कुछ दिनों बाद....
नंदिनी जैसे ही घर आई, उसके माता पिता ने उसे देखते ही अचानक बात करना बंद कर दी।
"नंदा!! अरे तू इतनी जल्दी आ गयी?" उसकी माँ थोड़ा हड़बड़ाई हुई सी बोली।
"इसी वक़्त तो आती हूं मैं। ऐसी कौन सी बात कर रहे थे आप लोग जो मेरे आते ही बंद कर दी?" वो भौन्हे चढ़ाकर मुंह बनाती हुई गुस्से का नाटक करती हुई बोली। उसे उनका व्यवहार थोड़ा अजीब लगा। उसने अपना बैग बरामदे के एक कोने पर रखे छोटे से टेबल पर टिकाया और खुद उनके सामने ही कुर्सी पर बैठ गयी।
"ऐसे क्या देख रही हो?" माँ, नंदिनी से नज़रेँ चुराती हुई बोली।
"देख रहीं हूं आजकल इस घर में मुझसे बातें छुपाई जा रहीं हैं। क्या चल रहा है?" वो इस बार अपने पिता को देखकर बोली।
"तेरे लिए रिश्ता आया है नंदा" उसके पिता अचानक बोल पड़े।वो बहुत ख़ुश लग रहे थे। उसकी माँ ने अपना सर पीट लिया। अभी के लिए वो नंदिनी से रिश्ते की बात छुपाना चाहती थीं लेकिन पांडे जी तो बेटी के आगे खुली किताब की तरह ही हो जाते थे।
"रिश्ता?! फिर रिश्ता?" नंदिनी के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गयीं।
"ये क्या बात हुई? पूरे पच्चीस की हो गयी है तू! अच्छी नौकरी है। रिश्ते तो आएंगे ही ना"
"माँ..."
"अरे नहीं जा रही तू हमसे कहीं दूर। पास के गाँव के ही हैं। लड़का आर्मी में है हवलदार। अच्छा घर परिवार है" इस बार माँ बोली।
"लेकिन मुझे अभी आगे पढ़ना है। पीएचडी करना चाहती हूं। इस वक़्त शादी...."
"हाँ पढ़ लेना लेकिन पढ़ाई तो शादी के बाद भी हो जाती है ना बेटा"
"अगर उन्होंने आगे नहीं पढ़ने दिया तो?"
"सरकारी अध्यापिका की नौकरी तो है ही तेरे पास। आगे पढ़ने की ज़रूरत ही क्या है? इतना अच्छा रिश्ता आया है और तू मना कर रही है! अपने गांव में इतना नाम है उनका बिल्कुल जैसे हम लोगों का है नारियापुर में" माँ बहुत गर्व से आँखों में बेटी के सुनहरे भविष्य के चाँद सितारे सजाये बोली।
"बेटा कोई बात है क्या?" पांडे जी, नंदिनी के उतरे हुए चेहरे को देखते हुए बोले।
"कोई और पसंद है क्या?" रानी देवी धीरे से बोली।
"अरे माँ! आप भी ना!! कोई और नहीं है" वो हल्का झुंझलाते हुए बोली।
"अरे नवी की माँ, चुप भी करो! मुझे बात करने दो" पांडे जी नर उसके साथ अपनी कुर्सी सरका ली थी।
"हाँ बाप बेटी बात करो। मैं चाय लाती हूं। आप समझा देना इस पगली को। अरे इतना अच्छा रिश्ता है...." वो बोलते बोलते कमर में साड़ी ठूसते हुए रसोई की तरफ चली गयीं।
"बाबा..." नंदिनी का चेहरा मुरझाया हुआ था।
