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भाग - 4

सुबह के तीन बज रहे थे। नवीन और उसके साथी कमांडोज़ जंगल में हाथ ऊपर करके भाग रहे थे। उनके कंधे पर भारी बैग्स टंगे हुए थे और हाथों में गन्स थीं।

"इससे अच्छा तो उपाध्याय पनिशमेंट दे देता। एक जगह टिका कर तो रखता। लेकिन संग्राम सर तो ऐसे भगा रहे हैं जैसे ओलँपिक्स में मैडल लेना है हमें। साला ऐसा लग रहा है कि भागते हुए ही पैदा हों गए हम। कब से भाग ही रहें हैं। खत्म ही होने को नहीं आ रहा" एक कमांडो बुरी तरह से हाँफता हुआ बोला।

"और ये सब साले नवीन तेरी वजह से हुआ है! साला दस बार बोला है कि कुछ करने से पहले सोचा कर लेकिन तू करता पहले है और सोचता बाद में है। एक की गलती की सज़ा पूरी टीम को मिलती है। पता है फिर भी अपने स्टंट मारने की आदत से बाज़ नहीं आता। " रोहित बरनवाल गुस्से से बोले जा रहा था।

"अबे यार किसी को याद भी है कि हम कितने घंटो से भाग रहे हैं? कब बजेगा सायरन?" एक कमांडो हाँफता हुआ बोला।

"दो घंटे से ऊपर हो गया है शायद" नवीन हाँफता हुआ बोला।

"प्यास लग रही है अब मुझे" उनमें से एक कमांडो आकाश चौधरी बोला।

"ये सब तुम्हारे दिमाग का वहम है। प्यास के बारे में जितना सोचो उतनी ही महसूस होगी। सोचो प्यास नहीं लगी" दूसरा कमांडो अजमल खान जैसे ही ये बोला तो रोहित ने पीछे से झापड़ लगा दिया।

"पागल है क्या साले?! मार क्यूँ रहे हो?"

रोहित ने भी उसी के अंदाज़ में कहा,

"ये तुम्हारे दिमाग का वहम है। झापड़ के बारे में जितना सोचोगे उतना ही लगेगा। सोचो तुम्हें मैंने मारा ही नहीं"

उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे।

"तुझे तो इस पनिशमेंट के बाद देखता हूँ बरनवाल" अजमल का सारा ध्यान भागने पर ही था।

"हाँ हाँ अज्जू क्यूँ नहीं। तेरे लिए तो पलकें बिठाये बैठा मिलूंगा मेरी जान" रोहित बोला तो बाकी हाँफते हुए भी फिर हंस पड़े।

"अबे जा ना!" अजमल ने पहले झिड़का और फिर हंस पड़ा।

"वहां देखो, पानी है शायद" एक कमांडो एक जगह ठहर गया लेकिन उसके कदम चलते रहे।

"चुपचाप आगे बढ़ते रहो" रोहित बोला।

"क्या पता चलेगा? पी लेते हैं बहुत प्यास लगी है"

"अबे दिमाग घास चरने गया है क्या तेरा, चौधरी? पानी पीयेगा? संग्राम सर की पनिशमेंट के बीच?!" बातों ही बातों में वो थोड़ा रुक चुके थे। हालांकि कदम अभी भी चल रहे थे।

"भाई संग्राम सर कच्चा खा जाएंगे। निकलो यहाँ से और आगे बढ़ते रहो। तुम्हें पता है ना नीरज के साथ क्या हुआ था जब उसको पनिशमेंट मिली थी? छोटी सी पनिशमेंट के बीच पानी पी लिया बस और फिर उसे तीस घंटे तक बिना पानी के रखा था सर ने! याद है ना? मत लो पंगे। बुरे फसेंगे" नवीन उनको समझाते हुए बोला।

"हाँ सही कह रहा है नवी, अबे निकलो यार" अजमल ने भी उसका समर्थन किया। बाकी सब भी मन मारकर और संग्राम के खौफ की वजह से आगे बढ़ने लगे।

नवीन से बस इतनी गलती हुई थी कि उसने तय सीमा से पहले टारगेट को हिट किया था। अब गलती चाहे एक अकेले की हो या पूरी टीम की, आर्मी में सज़ा सबको मिलती है! क्यूंकि जंग के मैदान में एक गलती की भी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

