"नवीन, जो भी परेशानी है बता सकते हो। क्या बात है?" संग्राम ने उससे फिर पूछा।
"दीदी के लिए थोड़ा सा परेशान हूं...ना जाने वहां क्या हुआ होगा। पता नहीं दीदी को लड़का पसंद आया भी होगा या नहीं। कहीं मां और बुआ के दबाब में आकर लड़के को बिना पसंद के हां ना कर दी हो"
"ये भी तो हो सकता है ना कि तुम्हारी दीदी को सच में लड़का पसंद आ गया हो"
नवीन ने उसकी तरफ देखा। हाँ ये भी तो हो सकता था, उसने सोचा।
"अब क्या सोच रहे हो?"
"शायद आप सही कह रहे हैं मैं बेवजह ही चिंता कर रहा हूं। हो सकता है कि उन्हें बिना किसी दवाब के लड़का पसंद आ गया हो"
"हां तो फिर तो कोई चिंता की बात ही नहीं है ना"
"लेकिन अगर वह लड़का सच में अच्छा ना हुआ तो?"
"मतलब?"
"मतलब कभी कभार असलियत शादी के बाद सामने आती है। रिश्ता जोड़ने के लिए सब मीठे और प्यारे बन जाते हैं" नवीन बहुत ही गंभीर अंदाज़ में बोला।
"लेकिन वो तो किसी के साथ भी हो सकता है"
"लेकिन मेरी दीदी के साथ नहीं होना चाहिए"
"पांडे, मेरे ख्याल से तुम ज़्यादा ही सोच रहे हो। तुम इतने समझदार हो तो तुम्हारे परिवार वाले और तुम्हारी दीदी भी समझदार होंगे। तुम्हारी दीदी वैसे भी तुम्हारी जान है ऐसे ही थोड़ी ना तुम्हारी जान यूं ही किसी को भी दे देंगे।"
उसकी बात सुनकर नवीन हंसने लगा।
"आप जानते हैं मैं अपनी ज़िन्दगी में सिर्फ एक चीज़ से डरता हूँ...." वो बोलते हुए हिचकिचा रहा था।
"तुम डरते भी हो? देट्स अ सरप्राइज। कमांडो होकर डरते हो?"
"नहीं सर, भाई होने की वजह से डरता हूं। ज़िन्दगी से मुझे कुछ नहीं चाहिए सिवाय एक चीज़ के"
"क्या?"
"कल को मैं शहीद भी हो जाऊं ना तो बस उससे पहले मेरी नंदा दीदी की शादी हो जाए। मुझसे पांच साल बड़ी हैं वो और उन्होंने मुझे अपने बेटे की तरह पाला है। मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है वो। बाकी सब ज़िम्मेदारियां बाद में। सबसे पहले मेरी नंदा दीदी"
"इतनी जल्दी तो नहीं होने वाले तुम शाहिद लांस नायक नवीन पांडे। अभी तो हमें मिलकर देश के बहुत सारे दुश्मनो को मौत के घाट उतारना है"
नवीन बस मुस्कुरा दिया।
"और दीदी की इतनी चिंता लेकिन तुम्हारे परिवार वाले, तुम्हारे मां-बाप?"
"मेरे जाने के बाद नंदा दीदी उन्हें बहुत अच्छे से संभाल लेगी। उनकी चिंता नहीं है मुझे। वो वैसे भी सब कुछ अकेले ही तो संभालती है। वो मायका और ससुराल दोनों ही बहुत अच्छे से संभाल लेंगी। बस फ़िक्र इस बात की है कि क्या उन्हें कभी कोई संभालने वाला मिलेगा? मुझे तो उनके लिए कोई ऐसा चाहिए जो उनकी इज्जत करें और उनका बहुत ज्यादा ख्याल रखें। दीदी पच्चीस की है और बातें साठ साल के बुज़ुर्गो वाली करती है। उनको कोई ऐसा मिलना चाहिए जो उनके अंदर के बचपने को ज़िंदा रखे। कोई ऐसा जो सही मायनों में उनका साथी हो"
"और मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारी दीदी को ऐसा मिल गया है"
"काश ऐसा ही हो सर"
"ऐसा ही होगा लेकिन यह बताओ कि अगर ऐसा हो गया तो तुम पार्टी दोगे?" संग्राम उसका ध्यान भटकाने के लिए बोला।
"बिल्कुल सर! जरूर पार्टी दूंगा! आप नरियापुर आइएगा ना" नवीन ख़ुशी से बोला।
"अच्छा मतलब तुम्हारी पार्टी के लिए मुझे नरियापुर आना पड़ेगा?"