"कोई ज़बरदस्ती नहीं है तुम्हारे साथ। तुम्हारी माँ को बस तुम्हारी शादी का बहुत शौक है इसीलिए ज़रा उतावली हो जाती है। मैंने पूछताछ की है। वाकई बहुत अच्छे घर के लोग हैं। लड़का तो बहुत ही शांत, सौम्य और सुलझा हुआ है बिल्कुल तुम्हारी तरह। इकलौता बेटा है और फ़ौज में है ऐसे में तुम्हारे ही जैसी समझदार, ज़िम्मेदार और पढ़ी लिखी लड़की की तलाश है उन्हें अपने बेटे के लिए" वो बहुत प्यार से नंदिनी का हाथ अपने हाथ में लिए समझा रहे थे। वो भी चाहते थे कि उनकी बेटी कम से कम लड़के से मिलने के लिए मान जाए।
और उनकी कोशिश सफल भी होती हुई नज़र आ रही थी।
नंदिनी ने नज़रेँ झुका ली थीं। थोड़ी शरमा रही थी अब वो। लड़का अच्छा है और उससे मिलते जुलते स्वभाव का है, ये सोचकर हल्की गुदगुदी तो हुई थी उसे और शादी के बाद घर वालों से ज़्यादा दूर भी नहीं जाना पड़ेगा।
चूंकि नवीन फ़ौज में था तो घर और माता पिता की ज़िम्मेदारी अकेली नंदिनी पर थी और इसमें वो कभी कोई कोताही नहीं बरतती थी। अपनी हर एक ज़िम्मेदारी के प्रति सजग और निष्ठावान थी वो। किसी को कभी कोई शिकायत का मौका नहीं देती थी।
नंदिनी की लज्जा से भरी हुई मुस्कुराहटें पांडे जी भी देख रहे थे।
"अगर कोई और पसंद हो तो....." वो जानबूझकर उसे छेड़ते हुए बोले।
"बाबा!!! आप भी?!" वो हल्का चिढ़ी हुई बोलती है तो पांडे जी हंसने लगे।
"बुला लें फिर उन्हें?" उसके पिता ने जब पूछा तो नंदिनी ने एक गहरी सांस छोड़कर शर्माते हुए नज़रेँ झुका ली और हल्का सा हाँ में सर हिलाया।
पांडे जी ने मुस्कुराते हुए नंदिनी के सर पर हाथ रख दिया।
कुछ देर बाद नंदिनी अपने कमरे में गयी तो कमरे के एक तरफ लगे आइने में दिखते अपने अक्स को देखकर ठिठक गयी।
अपने बाल पीछे करके अपना चेहरा बहुत ध्यान से देखने लगी
। दिखने में तो अच्छी थी वो। बड़ी बड़ी आँखें, तीखे नैन नक्श।
लेकिन बस रंग सांवला था!
और इसी रंग की वजह से उसका कहीं रिश्ता नहीं जुड़ता, ऐसा भी नहीं था। बहुत से कारण थे जिसकी वजह से रिश्ते जिस रास्ते से आते उसी रास्ते से वापिस मुड़ जाते।
कभी किसी को उसका ज़्यादा पढ़ा लिखा होना पसंद नहीं आता, कभी किसी को उसकी सरकारी नौकरी पसंद नहीं आती, कभी किसी को लगता कि इकलौती बेटी होने की वजह से उसका सारा ध्यान शादी के बाद भी मायके में ही रहेगा और कभी मुंह फाड़कर दहेज़ माँगने वाले मिल जाते मानो लड़की ना हो गयी अपने माँ बाप की तिजोरी की चाबी हो गयी।
अब जब भी कोई रिश्ता आता तो उसका मन ही बैठ जाता। क्या मतलब उन लोगों के सामने आकर अपने आपको खड़ा करने का जो आपको बस रूप और पैसों के तराज़ू पर ही तोलते हों? उसके माँ बाप क्यूँ दहेज़ दें? बेटी देने के लिए राज़ी हैं ना? और वो बेटी जिसे उन्होंने अपनी जमा पूंजी लगाकर काबिल बनाया है तो क्यूँ देने दे वो अपने माँ बाप को दहेज़? और क्यूँ करने दे जी हुज़ूरी उन लोगों की जिन्हे उसकी शिक्षा, करियर और अपने परिवार के प्रति ज़िम्मेदारियों से कोई लेना देना ही नहीं?
