

"चलो तैयारी करें फिर? देखिये दीदी आपके और जीजा जी की जान पहचान बढ़ाने में मेरा कितना योगदान है। इसका इनाम तो मुझे मिलना चाहिए। है ना?"

"रहने दो रहने दो। तुम मिलने के लिए मरे जा रहे हो और नाम मेरा। वाह!"

वही फ़ोन रखने के बाद रमन अपने हाथ में पकड़ी एक लड़की की तस्वीर को देखने लगा।

"दूध सी सफ़ेद है। देखो तो सही कितनी सुंदर है!" रमन के पास सोफे पर उसकी माँ बैठी थी। सामने सर पर हाथ धरे उसके पिता बैठे अपनी धर्मपत्नी को घूर रहे थे।

"रिश्ता हो चुका है रम्मू की अम्मा! अब ये क्या करने की कोशिश कर रही हो?"

" रिश्ता ही हुआ है ना शादी तो नहीं हुई? और लड़की मुझे इतनी पसंद नहीं आयी। हाँ नैन नक्श अच्छे हैं लेकिन रंग गोरा होता तो ज़्यादा अच्छी लगती"

"ये किस तरह की बातें कर रही हो तुम?! तुम्हें नहीं पसंद आयी थी तो वहीँ बोल देती। और इस लड़की को पहले ही मना कर चुका हूं मैं। ये लड़की मेरे घर की बहू नहीं बन सकती। इसका चाल चलन ठीक नहीं। मैंने सारा पता निकलवाया है"

"वो सब झूठ है। लोग जलते हैं खूबसूरत लड़कियों से। इसकी माँ से बात हुई है मेरी। देखिये अभी तक यहाँ किसी को पता नहीं है रिश्ते के बारे में। यहाँ मैंने कोई मिठाई विठाई नहीं बंटवाई है। इतने अच्छे घर का रिश्ता फिर से आ रहा है। बहुत ही अमीर लोग हैं। ज़मीन जायदाद, पैसा और रुतबा और ऊपर से इकलौती लड़की है उनकी। और लड़की की शक्ल तो देखिये, पूरे गाँव में इसके जैसी बहू ना मिलेगी। मानो स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा! ईश्वर ने खूबसूरती से तराशा है। रम्मू देखो ना बेटा, अच्छी है ना?"

रमन तो कब से इस तस्वीर पर अपनी नज़रे टिकाये हुए था।

"ये भी बता दो अपने बेटे को कि लड़की दसवीं फेल है और सारा दिन आवारागर्दियां करती है! इसका कोई मुकाबला नहीं है नंदिनी के साथ। वो इतनी पढ़ी लिखी और ये...." उनकी बात पूरी होने से पहले ही रमन बीच में बोल पड़ा,

"सुंदर तो है लेकिन मुझे नहीं लगता ये मेरे साथ जंचेगी माँ। अब कल को और बड़े रैंक मिलेंगे प्रमोशन के बाद ऐसे में आर्मी पार्टीज़ में बड़े बड़े अफसरों के साथ उठना बैठना होगा... मेरा भी और मेरी पत्नी का भी तो ऐसे में इतनी कम पढ़ी लिखी लड़की को सिर्फ इसीलिए अपनी पत्नी बना लूँ क्यूंकि वो स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा है। नहीं। बेइज़्ज़ती होगी मेरी वहां। और सिर्फ इसकी खूबसूरती मेरी आने वाली पीढ़ी को सही संस्कार और शिक्षा नहीं दे पाएंगे। मेरे ख्याल में नंदिनी ही सही रहेगी। मैं मामूली सा ग्रेजुएट हूं। वो मास्टर्स डिग्री लिए हुई है। गाँव में इकलौती लड़की जो शहर से पढ़ी है। साथ ही शादी के बाद पीएचडी करने के बाद वो अपने टीचिंग प्रोफेशन में बहुत आगे जायेगी। हमारा ही नाम ऊँचा होगा गाँव में और जिस तरह की नौकरी मेरी है, ऐसे में नंदिनी जैसी जुझारू और ज़िम्मेदार लड़की ही सही रहेगी हमारे परिवार के लिए ताकि कल को अकेले नहीं सब संभाल ले। ऊपर से उसका भाई भी तो इतनी कम उम्र में अच्छे पद पर है" बोलकर उसने वो लड़की की तस्वीर उठाकर टेबल पर रख दी।

उसकी बात सुनकर उसके पिता मुस्कुराने लगे।

"अरे?!! और लोग जो उसके सांवले रंग का ताना मारेंगे मुझे उसका क्या? लोग तो यही कहेँगे कि अपने इकलौते और इतने सुंदर बेटे के लिए कैसे रंग की बहू लाई हुई मैं!"

