नवीन ने तो बस मज़ाक में नंदिनी को डराने के लिए वीडियो कॉल का कैमरा घुमाया था लेकिन संग्राम सच में पीछे खड़ा था! उसे सामने देखकर उसके हाथ से फ़ोन गिरते गिरते बचा।
"क्या हो रहा है?" संग्राम ने पूछा तो नवीन से कुछ बोलते ना बन पा रहा था। संग्राम की भारी सी रौबदार आवाज़ नंदिनी के कानों तक भी पहुँची।
उसने घबराहट के मारे फ़ोन ही बंद कर दिया।
"कर ली अपने बेटे से बात, अम्मा?" रानी देवी ने कमरे में दाखिल होते ही हँसते हुए पूछा।
"बात क्या करनी आपके बेटे से। आज तो जान ही निकाल दी थी उसने!" नंदिनी सीने पर हाथ रखकर बढ़ी हुई तेज़ धड़कनों को काबू में करने की कोशिश कर रही थी।
"क्यूँ? क्या हुआ?"
"अरे संग्राम सर के सामने मज़ाक़ कर रहा था?"
"ये वही ना उसके बड़े साहब? नवी कितनी इज़्ज़त करता है उनकी"
"इज़्ज़त करता है? सिर्फ इज़्ज़त करता है? उस आदमी का भक्त है आपका बेटा! मानो उसके संग्राम सर इंसान ना होकर ईश्वर का कोई साक्षात अवतार हो! जान ही निकाल दी सुबह सुबह!" वो तुनकते हुए बोली।
"तू बस जलती है कि तेरा बेटा तुझे छोड़कर अब और किसी की बात भी सुनता है" उसकी माँ हँसते हुए बोली।
"मैं क्यूँ जलने लगी भला? आप भी ना माँ...." नंदिनी नकली हँसते हुए बोली। जलती तो वो थी और वो भी बहुत ज़्यादा!
"हाँ हाँ तू क्यूँ जलने लगी? सब पता है मुझे" रानी देवी हँसते हुए बोली।
"बस करिये आप भी अब। आपको मंदिर नहीं जाना? स्कूल जाने से पहले मेरे साथ चलिएगा और बाबा का खेतों पर जाने का भी वक़्त हो गया है। उनका चाय नाश्ता देख लेती हूं"
बोलते हुए वो कमरे से बाहर जाने लगी।
"हाँ टाल लो टाल लो बात को"
"माँ!!" एक बार मुड़कर बोली।
"अच्छा भई ठीक है नहीं बोलती" बोलकर वो फिर हंसने लगी।
*******
"क्या हो रहा है लांस नायक नवीन पांडे? किसे फ़ोन कर रहे हो?" संग्राम आकर नवीन के सामने खड़ा हो गया।
नवीन को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले लेकिन संग्राम के बोलने के अंदाज़ से इतना तो जान गया था कि शायद उसके नाम पर किये जा रहे मज़ाक़ की उसे खबर नहीं।
"वो सर कुछ नहीं बस दीदी को फ़ोन कर रहे थे"
"दीदी ही थी ना? कोई गर्लफ्रेंड नहीं?"
"अरे नहीं नहीं सर आप तो जानते...."
"गर्लफ्रेंड होनी भी नहीं चाहिए" संग्राम के ऐसा बोलने पर नवीन का चेहरा लटक गया। उसे सच में कभी कभी लगता था कि ये आदमी शादी ही कर ले तो बेहतर है। खुद तो ब्रह्मचारी बना घूमता ही है। बाकियों को भी ज़बरदस्ती ब्रह्मचर्य का पालन करवाता है वो भी डरा धमकाकर!
