आज नंदिनी को देखने के लिए शर्मा परिवार उनके घर आने वाला था। रमन की छुट्टी का ही इंतज़ार था दोनों परिवारों को और वो एक हफ्ते बाद छुट्टी लेकर घर आया था। पांडे निवास में उसी की तैयारियां ज़ोर शोर से चल रहीं थीं।
नंदिनी और नवीन की इकलौती बुआ, यमुना देवी ख़ासतौर पर आयी थीं। पांडे जी की बड़ी बहन थीं इसीलिए इज़्ज़त भी थी और दबदबा भी। रमन और नंदिनी के रिश्ते पर उनकी मोहर लगती तभी शादी होती।
साथ आए थे उनके दोनों बच्चे - बेटा निरंजन जो नंदिनी से दो साल बड़ा था और अवविवाहित था और बेटी सुकन्या जो नवीन से कुछ साल छोटी थी और अभी कॉलेज जाती थी।
नंदिनी अपने कमरे में तैयार हो रही थी और सुकन्या उसकी मदद कर रही थी कि तभी बुआ कमरे के अंदर आई।
"अरे ये क्या रंग पहन लिया नंदा?! कुछ अच्छा रंग पहनो ताकि रंग गोरा लगे। पार्लर में ही तैयार हो जाती। ये क्या है नंदा?" उन्होंने आते ही शिकायतों की झड़ी लगा दी थी।
नंदिनी ने नीले रंग की साड़ी पहनी थी। ज़्यादा तैयार नहीं हुई थी। बस हल्का सा मेकअप करके बाल खुले छोड़ रखे थे जो उसके कमर तक आते थे।
"ठीक है बुआ जी... ऐसे ही ठीक है" वो थोड़ी बुझी सी बोली।
"हाँ तो फिर लड़का भी मुंह बनाकर बस ठीक है ही बोलेगा" वो बोलकर कमरे से बाहर चली गयीं।
"दीदी थोड़ा अच्छा मेकअप कर दूँ? स्किन टोन थोड़ा लाइट लगेगा" सुकन्या बोली तो नंदिनी ने ना में सर हिला दिया।
"मेकअप लगाने से बस मैं अपना असली रंग कुछ देर के लिए छुपा सकता हूं, बदल नहीं सकती। जो मैं हूं वैसी ही दिखने में कैसी शर्म? अगर जैसी मैं हूं वैसे ही मुझे कोई पसंद नहीं कर सकता तो फिर ऐसी पसंद का क्या फायदा" वो मुस्कुराते हुए अपने बाल कानों के पीछे करते हुए बोली।
"जैसी आपकी मर्ज़ी" सुकन्या बोली।
"तुम जाओ" नंदिनी उसे जाने का बोली।
"जब जीजू.... मेरा मतलब है जब वो लोग आ जाएंगे तब मैं आपको लेने आ जाउंगी" सुकन्या हंसती हुई बाहर चली गयी।
नंदिनी को नवीन की बहुत याद आ रही थी। इस वक़्त वो यहाँ होता तो खूब मस्ती मज़ाक होता और उसका मूड भी कितना अच्छा होता। उसके साथ दो दिन से बात नहीं हो पायी थी नहीं तो कुछ तो राहत मिलती उसे। आखिरी बार जब बात हुई थी तो उसने उसे बोला था कि तैयार होकर वीडियो कॉल करके दिखाना। यहाँ तो फ़ोन भी नहीं लग पा रहा था, वीडियो कॉल क्या ख़ाक लगती। सुबह से वो कितनी बार कोशिश कर चुकी थी लेकिन उसका फ़ोन नहीं लग रहा था।
उसका मन था कि काश! नवीन यहीं होता उसके पास लेकिन वो नहीं आ सकता उसके पास चाहे उसका जितना भी मन हो उसे देखने का। लेकिन उसे गर्व भी था अपने भाई पर क्यूंकि उसने वो रास्ता चुना था जो अक्सर सब नहीं चुन पाते।
नंदिनी को बाहर से कुछ आवाज़ें आई। कमरे की खिड़की से देखा तो शर्मा परिवार पधार चुका था। उसकी धड़कनें तेज़ हो गयी थीं। फिर से एक बार नवीन को फ़ोन किया लेकिन उसका फ़ोन आउट ऑफ़ नेटवर्क जा रहा था।
खिड़की से कुछ भी ठीक ठाक नहीं दिख रहा था।
वो आकर चुपचाप अपने बिस्तर पर बैठ गयी। अब वो नर्वस हो रही थी। ना जाने कैसे लोग होंगे, ऐसे उनके सामने जाकर बैठना, पता नहीं खुद लड़का कैसा है, क्या वैसा ही है जैसा उसके बाबा ने बताया है या कुछ.....
