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भाग - 3

चार साल बाद

दो आदमी दुकान पर बैठे देश दुनिया की बात कर रहे थे कि अचानक ही एक तीसरा आदमी दुकान पर आया। उसे देखकर उनमें से एक आदमी जो कि दुकानदार था वो चुप हो गया।

"आइये ना मोहन जी, आज आप यहां का रास्ता कैसे भूल गए? पधारिये,पधारिए बताइये क्या सेवा करें आपकी?" वह दुकानदार बात करना छोड़कर नए आए आदमी से बात करने लगा था।

"अरे आपसे क्या सेवा करवाएंगे हम। दरअसल अखबार लेना था।आज अखबार वाला घर पर नहीं आया" वो आदमी हँसते हुए विनम्रता से बोला।

"हां हां क्यों नहीं। ये लीजिए" दुकानदार ने बहुत खुश होते हुए उसे अपनी दुकान के काउंटर से एक अखबार निकाल कर दे दिया और वो आदमी अखबार लेकर चला गया।

"ये कौन थे? बड़ी खातिरदारी हो रही थी" दुकान पर बैठा हुए दूसरे आदमी ने दुकानदार से पूछा।

"आप नहीं जानते उन्हें ? वह मोहन पांडे जी हैं। अरे पास का गाँव है ना नरियापुर, वहीं के तो है"

"नरियापुर के हैं? पहले कभी देखा नहीं"

"अरे कैसे देखा होगा। अपने काम से काम रखने वाले हैं। और बहुत ही भले इंसान हैं"

"हम्म वो तो दिखने से ही लग रहे थे"

"इनकी भलाई और मेहनत का ही नतीजा है कि आज इनके दोनों बच्चे अपने पाँव पर खड़े हैं"

"अच्छा? कौन कौन है इनके परिवार में?" उस आदमी ने उत्सुकता लिए दुकानदार से पूछा।

"परिवार में तो धर्मपत्नी हैं, बड़ी बेटी नंदिनी और छोटा बेटा नवीन। बेटी नंदिनी सरकारी स्कूल में अध्यापिका के तौर पर कार्यरत है और बेटा नवीन उसके तो भाई क्या कहने.... बचपन से ही शौक था उसे फ़ौज में जाने का और देखिये आज वह फौज में है! और सिर्फ फौजी नहीं है लांस नायक का रैंक भी है और वो....वो.... वो...." दुकानदार कुछ याद करने की कोशिश करता हुआ आखिर में लड़खड़ाने लगा था।

"क्या?"

"अरे वो आर्मी की एक रेजिमेंट होती है ना जिसके सैनिक ऊँची ऊँची दीवारें यूँ ही खेल खेल में फाँद जाते हैं। इतनी ऊँचाई से भी नीचे कूद जाते हैं.... वो होती है ना.... नाम याद नहीं आ रहा"

"पैराशूट रेजिमेंट?"

"अरे हाँ!!!! वही!"

"तो भाई ऐसे बोलो ना कि पैरा कमांडो है। आर्मी का कमांडो होता है... स्पेशल फोर्स"

"अरे जगजीवन भाई हम ठहरे अंगूठाछाप। हमें क्या ही पता होगा कि किसे क्या कहते हैं। आपका रमन तो आर्मी में है। आपको तो सारा ज्ञान होगा ही"

उस दुकानदार की बात सुनकर वो आदमी यानि जगजीवन शर्मा हंसने लगे।

"नरियापुर में तो पांडे परिवार का बहुत मान सम्मान है। पांडे जी की बिटिया रानी नंदिनी तो शुरू से ही काबिल थी ही। उनका बेटा भी कम नहीं निकला। वो बच्चे जिनपर एक पिता ने अपने खून पसीने की सारी कमाई लगा दी हो, वो जब गर्व से नाम ऊँचा करें तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या ही होगा उस पिता के लिए। आप भी तो समझते ही होंगे, जगजीवन भाई। आपका बेटा रमन भी तो सेना में हवलदार है और आपका नाम कितना ऊंचा किया है उसने, पूरे गांव को पता है। पूरा गांव आपकी इज़्ज़त करता है"

जगजीवन जी जवाब में मुस्कुराये। फिर थोड़ा गंभीर होकर बोले - "पांडे जी की बेटी, क्या नाम बताया आपने..?..."