संग्राम के द्वारा पूरी टीम को सज़ा दी गयी थी। बहुत मुश्किल था उस पनिशमेंट को पूरा करना। इतना बोझ लाद कर वो सब भूखे प्यासे घंटो से उस जंगल में ही गोल गोल घूम रहे थे। उन्हें तब तक भागना था जब तक सायरन नहीं बजता। कहने को आसान काम था लेकिन सहनशक्ति की इससे बड़ी परीक्षा एक फौजी के लिए कोई नहीं जिसमें पता ही नहीं है कि कब तक भागना है और रुकना कब है।

अचानक सायरन की आवाज़ आई और वो सब रुक गए।

रुक क्या गिर गए!

आख़िरकार!

आख़िरकार....सज़ा समाप्त हुई!

लेकिन क्या सच में ऐसा हुआ था?

नहीं!

अब नवीन समेत दस कमांडोज़ की वो टीम एक कतार में खड़ी थी - एकदम सावधान और सपाट चेहरों के साथ।

उनके सामने था मेजर संग्राम सिंह सांगेर जो अपने दोनों हाथ पीछे बांधे वहां खड़ा उन सबको घूर रहा था। चेहरा सख्त और रौबिला व्यक्तित्व।

"कमांडोज़! रेस्ट नाओ" उसने ज़ोर से अपनी रौबदार आवाज़ में आदेश दिया और सूबेदार उपाध्याय को इशारा करके वहां से चला गया।

उन सबकी आँखों के सामने अपने अपने बिस्तर की नाचती हुई तस्वीर तब टूट कर बिखर गयी जब उन सबको मिलिट्री बैरक्स की बजाय एक गंदे, सड़े हुए बदबूदार कीचड़ से भरे हुए पनिशमेंट के लिए ही ख़ास बनाये हुए नाले के सामने खड़ा कर दिया गया।

"यहाँ रेस्ट करो" सूबेदार साहब ने मुस्कुराते हुए कहा तो सब एक एक करके नवीन को बकायदा घूरते हुए उस नाले के अंदर जाकर लेट गए।

"ये सज़ा क्यूँ मिली पता है?" सूबेदार साहब ने पूछा।

"पानी को देखने के लिए रुके थे" अजमल ने उबकाई रोकते हुए बोला।

"सही जवाब! वैरी गुड!" वो शाबाशी देते हुए बोले।

"कहा था ना पता चल जाएगा संग्राम सर को! ऐसे ही उन्हें डेविल नहीं बोलते" नवीन बोला।

"लेकिन उन्हें पता कैसे चला?!" आकाश ने पूछा।

"वो देखो तुम्हारे फूफाजी ऊपर उड़ रहे हैं, उन्होंने ही चुगली की है" नवीन ने ऊपर उड़ते ड्रोन की तरफ इशारा किया।

वो दोनों फुसफुसा रहे थे।

लगभग आधे घंटे के बाद उनको वहां से जाने की इजाज़त मिल गयी यानि की सज़ा खत्म।

वो सब जल्दी से नहाने के लिए घुसे। कपड़े से बदबू तो दो हफ्ते तक ना जायेगी! नहा धोकर अब सब अपने बैरक्स में आ चुके थे।

"ये संग्राम सर की शादी वादी करवाओ यार कोई! रात के अंधेरों में भी सर पर भूत की तरह मंडराते रहते हैं। कोई गर्लफ्रेंड है कि नहीं?" रोहित ने अजमल से पूछा।

"मुझे क्या पता भाई? नवीन से पूछो वो संग्राम सर का सबसे बड़ा चमचा है। हमेशा उन्हें ही इम्प्रेस करने में लगा रहता है" वो हँसते हुए नवीन को देखते हुए बोला।

"अबे मुझे उनकी निजी ज़िन्दगी के बारे में क्या पता होगा? और अगर कोई होगी भी तो हमें क्या?" नवीन गीले बाल झाड़ते हुए बोला।

"अरे तुम लोगों को याद नहीं है? अभी पिछले महीने जब कर्नल साहब ने पार्टी रखी थी अपने जन्मदिन पर तो उनकी बहन आयी थी ना दिल्ली से?" आकाश सबको याद करवाते हुआ बोला।

सब को अचानक थोड़ा थोड़ा याद आया। आर्मी यूनिट में सुंदर कन्या का आगमन भी भला कोई भूलने वाली चीज़ होती है? सब ने हाँ में सर हिलाकर जताया कि उन्हें सब याद है।