"यस सर" वो धीरे से बोला।
"पीटी के बाद आठ बजे मिलो सब" बोलकर संग्राम वहां से चला गया। नवीन की तो जान वापिस आ गयी थी।
सुबह के आठ बज चुके थे और बैरक्स में उस प्रैक्टिस मिशन पर गयी टीम के मेंबर्स सावधान की मुद्रा में खड़े थे। उन सबके सामने संग्राम अपने दोनों हाथ पीछे बांधे खड़ा था। सूबेदार उपाध्याय भी साथ ही थे।
"आज के प्रैक्टिस मिशन में गलती कहाँ थी? कमांडोज़!!!" संग्राम ज़ोर से बोला।
"सर! टारगेट पर जल्दी शूट कर दिया" नवीन ने जवाब दिया।
"एंड यू पीपल लॉस्ट द एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज! फोकस ऑन द वर्ड, सरप्राइज! व्हाट्स द वर्ड?" संग्राम इतनी ज़ोर से बोल रहा था कि सारी टीम के दिल धड़ककर बाहर आने को थे लेकिन चेहरे पर कोई शिकन नहीं।
"सरप्राइज!" वो सब ज़ोर से एक साथ बोले।
"सरप्राइज़ देम एंड फिनिश देम ऑफ! ये है हमारा मोटो! एंड ब्लडी स्टिक टू देट। ऑपरेशन में एक भी गलती पूरी टीम पर भारी पड़ती है। एक की सज़ा सारी टीम को मिलती है और वो सज़ा मौत ही होती है"
"आइंदा से नहीं होगा सर" नवीन ज़ोर से बोला। चेहरा सपाट था।
"होना भी नहीं चाहिए। जानता हूं बहुत बहादुर हो तुम, पांडे लेकिन बहादुरी दिखाने के चक्कर में दिमाग गायब नहीं होना चाहिए। इट्स ऑल अबाउट टीम वर्क। ईच वन ऑफ़ अस इज़ रिस्पांसिबल फॉर एवरीवन ऑफ़ अस! टीम नहीं तो ऑपरेशन फेल और ऑपरेशन फेल तो दुश्मन की जीत और वो जीत देश पर भारी पड़ती है। दोबारा से हुआ तो यू पीपल विल बी सेंड बैक टू योर होम रेजिमेंट्स। डिसमिस!!" बोलकर संग्राम वहां से चला गया और उसके पीछे सूबेदार उपाध्याय भी चले गए।
नवीन जल्दी से संग्राम के पीछे गया।
"आइंदा से नहीं होगा सर! आई प्रॉमिस" नवीन बोला तो चलते हुए संग्राम के कदम ठिठक गए और वो पीछे मुड़कर नवीन को देखने लगा जो बड़े विश्वास के साथ बोल रहा था।
उसे देखकर संग्राम के चेहरे पर नरमी आ गयी। मानो एक बेटे ने अपने बाप से माफ़ी मांगी हो और बाप का नकली गुस्सा अब छँटने लगा हो।
"शाम को मिलना" संग्राम बोलकर मुड़ने लगा।
"बास्केटबॉल मैच? या शतरंज?" नवीन उत्साहित होकर बोला।
"वो तुम्हारी मर्ज़ी" मुस्कुराते हुए संग्राम बोलकर चला गया।
"सर!" वो उसे सेल्यूट करता है और उसे तब तक देखता रहता है जब तक वो आँखों से ओझल ना हो गया।
पूरी यूनिट मेजर संग्राम सिंह सांगेर से डरती थी लेकिन नवीन नहीं! जब वो नया नया आर्मी में एक जवान के रूप में भर्ती हुआ था तो जोश था देश भक्ति का और बस एक यही था उसके पास। आमतौर पर साधारण घरों में रहने वाले गाँव देहात के नौजवानों के पास इस जज़्बे के अलावा होता भी क्या है? कोई गाइडेंस नहीं, कोई जानकारी नहीं।
संग्राम से उसकी पहली मुलाक़ात क्रॉस कंट्री एथलेटिक इवेंट में हुई थी। तब ट्रेनिंग खत्म होने के बाद नवीन नया नया ही आर्मी में आया था। उस इवेंट में अच्छी परफॉरमेंस की वजह से वो बड़े सैन्य अधिकारियों की नज़र में आया था।
और साथ ही नज़र में आया था उसके जिसे आर्मी में सब "डेविल" बुलाते थे, देश की एलीट फोर्स, भारतीय सेना की पैराशूट रेजिमेंट का बहादुर और सख्त अफसर मेजर संग्राम सिंह सांगेर!