"जो ताने मारेंगे वो उसके गुण सुनकर चुप भी हो जाएंगे" रमन के पिता हँसते हुए बाहर चलें गए। रमन पहले ही अपने कमरे में जा चुका था।

"ठीक है आप बाप बेटा लोग चलाइये अपनी मर्ज़ी। दहेज़ तो खुल कर लूंगी अब मैं शादी में। बेटा मेरा फ़ौज में है और उसका भाई भी तो है। दहेज़ तो लेकर ही रहूंगी। ऐसे तो ना होने लगा उस लड़की का ग्रह प्रवेश यहाँ पर" वो दाँत पीसती हुई बोली।

"दहेज़ के लिए आगे ही मना कर चुके हैं हम। कोई दहेज़ नहीं" रमन के पिता ने बाहर से बड़बड़ाते हुए आकर सुनाया और चले गए।

********

अगले दिन दोपहर को नवीन अपना फ़ोन हाथ में लिए बाहर से भागता हुआ घर के अंदर आया।

"माँ!... बाबा!.... दीदी! कहाँ हो सब के सब?!!!" आते ही नवीन ने चिल्लाना शुरू कर दिया।

"क्या हुआ चिल्ला क्यूँ रहे हो?" नंदिनी अभी अभी ही स्कूल से घर आयी थी और थोड़ी थकी हुई थी।

"अरे! संग्राम सर को सेना मैडल मिल गया आज सुबह! दिल्ली आर्मी हेडक्वार्टर्स में एक समारोह का आयोजन किया गया था। वहां मिला है सेना के उत्तरी कमान के अध्यक्ष से। मुझे अभी वीडियो भेजा है उन्होंने!" वो ख़ुशी और गर्व से बोल रहा था।

"गाँव बसा नहीं और लुटेरे पहले ही पहुँच गए। ज़रूर तुमने ही अपने सर का सिर खा खा कर उनसे वीडियो की मांग की होगी। नवी, थोड़ा तो लिहाज किया करो। तुम्हारे दोस्त या रिश्तेदार नहीं है वो। हमेशा एक ही आदमी को सर पर चढ़ाये रखते हो या तो खुद उसके सर पर चढ़े रहते हो। अच्छा नहीं लगता ऐसे। क्या सोचते होंगे वो। ज़रूर अपने साथी अफसरों के साथ बैठकर तुम्हारा मज़ाक बनाते होंगे। तुम बहुत भोले हो" नंदिनी चिंता का भाव लिए बोली।

"ओह्ह! रहने दो आप बस! वो ऐसे नहीं है और संग्राम सर मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानते। टीम में तो सब हम दोनों को कुम्भ के मेले में बिछड़े हुए बाप बेटा कहते हैं!"

"बस अब यही सुनने को रह गया था जीवन में!" नंदिनी बहुत नाटकीय अंदाज़ में बोलकर किचन में पानी लेने चली गयी।

"अरे वीडियो तो देखो। क्या लग रहे थे संग्राम सर!"

"नहीं तुम्ही देखो और पूजो अपने संग्राम सर को! हो सके तो एक मूर्ति बनवा लो और लगे हाथ मंदिर भी बनवा डालो" वो हँसते हुए बोली लेकिन नवीन को तो मानो कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था।

तभी बाहर से मोहन जी और रानी देवी आये। दोनों शहर के ज्यूलर के पास गए थे गहनो का आर्डर देने। शादी का सामान अभी से थोड़ा थोड़ा करके इकठ्ठा कर रहे थे। तैयारियां शुरू हो चुकी थीं। उनके आते ही नवीन रसोई से दोनों के लिए पानी लेने चला गया। अभी दोनों पानी पीकर थोड़ा आराम से बैठे ही थे।

"माँ, बाबा। ये देखिये। संग्राम सर को मैडल मिला है आज दिल्ली में"

"तुम्हारे बड़े साहब को?" मोहन जी ने पूछा।

"हाँ हाँ देखिये" नवीन ने फ़ोन पर वीडियो चलाकर उन्हें पकड़ा दिया। रानी देवी भी पास ही आकर बैठ गयीं।

"अरे मेरा चश्मा कहाँ है?" मोहन जी को कुछ साफ नहीं दिखाई दे रहा था। नंदिनी आकर उनके पास चश्मा रखकर जैसे ही मुड़ी कि... "नंदा बिटिया, तू भी देख ले" मोहन जी बोल पड़े।

"नहीं आप देखिये। मुझे थोड़ा काम है" बोलकर वो चली गयी।

"बहुत ही बढ़िया व्यक्तित्व है तुम्हारे साहब का। चेहरे से क्या तेज और रौब झलकता है" वीडियो देखते हुए मोहन जी बोले।

"होगा क्यूँ नहीं? राजस्थान के एक प्रसिद्ध राजपूत परिवार से हैं। इनके परिवार में तो बस योद्धा ही पैदा होते हैं। आज़ादी से पहले वहां के राजा के लिए लड़ते थे, अब देश के लिए लड़ते हैं। देखो तभी तो सेना मेडल मिल रहा है" नवीन के चेहरे से मुस्कुराहट जा नहीं रही थी।

सब बहुत गर्व से नवीन के फ़ोन पर उस वीडियो को देख रहे थे मानो अपने घर के सदस्य को ही सेना मैडल से सम्मानित किया जा रहा हो। नंदिनी बस दूर से ही उनकी बातें सुन रही थी। बोल तो आयी थी कि नहीं देखेगी लेकिन कहीं ना कहीं उसका मन तो था ये देखने का कि उसका भाई जिसका भक्त बना फिरता है वो आदमी दिखता कैसा है?

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Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.