"वो लड़की संग्राम सर की गर्लफ्रेंड है?!" नवीन ने हैरानी से पूछा।

"अबे बात तो सुन पूरी। पार्टी में वो लड़की हमारे संग्राम साहब के आसपास मंडरा रही थी। उन्हें डांस के लिए भी बोला और हमारे मेजर साहब का तो बस यूँ" - आकाश ने बिना भाव का सख्त चेहरा बनाकर आँखे सिकोड़ ली - "घूरना था कि लड़की ही डर गयी। भाई साहब ऐसा घूरा है ऐसा घूरा है कि उस सुंदर कन्या के हाथ में पकड़ा हुआ मदिरा का गिलास गिरते गिरते बचा है। उसके बाद तो बेचारी संग्राम सर से सौ गज की दूरी पर ही रही"

उसकी बात पर सब हंसने लगे।

नवीन ने वक़्त देखा तो सुबह के पांच बज रहे थे। वो उन सबको छोड़कर जल्दबाज़ी में फ़ोन उठाकर बाहर की तरफ निकल गया।

"ये कहाँ गया? यार एक घंटा ही सो लेता कम से कम। उसके बाद पीटी शुरू हो जाएगी" रोहित उसके जाने के बाद बोला।

"यार तुझे पता तो है वो अपनी दीदी को फ़ोन किये बिना ना तो दिन शुरू करता है और ना खत्म" अजमल बोला।

नंदिनी ने बिस्तर से उठते ही फ़ोन चेक किया। ना कोई फ़ोन और ना ही कोई मैसेज। "आने दो इस लडके का फ़ोन इसको तो मैं मज़ा चखाउंगी" उसके बोलते ही नवीन की वीडियो कॉल आ गयी।

"आ गयी याद दीदी की?" उठाते ही नंदिनी गुस्सा करती हुई बोली। हालांकि उसका गुस्सा हमेशा की तरह झूठा था। नवीन अच्छे से जानता था।

"आपको भूलता ही कब हूं मैं?" नवीन हँसते हुए बोला।

"हाँ हाँ रहने दे अपने मस्के। कल शाम को फ़ोन क्यूँ नहीं किया? माँ भी परेशान हो रहीं थीं"

"मैं थोड़ा बिज़ी था। प्रैक्टिस मिशन चल रहा था"

"अच्छा? कैसा रहा?"

"मत पूछो यार दीदी! बिना हाथ लगाए पीट दिए गयें हैं हम सब"

"अरे क्या हो गया?"

"ये पूछो क्या नहीं हुआ? संग्राम सर ने बुरी तरह से क्लास लगाई आज सबकी"

"क्यूँ?! अफसर हैं तो क्या कुछ भी करेंगे?"

"अरे दीदी यार क्या बोल रही हो? ऐसा कुछ नहीं है। ये भी उनकी ड्यूटी का ही हिस्सा है। उनके नीचे काम करने वाले सभी फौजी उनकी ज़िम्मेदारी हैं और वो बस चाहते हैँ कि हमारी ट्रेनिंग अच्छे से हो ताकि असल ऑपरेशन में हम गलती करने से बचें और हर खतरे के लिए तैयार रहें"

"कभी सामने आ जाएं ना तुम्हारे संग्राम सर तो अच्छे से डाँटूगी मैं। बताओ इतना भी क्या सज़ा देने का शौक है उन्हें?"

"आप संग्राम सर को डांटेगी?!"

"अ... ब... ब... हाँ हाँ मैं डरती थोड़े ही हूं तुम्हारे संग्राम सर से"

"अच्छा! तो अभी बात करवाता हूं आपकी, संग्राम सर से। मेरे पीछे ही खड़े हैँ" नवीन ने ज़रा मस्ती करते हुए कहा।

"अरे, अरे...." सुनते ही नंदिनी का रंग उड़ गया।

"ये लो डांट लो फिर" बोलकर नवीन ने जैसे ही फ़ोन पीछे की तरफ घुमाया, नंदिनी ने हड़बड़ी में अपने फ़ोन के फ्रंट कैमरा पर अपना हाथ रख दिया। लेकिन पीछे मुड़ते ही नवीन का दिल धक सा रह गया।

संग्राम सच में उसके पीछे ही खड़ा था!

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Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.