लेकिन पहली बार उसे लग रहा था कि इस बार ऐसा नहीं होगा। शायद रमन ही उसका हमसफर हो क्यूंकि उसके लिए उसके पिता का कहा हमेशा सर्वोपरि ही था। उन्होंने कहा है कि अच्छे लोग हैं तो शायद अच्छे ही होंगे।
उसने मुस्कुराते हुए खुद को आईने में देखा और गुनगुनाते हुए उसके सामने से हट गयी।
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"क्या?! आप मुझे ये सब कब बताने वाले थे? शादी के बाद? !" नवीन की आवाज़ में नाराज़गी साफ झलक रही थी। उसे दो दिन पहले ही पता चल पा रहा था कि उसकी नंदा दीदी के लिए रिश्ता आया है और दो दिन बाद इसी सिलसिले में दोनो परिवार मिलने वाले थे।
फिलहाल तो गाँव में तीनों जन, फ़ोन को स्पीकर पर डाले नवीन की नाराज़गी झेलने को तैयार थे। उन्हें इसका अंदाज़ा था ही।
"तुम्हारा फ़ोन लगे तो तुम्हें कोई बता पाए ना बेटा! बस इतनी जल्दी सब कुछ हुआ पता ही नहीं चला लेकिन अभी बस रिश्ते की बात चल रही है। कुछ पक्का कहाँ हुआ है?" पांडे जी उसे समझाते हुए बोले।
"ऐसा करते ना शादी की तारीख़ तय करके बताते आप सब मुझे! आर्मी में हूँ तो क्या परिवार से ही बाहर निकाल दिया क्या आप लोगों ने?" वो अभी भी भड़के ही जा रहा था।
"तुम ये छोटे बच्चों की तरह हरकतें करना बंद करोगे? हर बात पर मुंह फुला लेते हो" अबकी बार रानी देवी बोली।
नंदिनी ने सबको चुप रहने का इशारा किया और फ़ोन को स्पीकर मोड से हटाकर कान में लगा लिया।
"हाँ जी पांडे जी बोलिये" नंदिनी ने बहुत प्यार से बोला।
"मुझे आपसे भी बात नहीं करनी, नंदा दीदी"
"क्या बोल रहा है ये? फ़ोन के बीच से ही थप्पड़ रसीद दूंगी नवी अगर ज़्यादा नखरे किये तो" रानी देवी ने नंदिनी से फ़ोन लेने की कोशिश करते हुए कहा।
"आप फ़ोन के अंदर से कैसे रसीद देंगी थप्पड़, माँ? शांत रहो आप। मैं बात कर रही हूं ना" नंदिनी हँसते हुए बोली।
"लो जी! अब इनकी लम्बी खींच तान चलेगी" रानी देवी ने अपने पति को बाहर चलने का इशारा किया।
"वो संभाल लेगी अपने बेटे को। तुम चलो। आज अपने हाथ की चाय पिलाता हूं मैं। क्या याद करोगी तुम भी!" पांडे जी बोले तो रानी देवी हंसने लगी। दोनों को हँसते हुए देखकर नंदिनी भी मुस्कुराते हुए फ़ोन कान पर लगाकर अपने गदाधारी भीम को शांत करने में लग गयी।
"हाँ अब बोलो"
"क्या बोलो? आपकी शादी की बात चल रही है और आपने मुझे बताया नहीं? मुझे? अपने नवी को?" उसका गुस्सा नंदिनी की आवाज़ सुनकर थोड़ा शांत हो गया था।
"अभी कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है। पहले दोनों परिवार मिलेंगे फिर ही कुछ पता चलेगा। चलो छोड़ो गुस्सा"
"नहीं"
"मेरे अच्छे बच्चे नहीं हो तुम?"
"बचपन से आप यहीं करती हैं"
"मेरे अच्छे बेटे हो कि नहीं हो?"
"हाँ" वो धीरे से बोला। नंदिनी के कुछ शब्द ही उसे पिघलाने के लिए काफी होते थे।
नंदिनी मुस्कुराने लगी। उसे पता था वो पिघल ही जाएगा।
बचपन से ही उसने अपने छोटे भाई को बहुत लाड प्यार से रखा था। पिता छोटे से किसान थे तो बचपन में ज़्यादा ऐशो आराम नसीब नहीं हुए। ऐसे में उसने हमेशा अपने हिस्से का टुकड़ा भी उसे ही दिया। खुद चाहे धूप में चलना पड़ा हो लेकिन भाई के सर पर छाया कभी नहीं हटने दी उसने। और नवीन भी उसके ही जैसा था। हर वक़्त नंदिनी के आगे पीछे ही घूमता रहता। जो वो कहती उसके लिए वही बात सच होती।
"एक बात ध्यान से सुन लो आप मेरी" वो बहुत गंभीरता से बोला।
"हाँ जी बोलिये। क्या आदेश है?"
