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भाग - 9

शाम को नवीन, संग्राम के क्वार्टर्स में जैसे ही दाखिल हुआ उसे वो बाहर लॉन में एक कुर्सी पर बैठा दिख गया था। वो वहां अकेले ही बैठा शतरंज खेल रहा था।

"गुड इवनिंग, सर" नवीन गेट से अंदर आते ही बोल पड़ा।

"आओ पांडे। हो जाए एक बाज़ी?"

वो बिना कुछ बोले मुस्कुराते हुए उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। कुछ ही देर में दोनों शतरंज में व्यस्त हो गए थे। शतरंज दोनों के सबसे पसंदीदा खेलों में से एक था जिसमें वो अपनी सख्त रूटीन से वक़्त मिलने पर अक्सर शाम को डूब जाया करते थे।

"हुई बात घरवालों से?" संग्राम ने अचानक पूछा।

"जी सर। दीदी का रिश्ता पक्का हो गया है। जीजा जी आर्मी में ही हवलदार के पद पर हैं। जम्मू में पोस्टिंग हैं उनकी"

"देट्स ग्रेट! कोन्ग्रेच्युलेशन्स! वैसे तुम्हारी एक हफ्ते की छुट्टी सैंक्शन हो गयी है"

"जी सर"

"कब जा रहे हो फिर घर?"

"अगले हफ्ते तक, सर"

"हम्म"

"और आपको भी बहुत बहुत मुबारक हो सर"

"किस बात की?" संग्राम ने चेहरा उठाकर उसे देखा। नवीन ख़ुश लग रहा था।

"मैंने सुना है आपको सेना मैडल दिया जा रहा है दिल्ली हेडक्वार्टर्स में! उपाध्याय सर ने बताया"

"अच्छा वो?.... हाँ"

नवीन को चुप देखकर संग्राम की नजर जब उस पर पड़ी तो उसे एहसास हुआ कि नवीन को उसे मैडल मिलने की बात पर कितना गर्व महसूस हुआ था। उसकी आंखों में उसके लिए एक श्रद्धा का भाव दिख रहा था।

संग्राम उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया तो नवीन भी मुस्कुराने लगा।

संग्राम कुछ पल उसे देखता रहा। नवीन का सारा ध्यान अपनी अगली चाल पर था इसीलिए उसने शतरंज के बोर्ड पर अपनी नज़रेँ गड़ा रखी थीं।

फिर संग्राम अचानक ही बोला,

"कभी-कभी तुम बिल्कुल विक्रम जैसे लगते हो" बोलकर संग्राम ने शतरंज के बोर्ड पर नज़रेँ गड़ा दी।

"आपके भाई जो एयरफोर्स में थे?"

संग्राम ने हल्का मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाया। विक्रम के बारे में संग्राम ज़्यादा बात नहीं करता था। वो तो वैसे भी कम ही बोलता था।

नवीन कुछ देर चुप रहने के बाद बोला - "मैंने खबर सुनी थी जब वो शहीद हुए थे। तब मैं एनडीए के लिए तैयारी कर रहा था.... मुझे आज भी याद है उस दिन मेरा एनडीए का रिजल्ट आया था और मैं पास नहीं हुआ था। तब टीवी पर बता रहे थे कि शहीद फ्लाइट लेफ्टिनंट विक्रम सिंह सांगेर का एक बड़ा भाई भी है जो ड्यूटी की वजह से वहां नहीं आ पाया। उस दिन मैंने ठान लिया था कि चाहे अफसर बनकर जाऊं या सिपाही लेकिन जाऊंगा तो आर्मी में ही। फिर जब आपसे मिलने का सौभाग्य मिला और आपके बारे में पता चला कि आप कौन हैं तो फिर आपको ही अपना माई बाप मान लिया मैंने यहां"

"जानता हूं और एनडीए नहीं हुआ तो क्या हुआ। तुम तैयारी कर तो रहे हो कोर्स एग्जाम्स की भी। तुम एक दिन बहुत आगे जाओगे पांडे, हम सबसे आगे और हम सबसे ऊपर"

"ये बात सिर्फ आप ही कह सकते हैं मुझसे। और किसी को तो यकीन ही नहीं मुझ पर"

"मुझे है" नवीन उसकी बात सुनकर मुस्कराने लगा। संग्राम के मुझे निकले हुए चंद प्रशंसा भरे शब्द भी उसका मनोबल आसमान जितना ऊंचा करने की ताकत रखते थे।

"और मुझे भी पूरा यकीन है कि आप भी बहुत जल्दी लेफ्टिनंट कर्नल के पद पर पहुंच जाएंगे"

"इतनी जल्दी नहीं। पहले कर्नल बोर्ड क्लियर होगा फिर होगा और बोर्ड किसी को भी इतनी जल्दी क्लियर नहीं करता"

"वो तो आप देख लीजियेगा, पहली ही कोशिश में आपका बोर्ड क्लियर हो जाएगा। सेना में आपकी उत्कृष्ट सेवाएं सब जानते हैं। इतने ऑपरेशन्स लीड किये हैं आपने और वो भी इतने मुश्किल। आपका प्रोफाइल तो इतना बढ़िया है कि क्या ही कहें..."