नवीन तो मिलते ही संग्राम का फैन हो गया था। उससे प्रभावित होकर और उसी की गाइडेंस की वजह से उसने पैराशूट रेजिमेंट के लिए अप्लाई किया। तकरीबन सौ सैनिकों के कोर्स में इकलौता नवीन ही था जो पैरा कमांडो बना। मन में नरियापुर के पास वाली चंडी माँ से ना जाने कितनी ही बार मन्नत मांगी कि अगर रेजिमेंट मिले तो मेजर संग्राम सिंह सांगेर वाली ही मिले।
और वैसा हुआ भी! नियति थी ना? उसे नहीं पता था कि मन्नत ना भी मांगता तब भी घूम फिर कर वही जाना था उसे।
कमांडो ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उसे संग्राम की रेजिमेंट ही मिली। उसके बाद तो वो संग्राम से ऐसा जुड़ा मानो कोई जन्मों का रिश्ता हो दोनों के बीच और ये सिर्फ उसकी तरफ से नहीं था। संग्राम भी उसे लेकर बहुत रिस्पांसिबल था। दस साल बड़ा था वो नवीन से इसीलिए नवीन के लिए एक फादर फिगर जैसा था। वो गलती होने पर उसे डांटता और अच्छा करने पर पीठ भी थपथपाता।
नवीन के लिए संग्राम एक बहुत बड़ा हिस्सा था उसकी ज़िन्दगी का और वो हिस्सा जिसने उसकी ज़िन्दगी को सही दिशा दिखाई थी। उसकी छत्रछाया में रहकर वो खरा सोना बना था।
हां दोनों के स्वभाव में ज़मीन आसमान का अंतर था। जहाँ नवीन हंसी मज़ाक़ करने वाला, ख़ुश रहने वाला इंसान था वहीँ संग्राम ज़्यादा बात नहीं करता था। बस उतना ही बोलता जितना ज़रूरी होता। लेकिन सब जानते थे कि नवीन के साथ वो अलग ही संग्राम है। उसके साथ वो मुस्कुराता भी है और वक़्त निकालकर उसकी बकवास सुनता भी है।
शायद इसलिए क्यूंकि उसका भी कभी एक छोटा भाई था!
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नंदिनी स्कूल से घर जा रही थी। उसे रास्ते में अपने स्कूल के ही कुछ बच्चे दिखाई देते हैं जो अपनी फेवरेट टीचर को देखते ही ज़ोर ज़ोर से "नंदिनी मैम बाय" बोलने लग जाते हैं।
नंदिनी भी हँसते हुए हाथ हिलाती है।
तभी उनमें से एक बच्चा सड़क किनारे पर खड़े आइसक्रीम वाले की ओर इशारा करता है। उसका मुंह लटका हुआ था।
नंदिनी मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाती है। माँ बाप के बाद बच्चों के ये इशारे उनके प्यारे टीचर के अलावा और कौन समझ सकता है?
कुछ ही देर में उस आइसक्रीम वाले के आसपास उन बच्चों की भीड़ जमा हो गयी थी। सब अपनी अपनी पसंद के फ्लेवर्स मांग रहे थे क्यूंकि मैम की तरफ से पार्टी मिल रही थी।
नंदिनी वहां खड़ी उन्हें देखकर बस मुस्कुरा रही थी।
दूर से दो आदमी खड़े उसे देख रहे थे। उनमें से एक जगजीवन शर्मा थे जो उसे अपने बेटे रमन के लिए एक बार दूर से देखने आए थे। उनका बेटा रमन शर्मा भारतीय सेना में हवलदार के पद पर कार्यरत था।
"जगिया, तो ये है पांडे जी की बेटी?" जगजीवन शर्मा अपने पास खड़े उसी दुकानदार को पूछते हैं जो पांडे परिवार की तारीफे करते नहीं थकता था।
"जी जी, यही है। आप देर मत करिये बस जल्दी से रिश्ता भेज दीजिये। लड़की भी सर्वगुण संपन्न है और घर बार भी बहुत अच्छा है। बहुत ही अच्छी है हमारी नंदिनी"
"हम्म" जगजीवन शर्मा उसे देखते हुए बस इतना ही बोलते हैं। उनके चेहरे की मुस्कुराहट साफ बता रही थी कि उनका फैसला क्या होने वाला था।

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