मिग क्रैश की अगली सुबह देश में वही हो रहा था जो हर शहादत पाने वाले सैनिक की मौत के बाद होता है - मीडिया में डिबेट चल रही थी, सोशल मीडिया में हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे और हमारे देश का युवा - कुछ रोष प्रकट कर रहा था, कुछ को पता ही नहीं था कि देश में चल क्या रहा है और बाकी सब के लिए जैसे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी थी।
"अरे पहली बार थोड़े ही हो रहा है, ये तो होता रहता है। हवाई जहाज़ उड़ाना कोई बच्चों का खेल तो है नहीं। ये छोटे छोटे बच्चे आजकल जल्दी अफसर बन जाते हैं तो इतने अच्छे से उड़ाने कहाँ आएगा" एक आदमी एक दुकान पर बोल रहा था। उस दुकान पर नवीन और उसके पिता कुछ सामान लेने आए थे। नवीन के पिता, मोहन जी ने उसे देखकर चुप रहने का इशारा किया क्यूंकि नवीन सेना को लेकर शुरू से ही जज़्बाती था। अगर कोई कुछ सेना के खिलाफ उल्टा सीधा बोल दे तो वो भड़क जाता था और मुंहतोड़ जवाब देता था। उसके पिता ने उसे चुप करवाने की कोशिश तो की लेकिन नवीन कहाँ चुप होने वाला था।
"आपको पता है वो कौन से जहाज़ उड़ाते हैँ?" नवीन आख़िरकार बोल पड़ा।
"तुम्हें पता है क्या?"
"हाँ तभी तो पूछ रहा हूँ"
"तुम्हें पता है बता दो फिर हमें भी। आजकल के बच्चे बस बहस करवा लो। ऐसे बनते हैं जैसे सारी दुनिया की जानकारी इन्हें ही है बस" वो आदमी हँसते हुआ बोला।
"वो मिग बहुत पुराने जहाज़ हैं, जिस देश से खरीदे हैं उसने भी उन्हें इस्तेमाल करना कब का बंद कर दिया लेकिन हमारे पायलट लोग आज भी उड़ाते हैं पता है क्यूँ?"
वो आदमी चुप रहा।
"क्यूंकि हमारे देश के पास अच्छे और नये जहाज़ खरीदने के पैसे नहीं हैं और जब ये फ़ौजें सरकार से मांगती हैँ तो ये कह कर पल्ला झाड़ दिया जाता है कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते!" नवीन के पिता ने उसका कंधा कसकर पकड़ा लेकिन उस पर कोई असर नहीं हो रहा था।
"हाँ... हाँ तो? पैसे पेड़ पर उगते हैं क्या? लोग टैक्स देते हैं, अपनी खून पसीने की कमाई, फ़ौज में बहुत कुछ मुफ्त मिलता है उनको हमारे पैसों से। अब नये और इतने महंगे जहाज़ भी खरीदने लगे तो देश का दिवालिया हो जाएगा"
"मुफ्त कुछ नहीं मिलता है। रोज़ खतरों से आमना सामना करना पड़ता है इसलिए मिलता है। किसी दिन उन्होंने भी ये कहकर हमारी सुरक्षा से पल्ला झाड़ लिया कि हम पुराने हथियार इस्तेमाल करके क्यूँ जान जोखिम में डाले फिर निकलेगा दिवालिया हम सबका" नवीन गुस्से में भरा बैठा था।
वो आदमी हल्का सर हिलाते हुए मुस्कुराने लगता है "तुम ज़ज़्बाती हो रहे हो"
"फ्लाइट लेफ्टिनंट विक्रम सिंह सांगेर की जगह आज आपका बेटा होता तो आप भी ज़रूर होते.... ज़ज़्बाती!"