"अच्छा ठीक है। खाओगे कुछ?"

नवीन कुछ बोला इससे पहले ही संग्राम उठने लगा।

""रुको मैं तुम्हारे लिए कुछ लेकर आता हूं और अगर मेरे पीछे से तुमने शतरंज के बोर्ड पर प्यादों को हाथ भी लगाया ना तो यही खड़ा करके गोली मार दूंगा" संग्राम जाते हुए पीछे मुड़कर उसे ऊँगली दिखाते हुए बोला और अंदर चला गया।

"अरे नहीं सर। बिल्कुल भी नहीं" वो हँसता हुआ उसे जाते हुए देखते हुए बोला। संग्राम बाकी अफसरों जैसा नहीं था जो अपने जूनियर्स से काम करवाए या उनपर रौब झाड़े। वो सब खुद ही करता था। उसकी नज़र में सब बराबर थे चाहे वो किसी भी पृष्ठभूमि से आते हों। उसे फर्क नहीं पड़ता था। नवीन उसकी इसी बात का कायल था। उसके साथ बैठकर उसे कभी महसूस ही ना होता कि वो एक अफसर के साथ बैठा है जो उम्र, तजुर्बे और रुतबे में उससे बहुत बड़ा है।

एक हफ्ते बाद

नरियापुर की सीमा पर बने बस स्टैंड पर एक ठीक सी दिखने वाली बस आकर रूकी। गाड़ी से नवीन अपना एक बड़ा सा बैग कंधे पर टाँगे बाहर निकला और उसके उतरने के बाद बस धूल उड़ाती वहां से चली गयी क्यूंकि सड़क तो नाम भर की ही थी वहां।

नवीन ने अपना बैग नीचे जमीन पर रख दिया और चारों तरफ देखते हुए मुस्कुराते हुए गहरी सांस ली मानो नरियापुर की आवो हवा को अपने अंदर समेटना चाहता हो...मानो ना जाने कितनी देर बाद उसे उस हवा में सांस लेने का मौका मिला हो जहाँ से उसका अस्तित्व जुड़ा था।

"नवी!!!!" अपने पीछे से अब आई हुई आवाज को सुनकर नवीन जैसे ही पीछे मुड़ा तो सामने उसके बचपन का दोस्त महेश खड़ा था।

"अबे कुत्ते सच में ये तू है!!!" महेश आकर एक दम उछलकर उसके गले लग गया। उसने अपने दोनों पैर उसकी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिए थे।

"हट बे! जिस तरह से तू चिपक रहा है,लोग गलत समझेंगे" उसने झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए उसे अपने से दूर धकेलने की कोशिश की लेकिन महेश ज्यों का त्यों उस पर चिपका रहा।

आखिर में नवीन की भी हंसी छूट गयी।

"और बता संतोष, बिल्लू, भरत....कैसे हैं सब?" नवीन उससे दूर हटकर पूछा।

"सब शहर में रहकर अपनी अपनी नौकरियों में व्यस्त हैं। और तुझे पता है संतोष? वो अंग्रेज़ी सीख रहा है। अच्छा प्रमोशन मिला है उसे। मैं बताऊंगा सबको कि तू यहाँ आया है। देखना सब भागते हुए पहुँच जाएंगे"

फिर दोनों हंसने लगे।

महेश ने उसे बताया कि उन्होंने रमन के बारे में सारी जानकारी पहले ही निकाल ली थी उसके कहने पर और वो बिल्कुल चिंता ना करें। परिवार बहुत ज्यादा अच्छा है और नंदिनी वहां पर बहुत ज्यादा खुश रहेगी।

नवीन ने सर हिलाकर हामी भरी। महेश ने उसका बैग जबरदस्ती उतरवा कर खुद अपने कंधों पर उठा लिया और दोनों नारियापुर की तरफ जाने वाले रास्ते की ओर बढ़ गए थे।

"घर पर किसी को पता है कि तू आ रहा है?" महेश ने उसका बैग उठाये उसके आगे आगे चलते हुए पूछा।

"नहीं, किसी को भी नहीं पता। वही तो मज़ा है"

वहीँ नंदिनी स्कूल के बाद घर की तरफ बढ़ रही थी। उसे काफी वक्त से लग रहा था कि उसके पीछे कोई है।

वो बार बार पीछे मुड़कर देख रही थी लेकिन उसे वहां पर कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था।

"अरे यहाँ बम है!! फटने वाला है!!!!! भागो!!!!"

अचानक नंदिनी को पीछे से किसी के चिल्लाने की आवाज आई तो वो हड़बड़ी में अपने दोनों हाथ कान पर रखे रास्ते के कोने में दुबक कर बैठ गयी।

शांत स्वभाव की नंदिनी को बम और पटाखों की तेज़ आवाज़ से बहुत डर लगता था।

फिर अचानक उसे पीछे से हंसने की आवाज आई। डरी हुई नंदिनी ने जब पीछे मुड़कर देखा तो उसके सामने नवीन और महेश पेट पकड़ कर हंस रहे थे।

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Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.