अचानक उसके कमरे का दरवाज़ा खुला और सुकन्या मुस्कुराते हुए अंदर आई।
"आपको बाहर बुला रहे हैं, दीदी। चलिए"
नंदिनी एक गहरी सांस लेकर उठ खड़ी हुई।
"आप बहुत अच्छी लग रहीं हैं" उसकी बात सुनकर नंदिनी हल्का मुस्कुराई लेकिन वो मुस्कुराहट पूरी नहीं थी, कुछ अधूरी थी।
कुछ देर बाद जब वो नज़रेँ झुकाये अपने कमरे से बाहर निकली तो ड्राइंग रूम से आती हुई आवाज़ें अचानक बंद हो गयीं। नंदिनी को एहसास हुआ कि सब उसे ही देख रहे थे।
"ये है हमारी नंदा। मेरा गर्व और मेरी बेटी" पांडे जी जैसे ही ये बोले तो नंदिनी ने उनकी तरफ नजरे उठा कर देखा और उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट आ गयी।
और इसी के साथ उसे एहसास हुआ कि किसी और की नजरे भी एकटक उस पर टिकी हुई थीं। उसे समझने में देर नहीं लगी कि वो रमन था!
"आओ बेटा, बैठो" पांडे जी ने उसे अपने साथ बैठने को बोला। फिर उसका सबसे परिचय करवाया गया और ये काम जगजीवन शर्मा ने किया। वो तो नंदिनी को पहली नज़र में ही देखकर अपने बेटे रमन के लिए पसंद कर चुके थे।
शर्मा परिवार से बस तीन लोग ही आए थे। जगजीवन शर्मा, उनकी पत्नी और बेटा रमन।
हाथ जोड़कर सबका अभिनंदन करते हुए नंदिनी की नज़र अपने सामने बैठे रमन से टकरा गयी। बैठे हुए भी उसकी कद काठी प्रभावित करने वाली थी! रंग गोरा, बड़ी मूंछे, सलीके से आर्मी स्टाइल में कटे हुए बाल। दिखने में काफी अच्छा था वो।
नंदिनी को देखकर वो हल्का सा मुस्कुराया। नंदिनी ने अपनी नज़रेँ नीचे झुका ली। उसके चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कुराहट तैर गयी।
*******
नवीन और उसके साथी दो कतारों में भाग रहे थे।
"फ़ास्टर बॉयज" उनके पास से संग्राम भागता हुआ आगे निकलता हुआ बोला।
"ये इतनी जल्दी हम तक पहुँच भी गए? हमसे लेट शुरू किया था यार"
"हाँ लेट शुरू किया था लेकिन फिनिशिंग पॉइंट पर यही विराजमान होंगे और वो भी हमसे पहले!"
सब फिनिशिंग पॉइंट पर पहुँचे जो एक पहाड़ी का शिखर था।संग्राम पहले से ही वहां खड़ा था।
"देखा बोला था ना सर सबसे पहले पहुँच जाते हैं"
"गुड जॉब बॉयज!" संग्राम ज़ोर से बोला और सब सावधान की मुद्रा में उसके समाने कतारबद्ध खड़े हो गए थे।
"रेस्ट करो आधा घंटा। फिर बैक टू द बेस!" वो उनको बोलकर पहाड़ी की एक तरफ चला गया। उसकी नज़र दूर पहाड़ों के बीच डूबते हुए सूरज पर पड़ी।
अजीब थी संग्राम की ज़िन्दगी! ना किसी से भय और ना किसी से मोह! देश से ऊपर उसके लिए कुछ भी नहीं था। पर्सनल लाइफ ना के बराबर थी। अकेला ही रहता और उसे वैसे ही रहना पसंद भी था। उसे अपनी इस नियमों से बंधी सख्त ज़िन्दगी की आदत हो चुकी थी और शायद ये ज़िन्दगी उसकी ज़रूरत भी बन चुकी थी।
इसके बिना ना जाने वो कहाँ होता.... ना जाने उसका क्या होता!
संग्राम की नज़र खुद से थोड़ी दूरी पर खड़े नवीन पर गयी जो थोड़ा परेशान लग रहा था।
"ऑल गुड, पांडे?" उसने पूछा तो नवीन का ध्यान उस पर गया। संग्राम ने उसे इशारा किया तो वो उसके पास आकर खड़ा हो गया लेकिन बोला कुछ नहीं।
कुछ देर दोनों ऐसे ही उस पहाड़ी के शिखर पर खड़े डूबते हुए सूरज को देखते रहे लेकिन नवीन चुप था।
"बोल भी दो" संग्राम का बस ये कहना था और नवीन ने बोलना शुरू कर दिया।
"दीदी के लिए रिश्ता आया है"
"तो?"
"मैं परेशान हूं। पता नहीं क्या हो रहा होगा वहां? अब तक तो शायद मेहमान चले गए होंगे"
"बेस में जाकर बात कर लेना। इसमें परेशान होने वाली क्या बात है?"
"नहीं बस...." नवीन की आधी बात अंदर ही रह गयी। संग्राम उसे देखकर ही भाँप गया था कि शायद वो कुछ और भी बोलना चाहता था।

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