"नवीन!" उसके पिता ज़ोर से बोले।
"अरे कितना बदतमीज़ लड़का है!" वो आदमी भी ज़ोर से बोला।
नवीन जल्दी जल्दी बड़बड़ करता हुआ घर की तरफ बढ़ रहा था। उसके पिता उससे पीछे चल रहे थे। समझ रहे थे वो भी उसका गुस्सा। एक तो उसका एनडीए का पेपर पास नहीं हुआ ऊपर से कुछ लोगों के शहीदों को लेकर विचार उसे अक्सर गुस्सा दिलाते थे।
"इस देश में सारा ज्ञान बस दूसरों के मामलो में ही निकलता है लोगों का, खुद पर जब आती है तभी पता चलता है इन महान ज्ञानियों को!" नवीन बोलता हुआ घर के अंदर घुसा तो सामने कोई दिखाई नहीं देता।
अंदर से टीवी की आवाज़ आ रही थी। उसने अंदर जाकर देखा तो उसकी माँ और बहन, दोनों टीवी के सामने बैठी आंसू बहा रहीं थीं। उसने टीवी की ओर देखा....वहां शहीद फाइटर पायलट फ्लाइट लेफ्टिनंट विक्रम सिंह सांगेर का अंतिम संस्कार लाइव दिखाया जा रहा था। पूरे राजकीय सम्मान के साथ वायु सेना और ये देश उस जांबाज़ को विदाई दे रहा था।
नवीन भी चुपचाप आकर वहीँ पास में एक कुर्सी पर बैठ गया। उसके पिता भी बाहर से आये तो सामने का नज़ारा देखकर कुछ नहीं बोल पाए। वो भी उनके पास आकर बैठ गए।
टीवी पर बार बार विक्रम के माता पिता की झलक दिखाई जा रही थी। उसकी माँ रो रही थी और उन्हे कुछ औरतों ने पीछे से सहारा दे रखा था लेकिन उसके पिता नम आँखों से गर्व से सीना चौड़ा किये उस ताबूत में पड़े अपने जवान बेटे के नाममात्र बचे शरीर को बार बार सेल्यूट कर रहे थे।
कितने बदनसीब माँ बाप थे जो अपने जीवन में ही अपने जवान बेटे को अपनी आँखों के सामने आग के हवाले करने वाले थे। एयरफोर्स के अधिकारियो ने विक्रम के पार्थिव शरीर के ऊपर से तिरंगा हटाया और पूरे सम्मान के साथ गर्व से अपना सीना ऊँचा करके खड़े हुए उसके पिता को दे दिया जिन्होंने तिरंगे को अपने माथे से लगा लिया।
इसी की रक्षा के लिए तो देश कितने ही सिपाही बिना किसी परवाह के अपनी जान गंवा देते हैं ताकि इस तिरंगे के तले वो हर चीज़ सुरक्षित रहें जिनकी पहचान ही इस तिरंगे से है!
टीवी पर साथ ही एंकर भी बोल रही थी - "बहुत ही भावुक कर देने वाला लम्हा... आपकी टीवी स्क्रीन के सामने जो तिरंगे को अपने माथे से लगाये दिख रहे हैं वो है शहीद फ्लाइट लेफ्टिनंट विक्रम सिंह सांगेर के पिता और भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल यशवंत सिंह सांगेर और साथ में हैँ उनकी पत्नी। नमन है इन माता पिता को जिन्होंने अपना बेटा देश के लिए न्योशावर कर दिया"
फिर उसने पैनल में उसके साथ बैठे एक रिटायर्ड मिलिट्री ऑफिसर से पूछा "आप क्या कहेँगे इस पर ब्रिगेडियर साहब?"
"सबसे पहले तो मैं फ्लाइट लेफ्टिनंट विक्रम सिंह सांगेर को नमन करता हूँ। उनका जहाज़ एक रिहाईश में क्रैश ना हो इसके लिए उन्होंने अपना बलिदान दे दिया! इस परिवार को मैं निजी तौर पर जानता हूँ। ये सब बहादुर लोग हैं और बहुत सी कुर्बानियाँ इस परिवार ने देश सेवा में दी हैं लेकिन आज बात ये नहीं है"
उन्होंने अपना गला साफ किया और फिर बोलना शुरू किया,
"मैं आपके ज़रिये सरकार से सवाल करना चाहूंगा कि क्या ये देश इतना मज़बूर है कि इस देश के जवान बच्चे ऐसे जहाज़ उड़ाये जिन्हे बाकी देशों ने कब का अपनी सेना से रिटायर कर दिया! आप जानती हैँ जिस जहाज़ में आएं दिन तकनीकी खराबी की वजह से हमारे पायलट मारे जाते हैं वो मिग -21 किस नाम से जाना जाता है? उसको "फ्लाइंग कॉफ़ीन" कहते हैं यानि उड़ता हुआ ताबूत! एक और नाम है - विडो मेकर यानि जिसकी वजह से सुहाग उजड़ जाते हैं! जिसमें कब आग लग जाए, कब इंजन फेल हो जाए कुछ नहीं पता!"
ब्रिगेडियर साहब फिर बोले-
"इस दंपति का एक बड़ा बेटा भी है जो इस वक्त भारतीय सेना में मेजर के पद पर कार्यरत है और विडंबना देखिए उस भाई की जो अपने फर्ज के चलते अपने शहीद छोटे भाई के आखिरी पलों में भी उसके साथ नहीं! हमारे देश में कितने ही ऐसे परिवार होंगे जिनके घर का हर बच्चा देश सेवा के लिए सेना का हिस्सा बनता है और बदले में क्या मिलता है? वो हमारे देश की रक्षा करने में अपनी जान लगा देते हैं लेकिन क्या हम उन्हें पूरी तैयारी के साथ उस रणभूमि में भेजते हैं? जवाब सबको पता है"
एंकर बोली - "आप बिल्कुल सही कह रह हैं सर! दे आर फाइटिंग विद आल देट दे हैव बट आर दे गेटिंग एनफ टू फाइट...."
अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ सम्पन्न हो चुका था। अब टीवी पर डिबेट चल रही थी।
"तुम नहीं जाओगे आर्मी में, नवी" नवीन की माँ अचानक आंसू पोंछते हुए उसे देखकर बोली। वो बहुत भावुक हो रहीं थीं।
"लेकिन क्यूँ?!"