"अरे नहीं नहीं सर सिर्फ पार्टी के लिए नहीं आप शादी के लिए भी तो आएंगे ना वहां। अगर दीदी की शादी तय हो गई तो आप वहां पर जरूर आएंगे वरना आपके बिना शादी नहीं होगी। आप तो पूरी नरियापुर के चीफ गेस्ट होंगे दीदी की शादी पर"
"ज़रूर" बोलकर संग्राम ने उसका कंधा मुस्कुराते हुए थपथपाया।
बेस पर वापिस आते ही नवीन ने घर फ़ोन मिलाया। उसे बिल्कुल वैसा ही सुनने को मिला जैसा संग्राम ने बोला था।
दोनों परिवारों की रजामंदी से नंदिनी और रमन का रिश्ता पक्का हो गया था। उसकी माँ रानी देवी बहुत ही ख़ुश होकर उसे बता रहीं थीं।
"नंदा दीदी से पूछा भी था किसी ने या नहीं? आप मेरी बात करवाइये" नवीन ने कहा तो रानी देवी ने बताया कि लड़के वालों के जाने के बाद नंदिनी अपने कमरे में बंद थी।
"देखा?!!! आप मेरी बात करवाइये। अभी पता चल जाएगा कि आप लोगों ने दवाब बनाया है। बुआ जी भी आयी होंगी ना। बस उन्हीं के कहने पर सब कुछ हुआ होगा। सब समझता हूं मैं"
"हाँ हाँ बस एक हम ही निर्दयी हैं उसकी ज़िन्दगी में और तुम कुछ भी अनाप शनाप ना बोलते रहा करो! दे रहीं हूं फ़ोन खुद बात कर लेना" रानी देवी ने नंदिनी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। उसने दरवाज़ा खोला तो वो बिना कुछ भी बोलें उसे बस फ़ोन पकड़ा कर लौट गयीं।
"तुम्हारे लाडले को लग रहा है कि हम तुम्हें ज़बरदस्ती ब्याह रहे हैं। हमारी तो ना सुनता खुद ही बात करो" वो पीछे मुड़कर बड़बड़ाते हुए नंदिनी की आँखों से ओझल हो गयीं।
"हेलो नवी" नंदिनी मुस्कुराते हुए उसका फ़ोन कान पर लगाए बोली।
"आप अकेले क्यूँ बैठी हैं? आप ख़ुश नहीं हैं क्या रिश्ते से? आपसे पूछ कर ही हाँ हुई है ना हमारी तरफ से?....."
"अच्छा बस बस!" नंदिनी ने उसकी बात बीच में ही काट दी।
नवीन चुप हो गया।
"जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ भी नहीं है। और क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि माँ बाबा मेरा कभी गलत सोचेंगे या मेरी मर्ज़ी के बिना कोई भी कदम उठाएंगे? उन दोनों ने क्या आजतक लोगों की बातों में आकर कभी भी हम दोनों पर अपना कोई फैसला थोपा है क्या? बताओ"
"नहीं"
"तो आगे भी नहीं करेंगे। कभी नहीं..."
"तो आप अकेली कमरे में क्यूँ बैठी हैं?"
"बस यूँ ही"
नंदिनी के "यूँ ही" को उसका भाई बहुत अच्छे से समझता था। ऐसा तभी होता था जब नंदिनी किसी पशोपेश में होती, किसी उलझन से जूझ रही होती या कुछ स्वीकारने की जद्दोजहद कर रही होती।
"आप रिश्ते से ख़ुश तो हैं ना?"
"हम्म"
"हम्म क्या होता है? हाँ या ना बोलो ना"
"हाँ बाबा हाँ"
"पढ़ने देंगे ना आगे?"
"हाँ, बोला तो है"
"सब अच्छे से तय हुआ ना?"
"नवी...."
"अरे यार मैंने मिस कर दिया ना तो क्या हुआ पूछ रहा हूं तो"
नवीन के बोलने पर नंदिनी मुस्कुराने लगी।
"माँ ने बताया अंगूठी भी पहना गए वो लोग"
"हम्म" नंदिनी अपने हाथ पर सजी एक प्यारी सी अंगूठी को निहारते हुए बोली।
"लगता है घर से ही सब तैयारी करके आए थे। सब ठीक रहा ना?"
"हाँ सब ठीक रहा। ये बताओ अगले महीने छुट्टी आ रहे हो ना?"
"वो अभी पक्का नहीं है। लगता है शादी पर ही आ पाउँगा"
"क्या मतलब?! तुम आओगे तभी मुहूर्त निकलेगा शादी का बता रहीं हूं अभी से"
"हाँ ठीक है। कोशिश करूंगा। अच्छा चलिए बाय। बाद में बात करूंगा"
"बाय। ख़ुश रहो और जीते रहो"
नवीन को कहीं ना कहीं ये बात बार बार काट खा रही थी कि अपनी बड़ी बहन के जीवन के इतने बड़े फैसले में वो उसके साथ नहीं। वो तो उससे जुड़ी हर चीज़ में अपना योगदान चाहता था। और कुछ नहीं तो कम से कम अपनी बहन के साथ ही खड़ा रह पाता लेकिन देश सेवा में दिए वादे से मुकर भी तो नहीं सकता था और जो वो करता था उसे उससे सबसे ज़्यादा प्यार था, घर परिवार से भी ज़्यादा।
वही देश सेवा में किया हुआ वादा उसे अपने घर परिवार से, उसकी प्यारी नंदा दीदी से, उनके प्रति उसके कर्तव्य से हमेशा के बहुत दूर लेकर जाने वाला था।

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