"नंदिनी.... नाम है उसका..... अरे उसके तो कहने ही क्या! बहुत अच्छी लड़की है। अपने गाँव की पहली लड़की है जो शहर जाकर विश्वविद्यालय में पढ़ी है। अब तो अध्यापिका बन पूरे नरियापुर को शिक्षित कर रही है। गाँव के बच्चों को मुफ्त ही पढ़ाती है"

"शादी कब तक है उसकी? मतलब... कहीं बात पक्की तो नहीं हुई ना उसकी?"

"वो तो मुझे नहीं पता लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं?"

"अपने बेटे रमन के लिए मैं सोच रहा था। कोई अच्छी पढ़ी लिखी लड़की मिल जाए, उनकी बेटी कैसी रहेगी? कितनी उम्र होगी उसकी?"

"यही तकरीबन पच्चीस-छब्बीस साल होगी मेरे ख्याल से। रमन से छोटी ही है। आप कहें तो बात चलाऊं?"

"नहीं अभी नहीं। अभी फिलहाल रहने देना। मैं थोड़ा जांच परख लूं फिर उसके बाद बात करेंगे वो भी सीधा घर जाकर"

"भाई जी जैसी आपकी मर्जी। लेकिन नंदिनी से अच्छी ना तो आपको बहू मिलेगी और ना ही अपने रमन को पत्नी। बहुत ही सुलझी हुई और नेकदिल बच्ची है"

"हम्म। रमन आ रहा है छुट्टी। उससे पहले मेरे ख्याल से पांडे जी के परिवार से बात करना ठीक रहेगा"

"अरे जैसी आपकी मर्ज़ी। आपको भी बहुत पसंद आएगा सब और रमन तो है ही आज्ञाकारी बच्चा"

"चलिए देखते हैं। जैसी प्रभु की इच्छा!" उन्होंने मुस्कुराते हुए बहुत ही शांत भाव से जवाब दिया।

********

घर के बाहर दरवाजे के खुलने की आवाज आई तो बरामदे में मसाला कूटने में लगी नवीन की माताजी रानी देवी की नजर दरवाजे से घर के अंदर आती नंदिनी पर गयी और वो फिर मसाला कूटने में लग गयीं। नंदिनी ने कॉटन की एक हल्के पीले रंग की साड़ी पहन रखी थी जिस पर छोटे-छोटे सफेद फूल थे। बाल पीछे जुड़े की शक्ल में बाँध रखे थे जो ढीला हो चुका था। और कुछ बाल लट बनकर,पीठ पर इधर-उधर बिखर रहे थे।

"लगता है आप बात नहीं मानेंगी, है ना? मैं जैसे ही बाहर जाती हूं आपकी कुटाई फिर शुरू हो जाती है। फिर आप रात को कहती हैं कि दर्द हो रहा है। आपको कितनी बार कहा है यह सब करने की जरूरत नहीं है आपको। आप तो ये काम भी छोड़ चुकी हैं। अब घर के लिए ही तो करना होता है तो मिक्सर ग्राइंडर है ना उसमें कुटाई पिसाई कीजिए" नंदिनी आते ही माँ को बोलने लगी।

"अरे बिटिया मशीन में मजा नहीं आता है। ये देखो यहां पर कितना महीन पिस जाता है। और खुद को व्यस्त रखने के लिए कुछ तो काम करुं। सारे घर का काम तो तू संभाल लेती है। तो बैठे बैठे इस बुढ़िया को जोड़ों में दर्द ना हो तो क्या हो"

"अरे? बुढ़िया कौन? आप तो जवान हैं" नंदिनी अपनी माँ के गले में अपनी बाहें लपेट कर बोली तो दोनों हंसने लगी।

"अच्छा माँ, छोड़िये इसे मैं कर लूंगी" नंदिनी ने पास आकर अपनी माँ को उठने के लिए बोला।

"अच्छा छोड़ रहीं हूं..... छोड़ रहीं हूं। थकी हुई आई हो हाथ मुंह धो लो मैं तुम्हारे लिए खाना लगा लेती हूं। इतना कर लूं टीचर जी?" उन्होंने हँसते हुए नंदिनी से पूछा तो नंदिनी ने हाँ में सर हिला दिया।