"बस अपने दिमाग से आर्मी में जाने का फितूर निकाल दो"
"अरे! ये क्या बात हुई माँ? आपको पता है मेरे लिए आर्मी में जाना कितना ज़रूरी है! मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सपना है जो मैंने बचपन से देखा है। आप जानती तो हैं फिर भी बोल रहीं हैं"
"इकलौते बेटे हो तुम हमारे, हम नहीं रह पाएंगे तुमसे दूर" उसकी माँ रोते रोते बोली।
"हे भगवान! एक तो तुम्हारा रोना! बस रोने का बहाना चाहिए तुम्हें नंदा की अम्मा" उसके पिता सर पर हाथ मारते हुए हँसते हुए बोले।
"इस देश की समस्या ही यही है, शहीद हो तो दूसरे के घर में हो...अरे अगर हर माँ बाप ये सोच रखने वाले हो गए तो बस हो गया इस देशा का बंटाधार!" नवीन ज्ञानी के जैसे बोल रहा था।
"कोई भी माँ बाप अपने बच्चे को शहीद होने के लिए नहीं भेजते लेकिन ये देखो न्यूज़ वाले क्या बोल रहे हैं कि हमारे पास तो अच्छे हथियार ही नहीं तो.... "
"माँ यार! आप विक्रम सिंह सांगेर को देख रहीं हैं लेकिन आपने सुना ना उनका भाई भी है जो इस वक़्त ड्यूटी की वजह से अपने ही भाई के अंतिम संस्कार में नहीं आ पाया। उनके पिता भी बड़े अफसर रह चुके हैं। क्या इस परिवार को ज़िन्दगी में कोई कमी होगी? नहीं ना? तो क्या ज़रूरत है इतनी मेहनत करके सेना में जाने की? क्यूंकि जज़्बा है देश सेवा का और देश सेवा कोई भी हथियार और सहूलियत देखकर नहीं की जाती। जब तक प्राण है इस देश का युवा अपनी भारत माँ के लिए लड़ेगा, फिर चाहे सामने कितना भी बड़ा धुरंधर आ जाए। हम तो भिड़ जाएंगे, कसम से" बोलकर नवीन बहुत बड़ी मुस्कुराहट के साथ अपनी माँ को देखने लगा।
"वो सब तो ठीक है देश के युवा! लेकिन ये बताइये आपके एनडीए के पेपर का परिणाम आने वाला था ना? क्या हुआ उसका?" उसके पिता पीछे से उसे बोले।
"नहीं हुआ" नवीन ने लटके हुए चेहरे के साथ जवाब दिया "लेकिन आप देखना आर्मी में तो मैं जाकर रहूँगा"
"और वो कैसे जाएंगे आप बंधु?" उसके पिता ने हँसते हुए पूछा।
"बाबा, मैं सोच रही थी एक साल और इसकी कोचिंग हो जाती तो...." नंदिनी पूरा बोल भी नहीं पाई कि उसके पिता ने उसे बीच में ही टोक दिया "नहीं नंदा, एक बार कोचिंग करवाई ना इसकी तो बस इतना बहुत है। पिछले साल फसल भी अच्छी नहीं हुई थी तो तुम्हारी यूनिवर्सिटी की एडमिशन के लिए रखी हुई फीस गयी थी इसकी कोचिंग में और तुमने अपना साल बर्बाद कर लिया। इस बार तुम जाओगी यूनिवर्सिटी और ये जाएगा कॉलेज बस बात खत्म"
"अरे मैं कोचिंग के लिए नहीं बोल रहा, नंदा दीदी आप अपनी पढ़ाई देखो लेकिन कॉलेज मैं नहीं जाऊंगा। मैं सेना में भर्ती हो जाऊंगा। ऑफिसर बनकर ना सही तो सिपाही बनकर ही सही! आर्मी में तो जाऊंगा ही जाऊंगा"
"हाँ हाँ ज़रूर जाओगे तुम" नंदिनी नवीन को देखकर मुस्कुराते हुए बोली।
"बस आप ही हैं मेरी इस निष्ठुर दुनिया में नंदा दीदी। आप नहीं होती तो पता नहीं ये दोनों मेरा क्या करते" वो छोटे बच्चों जैसा मुंह बनाता हुआ बोला।
नंदिनी ने हंसते हुई उसके सर पर प्यार से चपत लगाई और वहां से रसोई की तरफ चली गयी। नवीन भी पीछे पीछे चला गया।
"इसे नंदा ने बहुत बिगाड़ रखा है अपने लाड प्यार से। विदा होकर जायेगी तो कैसे रहेगी अपने गोद लिए हुए बेटे के बिना" नवीन की माँ हँसते हुए बोली।
"ये उसकी दूम बनकर पीछे रहेगा देख लेना" प्रकाश जी बोले।
उस दिन एक परिवार में था गम और एक परिवार भविष्य में आने वाले गम से बेखबर।

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