"लड़का अपने कमरे के किसी कोने से देख लेना। खुद पहले मत जाना। अगर आपको अच्छा लगे फिर ही उसके सामने जाना। और अगर थोड़ी सी भी गड़बड़ लगे तो सीधा मना कर देना। सीधे साफ लफ्ज़ो में उन्हें बता देना कि नहीं करनी शादी। और आगे पढ़ने के लिए भी मना करें तो भी शादी के लिए मना कर देना"
वो जिस तरह से बोल रहा था, नंदिनी को हंसी आ रही थी।
"मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और आप हँस रहीं हैं?!"
"अरे नहीं तुम जिस तरह से बोल रहे हो, मुझे हंसी आ गयी"
"आप हम में से किसी के लिए भी बोझ नहीं हैं दीदी" वो गंभीरता से बोला तो नंदिनी चुप हो गयी।
"मैं जानती हूं" नंदिनी की आवाज़ धीमी हो गयी थी।
"आप तंगी के दिनों में खुद ट्यूशन्स पढ़ाकर मेरा और अपना खर्चा निकालती थीं। पापा की भी कितनी मदद की आपने। अब ये मत सोचियेगा कि जिस घर के लिए आपने इतना किया वहां से हम आपको ऐसे ही खूंटी से बंधी गाय की तरह कहीं भी भेज देंगे। इतनी मेहनत के बाद ईश्वर ने आपको नौकरी, पैसा दिया है ना तो देखिएगा एक बहुत अच्छा जीवनसाथी भी देगा। आप सबसे बेस्ट डिज़र्व करते हो दीदी"
वो बहुत विश्वास से बोल रहा था।
"हाँ हाँ....दीदी तुम्हारी कहीं की राजकुमारी है ना?" नंदिनी फिर हंसने लगी।
"आप राजकुमारी से कम कहाँ हो? कितनी सुंदर तो हो आप और कितनी अच्छी भी। आप जैसी लड़की तो मैंने आजतक नहीं देखी"
"बस बस भगवान से डरो। कितनी सफाई से झूठ बोलते हो!"
"अरे झूठ कहाँ है? इंसान की ख़ूबसूरती तो उसके व्यक्तित्व से होती है और आपका व्यक्तित्व तो खरा सोना है। आपको पता है संग्राम सर भी ऐसे ही हैं"
संग्राम का नाम सुनते ही नंदिनी ने अपने माथे पर हाथ दे मारा।
"शुरू हो गया तुम्हारा संग्राम पुराण!"
"अरे सीरियस बात है सुनो तो!"
"सुनाओ" वो हारकर बोली। नवीन को संग्राम के बारे में बात करने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। ये बात पांडे निवास में सबको पता थी तो बेचारे कर कुछ नहीं सकते थे सिवाय सुनने के।
"हाँ तो मैं बता रहा था कि संग्राम सर साँवले हैँ"
"तुम्हारे संग्राम सर भी सांवले हैं?!" नंदिनी ने आजतक संग्राम को नहीं देखा था तो उसे पता नहीं था कि वो दिखता कैसा है। बस उसका नाम ही सुना था उसने।
"हाँ गहरे सांवले हैं। लेकिन इतने ज़्यादा हैंडसम हैं कि पूछो ही मत! और हैंडसम वो सिर्फ अपने चेहरे और ऊँची कद काठी की वजह से नही हैं। दरअसल उनका व्यक्तित्व बहुत शानदार है। वो जिस तरह से बोलते हैं, जिस तरह से सोचते हैं, जिस तरह से अपनी टीम को सबसे आगे खड़े होकर लीड करते हैं...."
"जिस तरह से वो सांस लेते हैं" नंदिनी चिढ़ी हुई बोली।
"हाँ वो भी.... उनका तो कोई जवाब ही नहीं.... एक मिनट... हैं? जिस तरह से वो सांस लेते हैं मतलब?" उसे अब समझ आया था कि नंदिनी मज़ाक उड़ा रही थी।
"और नहीं तो क्या? इतना उम्दा रेस्पिरेटरी सिस्टम हर किसी का थोड़े ही होता है जितना तुम्हारे संग्राम सर के पास है। सब कुछ तो नोटिस करते हो तुम, ये भी नोटिस किया ही होगा उनके बारे में?"
"बस बस। अच्छा बाद में बात करूंगा मैं। और जो बोला है वो ज़रूर याद रखना। बाय" नवीन को अब रस कहाँ आने वाला था बातों में।
"बाय" नंदिनी ने हँसते हुए फ़ोन रख दिया।

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