कुछ देर बाद नंदिनी और उसकी मां खाना खाने बैठे ही थे कि उसके पिता भी आ गए... तो उनके लिए भी खाना लगाने की तैयारी शुरू हो गयी। नंदिनी और उसके पिता आदतन देश दुनिया में क्या चल रहा है उसकी बातें कर रहे थे।

बीच बीच में नंदिनी अपना फोन बार-बार चेक कर रही थी।

"तुम्हारे बेटे का फ़ोन आ जाएगा। तुझसे बात किये बिना उसका खाना कहाँ हजम होता है" उसकी मां हंसते हुए बोली।

"आर्मी में जाकर आपका बेटा बदल गया है, अब सब हजम हो जाता है उसे मेरे बिना" नंदिनी मुंह बनाते हुए बोलती है।

"अच्छा? तो अब वो मेरा बेटा हो गया? मुझे तो लगा था तुम माँ हो उसकी। इतना लाडला तो वो हम दोनों का नहीं है जितना तुम्हारा है। उसके मुंह से निकली एक बात और तुम बस दौड़ती चली जाती हो उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिए" उसकी माँ हँसते हुए बोली।

नंदिनी के पिता भी हामी भरते हुए बोले,

"हां तो वह कौन सा कम है। वह भी इसके जैसा ही है। चाहे छोटी बात हो या बड़ी, नवीन भी तो सबसे पहले फोन इसे ही फ़ोन करता है हमें तो नहीं करता। मानो हम तो कुछ है ही नहीं" उसके पिता नकली गुस्सा दिखाते हुए बोल रहे थे।

"अब ऐसी बात भी नहीं है। वो बस थोड़ा कभी कभी..."

उसके पिता कुछ रूआँसे से हो गए थे,

"बचपन से रूखी सूखी खाकर बड़े हुए तुम दोनों और तुमने हमेशा अपना निवाला भी उसे दिया और उसने सबसे ऊपर तुम्हें ही रखा। तुम दोनों का ये प्यार और साथ ही मेरी ताकत है। अब का वक्त देखता हूं और पुराने समय के बारे में सोचता हूं तो यकीन ही नहीं आता। कल को जो लोग हमसे बात करने से कतराते थे आज खुद सामने आ आकर बात करते हैं। सिर्फ मेरे बच्चों की वजह से आज मेरी नाक सारी बिरादरी में बहुत ऊंची है" बोलते हुए मोहन जी की आँखें झिलमिला गयीं।

"अरे बस करिए आप। नजर लग जाएगी मेरे बच्चों को"

परिवार हंसी खुशी खाना खा रहा था। नंदिनी का मन तो नहीं था क्योंकि नवीन का कोई फोन नहीं आया था लेकिन फिर भी मां-बाप के सामने और उनके कहने पर उसने भी खाना शुरू कर दिया था।

******

अज्ञात स्थान, जम्मू एवं कश्मीर

रात का समय

मौत सी शान्ति ओढ़े एक घने जंगल में कुछ अज्ञात लोग एक ग्रुप में अपनी बंदूके ताने हुए उस शान्ति का साथ निभाते हुए बिल्कुल चौक्कने होकर और बिना किसी आहट के आगे बढ़ रहे थे।

उस ग्रुप में सबसे आगे चल रहे व्यक्ति की तरफ से पीछे चल रहे साथियों को इशारे के ज़रिये एक मैसेज भेजा जाता है जिसका मतलब था - "पचास मीटर की दूरी पर टारगेट दिख रहा है। दो लोग हैं"

उससे पीछे कुछ दूरी पर चल रहे एक व्यक्ति की तरफ से एक मैसेज इशारो में ही उस ग्रुप को भेजा जाता है - "किल ज़ोन तीस मीटर। उससे पहले कोई आवाज़ नहीं"

वो व्यक्ति उस ग्रुप का लीडर था। ग्रुप अब धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। टारगेट से दूरी तीस मीटर से ज़्यादा थी कि तभी अचानक गन फायर की आवाज़ के साथ वहां एक बहुत बड़ा धमाका हुआ।

"नवीन!!!!!" एक आवाज़ ज़ोर से सबके कानों में पड़ी।

"शिट शिट शिट!" ग्रुप का एक मेंबर अपने सर का हेलमेट और आँखों से नाईट विज़न गागल्स उतारता हुआ गुस्से से बोला।

"अबे क्या बक** है ये?! तीस मीटर की दूरी से पहले ही फायर कर दिया साले नवीन। अब उपाध्याय सर के सामने तुझे ही खड़ा करेंगे जब वो आदमखोर आदमी मार्क्स के नाम पर ज़ीरो हम सब के मुंह पर मारेगा" दूसरे मेंबर का पारा आसमान छू रहा था।

एक और आदमी भी नवीन पर तिलमिला रहा था

"हाँ पता है हम सबको कि तू बहुत बहादुर है लेकिन प्रैक्टिस मिशन में तो अपनी बहादुरी से हटकर कभी रूल्स से काम किया कर। अच्छे खासे इन्फेँट्री में थे, आ गए पैरा में हम सबकी लंका लगाने"

नवीन वहां ब्लास्ट की वजह से लगी आग में वहां से तकरीबन बत्तीस मीटर की दूरी पर पेड़ के नीचे रखे पुतलों को जलते हुए देख रहा था जिनका उपयोग प्रैक्टिस मिशन में टारगेट की जगह किया जाता था। कायदे से तो गोलियों के निशान होने चाहिए था वहां लेकिन ब्लास्ट हुआ था तो मतलब मिशन फेल!

लेकिन नवीन के कान पर जूँ भी रेंगती हुई नज़र नहीं आ रही थी, वो बड़े स्टाइल से सबसे आगे चलते हुए बोला,

"अबे चुप करो अब। कोई इतनी बड़ी गलती भी नहीं थी। बस कुछ मीटर पहले ही फायरिंग शुरू कर दी और क्या। हमेशा रूल्स और प्लानिंग काम नहीं आती। वी आर पैरा कमांडोस, अनप्रेडिक्टेबल!"

"प्रेडिक्टेबल तो होगी आज सूबेदार देशराज उपाध्याय की दी हुई सज़ा। छील देगा वो रगड़ा रगड़ा दे देकर" नवीन के पीछे चलता हुआ दूसरा पैरा कमांडो सर हिलाता हुआ बोला। सब हंसने लगे।

"आज रगड़ा नहीं होगा। मेरी तरफ से कोई सज़ा नहीं" अचानक सामने से आवाज़ एक आवाज़ आई तो वो सब सावधान मुद्रा में खड़े हो गए। सब के चेहरे सपाट थे लेकिन असमंजस की स्थिति बनी हुई थी क्यूंकि सामने जो था वो था उनका मिशन इंस्ट्रक्टर सूबेदार देशराज उपाध्याय! जो खुद बोल रहा था कि मिशन फेल होने पर कोई सज़ा नहीं मिलेगी!

"यस सर!" सब बहुत जोश से एक साथ बोले। सूबेदार उपाध्याय के चेहरे पर तिरछी मुस्कुराहट आ गयी।

"एन्जॉय" बोलकर वो वहां से चले गए।

"ये तो दुनिया का आठँवा अजूबा हो गया! उपाध्याय सर ने सज़ा देने से मना कर दिया और वो भी उस प्रैक्टिस मिशन के लिए जो फेल हो गया?!" एक कमांडो हैरानी जताते हुए बोल रहा था कि तभी एक और पैरा कमांडो वहां दौड़ते हुए आया। वो कमांडो उस प्रैक्टिस मिशन का हिस्सा नहीं था।

"सज़ा के लिए तैयार कमांडोस?" वो ज़ोर से बोला।

"सज़ा? सूबेदार सर बुला रहे हैं?" नवीन ने हैरानी से पूछा।

"बॉयज आज सज़ा सूबेदार साहब नहीं देंगे" वो कमांडो मज़ा लेते हुए बोला।

"तो कौन?" सबने एक साथ ही सवाल पूछा।

जवाब में वो दूर कुछ ऊँचाई पर वर्दी पहने पीछे हाथ बांधे खड़े एक ऑफिसर की तरफ इशारा करते हुआ बोला - "द डेविल इज़ हियर"

वो ऑफिसर ग्राउंड की तरफ उनको ही देख रहा था।

"संग्राम सर!!!!" दो तीन आवाज़ें उन कमांडोस के गले से एक साथ निकली।

"ओ तेरी! आज तो गए काम से"

नवीन बुदबूदाया।

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Suryaja

I’m Suryaja, an Indian writer and a story teller who believes that words are more than ink on paper—they are echoes of dreams, fragments of the past, and shadows of what could be.